आज ओनम है, केरलवासियों का सबसे लोकप्रिय त्योहार। ओनम तब आता है जब वर्षा ऋतु समाप्ति पर होती है और चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। नदी-नाले, तालाब और कुंए स्वच्छ जल से लबालब भरे होते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरमोत्कर्ष पर होता है।
किंवदंती है कि बहुत साल पहले राजा महाबली केरलवासियों पर राज करते थे। वे एक न्यायप्रिय, दयालु और प्रजावत्सल राजा थे। हर साल ओनम के अवसर पर राजा अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए उनके द्वारों पर पधारते थे। प्रजा अपने प्रिय राजा के स्वागत में बड़े उल्लास से ओनम त्योहार मनाती थी।
ओनम के पर्व पर केरल भर में नन्हे-मुन्ने बच्चे टोकरी लिए बाग-बगीचों में निकल प़ड़ते हैं और अपने-अपने घर-आंगन को सजाने के लिए सुंदर फूल तोड़ लाते हैं। सभी लोग पौ फटते ही जाग जाते हैं और नदी-तालाबों में जाकर स्नान करते हैं। प्रकृति तो सुंदर वेश-भूषा धारण किए हुए ही होती है, लोग भी, खासकर के बच्चे, नए-नए वस्त्र पहनते हैं। इन वस्त्रों को ओनक्कोडी कहा जाता है। गृहणियां घर-आंगन को बुहारकर साफ करती हैं और दीवारों और फर्श पर गोबर लीपती हैं। युवतियां आंगन में फूलों से रंगोली बनाती हैं और दीप जलाती हैं। इन रंगोलियों को पूक्कोलम (पू = फूल; कोलम = रंगोली) कहा जाता है। पूक्कोलम के चारों ओर युवतियां कैकोट्टिक्कली नाच करती हैं जिसमें वे मधुर-मधुर गीत गाती हुई और तालियां बजाती हुई पूक्कोलम के चारों ओर गीत की लय में थिरकती हैं।
बच्चे बूढ़े और जवान प्रकृति के निकट आने की कोशिश करते हैं। पेड़ों की डालियों से झूले टांगे जाते हैं। रात को खुले में नारियल और ताड़ के झूमते वृक्षों के नीचे कथकली आदि के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सब्जी मंडियों में तरह-तरह की सब्जियों का ढेर लगा रहता है, जिन्हें लोग आ-आकर ओनम की दावत तैयार करने के लिए खरीद ले जाते हैं। दावत केले के चौड़े पत्तों पर परोसी जाती है और उसमें तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन होते हैं। दावत के अंत में पायसम, यानी खीर, परोसी जाती है।
खेल-कूद और प्रतियोगिताएं ओनम त्योहार का अभिन्न अंग होती हैं। सबसे लोकप्रिय वल्लमकलि (जल-क्रीडा) है। यह नदियों और कायलों (समुद्र का वह भाग जो थल भागों के भीतर घुसा होता है) में आयोजित होती है। नौका दौड़ प्रतियोगिताएं सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। देश-विदेश से पर्यटक उन्हें देखने केरल की ओर उमड़ पड़ते हैं। ये नौकाएं खास प्रकार की होती हैं। एक-एक नौका में बीस-बीस, चालीस-चालीस या उससे भी अधिक खेवक होते हैं, जो सब एक खास गीत की लय में चप्पू चलाते हैं। उनके सशक्त एवं संगठित प्रयत्नों से नौकाएं पानी को चीरकर तीर की तेजी से बढ़ती हैं और दर्शकों में उल्लास और रोमांच भर देती हैं।
ओनम उन थोड़े से त्योहारों में से एक है जिनमें धर्म और जाति के बंधन तोड़कर लोग खुले दिल से भाग लेते हैं। केरल में हिंदू, मुसलमान और ईसाई पर्याप्त तादाद में हैं। तीनों ही धर्मों के अनुयायी ओनम त्योहार समान उत्साह से मनाते हैं। इतना ही नहीं केरलवासी जहां कहीं भी हों, ओनम मनाना नहीं भूलते। इस कारण ओनम आज एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय त्योहार हो गया है जो हमें धार्मिक भाईचारे की सीख देता है।
Wednesday, September 02, 2009
जाति-धर्म के बंधनों को तोड़ता त्योहार ओनम
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण 9 टिप्पणियाँ
लेबल: ओनम
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