यह भी आवश्यक है
समाज में ऐसी बहुत सी गतिविधियां होती हैं जिनसे बाल यौन शोषण जैसे अपराधों को प्रश्रय मिलता है। इन गतिविधियों का दृढ़ता से विरोध करना हम सबका सामाजिक कर्तव्य है।
आजकल टीवी, फिल्म, अखबार, पत्र-पत्रिकाओं, कंप्यूटर गेम जैसे माध्यमों द्वारा यौन संबंधी विकृत मानसिकताओं, दृश्यों, मानकों, और मूल्यों का प्रचार-प्रसार हो रहा है।
अखबारों का ही उदाहरण लें। कई अखबार, विशेषकर प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार, अपना सर्क्युलेशन बढ़ाने के लिए सेक्स से संबंधित लेख, फोटो, कोलम आदि प्रकाशित करते हैं। आजकल तो स्पोर्ट्स के समाचार भी सेक्स में लपेटकर पेश किए जाते हैं। फिल्मों की समीक्षाओं के नाम पर अभिनेत्रियों-अभिनेताओं की नंगी तसवीरें और उनके प्रेम प्रसंगों की अश्लील चर्चाएं छपती हैं। विज्ञापनों में भी अश्लीलता निरंतर बढ़ रही है। इन्हें देखकर साधारण समझ और बुद्धि वाले युवक-युवतियों में विकृत भावनाएं पैदा होना स्वाभाविक है। इन भावनाओं से प्रेरित होकर वे बच्चों का यौन शोषण की ओर बढ़ते हैं, क्योंकि बच्चे समाज के सबसे निस्सहाय सदस्य होते हैं, और उन पर अपने नापाक इरादों को आजमाना अपेक्षाकृत सुरक्षित और आसान होता है।
हमें इन अखबारों के संपादकों और मालिकों को पत्र लिखकर समझाना चाहिए कि इस तरह के लेखों, चित्रों और अन्य सामग्री से अपने अखबार को मुक्त रखें। पर केवल इससे अखबारवाले मानेंगे नहीं। इसलिए हमें उनके विरुद्ध जन-आंदोलन छेड़कर उनके अखबारों को पढ़ना बंद कर देना चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने को प्रेरित करना चाहिए। जब हजारों की संख्या में लोग इस तरह के अखबारों का बहिष्कार करने लगेंगे, तो ये अखबार सही रास्ते पर आने को मजबूर होंगे।
यही नीति हमें अश्लील टीवी कार्यक्रमों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों और फिल्मों के प्रति भी अपनानी चाहिए। उन वस्तुओं को भी न खरीदें जिनके विज्ञापन अश्लील हों, और इन उत्पादों के निर्माताओं को पत्र लिखकर सूचित भी करें कि आपने उनके उत्पादों का उपयोग करना बंद कर दिया है और क्यों। अपने परिचितों को भी इन उत्पादों का उपयोग न करने की सलाह दें।
अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और टीवी में जो अश्लीलता रहती है, उससे कहीं अधिक स्पष्ट और नुकसानकारक अश्लीलता आजकल इंटरनेट पर मौजूद है। इसे देखने-पढ़नेवालों में बाल यौन शोषण की प्रबल प्रवृत्ति विकसित हो सकती है।
इस समस्या से निपटना उतना आसान नहीं है क्योंकि इंटनेट एक विश्वव्यापी व्यवस्था है और उसका नियंत्रण किसी एक व्यक्ति, सरकार या संगठन के हाथों में नहीं है। ऐसे में यही किया जा सकता है कि इस तरह के पोर्नोग्राफिक साइटों को देखने के नुकसानों के बारे में जागरूकता लाई जाए, और अपने बच्चों, परिवारजनों, परिचितों और आम जनता को इन साइटों से दूर रहने के लिए मना लिया जाए।
बहुत से बच्चे और युवक-युवतियां इन स्थलों को इसलिए देखते हैं क्योंकि उन्हें इनके विकल्प के रूप में स्वस्थ स्थलों के बारे में पता नहीं होता है, या ऐसे स्थल नहीं होते हैं, या कम संख्या में होते हैं, या कम आकर्षक होते हैं। इस कमी को पूरा करके हम बच्चों और युवा जनों को इंटरनेट के माध्यम से उपयोगी जानकारी प्राप्त करने की ओर बढ़ा सकते हैं, और उनमें सुरुचियां विकसित कर सकते हैं।
बच्चों और युवा जनों को इंटरनेट का चस्का इसलिए भी लगता है, क्योंकि उनके लिए अन्य गतिविधियां, जैसे खेल-कूद, पुस्तकें पढ़ना, मित्र मंडलियां बनाकर समाजोपयोगी कामों में लगना, आदि उतनी आकर्षक नहीं लगती हैं। इन सब गतिविधियों को रोचक रीति से अंजाम देकर बच्चों में नैतिकता और उच्च आदर्श विकसित किए जा सकते हैं।
हमारे समाज में स्त्री पुरुषों के लिए, विशेषकर युवक-युवतियों के लिए, एक दूसरे के साथ स्वस्थ तरीके के मिलने के लिए बहुत कम अवसर उपलब्ध हैं। इससे अनेक युवक-युवतियों में यौन प्रत्याशाएं अपूरित रह जाती हैं और वे गलत रीति से इन प्रत्याशाओं को पूरा करने के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इससे बाल यौन शोषण जैसी सामाजिक कुरीतियां बढ़ जाती हैं।
यदि समाज यौन संबंधी मामलों में अधिक खुला एवं स्वस्थ्य रवैया अपनाए, तो इस तरह की काफी कुरीतियों से समाज को निजात मिल सकता है। हम सबकी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम समाज को यौन संबंधी मामलों में पुरातनपंथी मान्यताओं से मुक्त रखें और लड़के-लड़कियों और स्त्रि-पुरुषों में स्वस्थ अंतर्क्रियाओं को प्रोत्साहित करें।
हमारे समाज में पुरुष संतान प्राप्त करने पर जोर होने के कारण स्त्री संतानों की हत्याएं बढ़ती जा रही हैं। गुजरात, हरियाणा, पंजाब आदि में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि समाज में प्रति 1000 पुरुषों के समक्ष मात्र 750 स्त्रियां ही हैं। इसका मतलब यह है कि हर हजार पुरुषों में से 250 पुरुष के लिए स्वस्थ वैवाहिक जीवन बिताना असंभव है। हरियाणा के कुछ इलाकों में तो युवक 40-45 वर्ष की उम्र तक कुंवारे रह जाते हैं क्योंकि समुदाय में स्त्री-भ्रूण हत्या बढ़ जाने से लड़कियों की भारी किल्लत हो गई है। वहां एक ही स्त्री के साथ तीन-चार भाइयों का विवाह होना जैसी प्रथाएं भी शुरू हो रही हैं। इसी तरह पुरुष संतान के प्रति हमारे मोह के कारण हमारे समुदाय में ऐसे हाजारों पुरुष मौजूद हैं जिनकी यौन जरूरतें ठीक तरह से पूरी नहीं हो पा रही हैं। उनमें से कई बाल यौन शोषण, वैश्यागमन, बलात्कार आदि के जरिए अपनी यौन जरूरतों को पूरा करने पर मजबूर हो गए हैं।
अतः बाल यौन शोषण को दूर करने के लिए समुदाय में पुरुष-स्त्री अनुपात को स्वस्थ स्तरों पर लाने की बहुत जरूरत है। विदेशों में और हमारे ही देश में उन समुदायों में जहां स्त्रियों के प्रति भेदभाव नहीं बरता जाता है (जैसे केरल, उत्तर-पूर्व के राज्य आदि) स्त्री-पुरुष अनुपात स्त्रियों के पक्ष में होता है, यानी समुदाय में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक होती है। हमें अपने देश के हर भाग में इस आदर्श सथिति को प्राप्त करने की ओर गंभीर प्रयास करना चाहिए।
शहरीकरण बढ़ने से हमारे बहुत से बड़े शहरों में लोग अजनबियों की तरह रह रहे हैं। अपने ही पड़ोसी को हम नहीं पहचानते। परिवार भी टूटने लगा है। पुरुष-स्त्री अपने कैरियर को पारिवारिक संबंध से अधिक महत्व दे रहे हैं। इससे अकेले रह रहे पुरुषों और स्त्रियों की संख्या बढ़ रही है। उनमें समलैंगिक अभिरुचियां जैसी अप्राकृतिक रुझानें बढ़ने लगी हैं। यह सब बच्चों के शोषण के लिए जमीन तैयार करता है। समाज में स्वस्थ यौन संबंध बनाए रखने के लिए स्वस्थ पारिवारिक जीवन बहुत आवश्यक होता है। इस समस्या का कोई आसान हल नहीं है। हमारा देश पूंजीवादी व्यवस्था को तेजी से अपनाता जा रहा है। पूंजीवादी समाज की एक मुख्य विशेषता होती है, वह समाज को व्यक्तियों में तोड़ देता है। अकेल व्यक्ति को देश-विदेश में स्थित कारखानों, दफ्तरों और बाजारों में भेजना आसान रहता है। यदि उनके साथ परिवार का बोझ भी लगा चले, तो यह मुश्किल होता है। इसलिए दुनिया के हर भाग में जहां पूंजीवाद विकसित है, समाज और परिवार टूट रहा है। भारत में भी यह शुरू हो गया है। बाल यौन शोषण जैसी कुरीतियां टूटते समाज और परिवार के नतीजे हैं।
इसलिए बाल यौन शोषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हमें पारिवारिक संबंधों और सामाजिक संबंधों को पुष्ट करना होगा। इसके लिए पूंजीवादी प्रसार को नियंत्रित करना होगा और उसे समाज के प्रति अधिक जवाबदेह बनाना होगा।
हमारे समाज की एक अन्य कमी यह है कि वह सर्वसमावेशी नहीं है। लोग जातियों, धर्मों, वर्गों आदि में बंटे हुए हैं। राजनीतिक दल भी वोट बंटोरने के विचार से इन विभाजनों को खूब उभाड़ते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी संस्थाएं भारतवासियों को हिंदुओं और मुसलमानों में बांटती हैं। शिव सेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना आदि भारतवासियों में भूमिपुत्र और गैर भूमिपुत्र में बांटते हैं। सवर्ण-अवर्ण का विभाजन तो पहले से ही चला आ रहा है। अब गरीबों-अमीरों का नया विभाजन अलग इस फिहरिस्त में जुड़ गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि हमारे समुदाय में ऐसे अनेक लोग हो गए हैं जो वाजिब या गैरवाजिब कारणों से समाज के अन्य सदस्यों या वर्गों के विरुद्ध तीव्र नफरत, द्वेष और दुर्भावना रखते हैं। इस तरह की भावनाओं के चलते, वे इन अन्य सदस्यों या वर्गों के प्रति जघन्य से जघन्य अपराध, क्रूरता, शोषण आदि को ठीक समझते हैं। इसी से आतंकवाद, सांप्रदायिक दंगे, बाल यौन शोषण, बलात्कार आदि अपराधों के लिए अनुकूल परिवेश बनता है।
इसलिए जल्द से जल्द हमें अपने समाज को समावेशी बनाने की ओर प्रयास करना चाहिए। हम सबका केवल एक वर्ग है, वह है भारतीय। हममें से हर एक के अधिकार समान हैं, चाहें हम मुसलमान हों या दलित, हिंदू हों या मराठी। हां हममें विविधता भी खूब है, जैसे, कोई हिंदी भाषी है, कोई तमिल भाषी, कोई मराठी भाषी, इत्यादि। पर यह सब विविध पहचानें परस्पर मिलकर एक अधकि व्यापक और विराट भारतीय पहचान में विलीन हो जाती हैं। हमें धर्म, जाति, क्षेत्र आदि की संकीर्ण पहचानों से चिपके न रहकर, अधिक व्यापक भारतीय पहचान की ओर निरंतर बढ़ना चाहिए। तभी एक-दूसरे के दुख-दर्द को हम अपना दुख-दर्द समझेंगे और समाज से द्वेष, दुर्भावना, प्रतिशोध का साया उठेगा। इनके दूर होने से ही बाल यौन शोषण जैसे कई सामाजिक कुरीतियां दूर हो सकेंगी।
इन सब तरीकों से और स्वयं बच्चों को इस समस्या से सजग करके और उन्हें अपनी रक्षा करने के तरीकों से परिचित कराके, इस जघन्य अपराध से समाज को काफी हद तक मुक्त किया जा सकता है।
(समाप्त।)
इस लेख माला के अब तक के लेखों की कड़ियां
1. विषय प्रवेश
2. कौन होता है शोषक?
3. बाल यौन शोषण के संकेत
4. यौन स्पर्श की पहचान
5. क्यों नहीं करते बच्चे अपने यौन शोषण की शिकायत
6. कैसे जानें आपके बच्चे का हुआ है यौन शोषण?
7. बच्चों के लिए सेक्स शिक्षण बहुत जरूरी है
8. कैसे करें मदद अपने यौन शोषित बच्चे की
9. अपने बच्चों की बात सुनना सीखिए
10. कुछ और सुझाव
Wednesday, July 08, 2009
जब आपके बच्चे का हो यौन शोषण - 11
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: बच्चों का यौन शोषण
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