Tuesday, July 14, 2009

बताइए अस्त-व्यस्त वस्त्र नियंत्रक क्या है

आज ईमेल में यह मिला। शायद आपने इनके बारे में पहले भी पढ़ा होगा, फिर भी यादें ताजा कर लीजिए। यदि नहीं पढ़ा हो तो ये आपको बहुत मजेदार लेगेंगी। वैसे भी इन्हीं के वंशज, डिसिप्लिनाचार्य और साइबरित्य ब्लोग जगत में आजकल धूम मचाए हुए हैं। अतः उनके पूर्वजों को याद कर लेना उचित होगा –

लाइट बल्ब – विद्युत प्रकाशक कांच गोलक
टेबल टेनिस – लकड़ी के फलक क्षेत्र पर ले टकाटक दे टकाटक
क्रिकेट – गोल गुट्टम लकड़ बट्टम दे दनादन प्रतियोगिता
ट्रैफिक सिग्नल – आवत जावत सूचक झंडा
मैच बोक्स – रगड़मपट्टी अग्नि उत्पादन पेटी
टाई – कंठ लंगोठी
सिगरेट – श्वेत पत्र मंडित धूम्र शलाखा प्रवीण
मोस्किटो – गुंजनहारी मानव रक्त पिपासु जीव
बटन – अस्त-व्यस्त वस्त्र नियंत्रक
रेलवे स्टेशन – भकभक अड्डा
रेलवे सिगनल – लौह पथ गामिनी आवागमन सूचक यंत्र
ओल रूट पास – यत्र-तत्र सर्वत्र गमन आज्ञापत्र
ट्रेन – सहस्र चक्र लौह पथ गामिनी
टी – दुग्ध जल मिश्रित शर्करा युक्त पर्वतीय बूटी

13 Comments:

Udan Tashtari said...

बहुत साहित्यिक अनुवाद है भई!!

Anonymous said...

बहुत पहले दिल्ली प्रेस की पत्रिका 'सरिता' में एक स्तंभ आता था 'ये कैसी हिंदी है' उसमें एक बार मैंने इसे पढ़ा था।

वहाँ जो दिया गया था वो मेरी याददाश्त में कुछ ऐसा था:

बटन- अस्त-व्यस्त वस्त्र संयोजक घुंडिका
चाय- ऊष्ण, मधुर, नीर, क्षीर, पत्र युक्त पेय

:-)

अजय कुमार झा said...

हाय अब तो ये शुद्ध -विशुद्ध, हर्बल हिंदी सीख कर ही रहूंगा..अजी लानत है..क्या आता है हमें..कमाल है बस कमाल ही है ..डिक्शनरी की उपलब्धता की अग्रिम सूचना दें..स्टॉक ख़त्म है ..वाली सूचना से हृदयगति के रुक जाने की संभावना है...

Astrologer Sidharth said...

कुर्सी उर्दू का है और हिन्‍दी में सिंहासन

इसी तरह लैटर बॉक्‍स, टीवी, वाइपर, हार्ड डिस्‍क, पेन ड्राइव आदि का अनुवाद भी दें तो हम भी साहित्यिक रचनाएं पेलने लगेंगे। :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

यह हिन्दी का मजाक है।

अजित वडनेरकर said...

यह सिर्फ मज़ाक है दिनेशजी, व्यथित मत होइये। ये प्रयोग हमेशा आनंद के लिए ही सामने आएंगे। अलबत्ता इनके मूल में शुद्धतावादियों का वितंडा ही था। ये तमाम शब्द बीते छह दशकों से हिन्दी का मज़ाक बना सकते थे, पर बना नहीं सके।

विवेक रस्तोगी said...

किसी भी भाषा का कोई भी मजाक नहीं उड़ा सकता क्योंकि भाषा अपने आप में इतना बड़ा ज्ञान है जो शायद किसी के पास नहीं है।

ये सब तो मनोरंजन के लिये लोग करते हैं, इसे मनोरंजन के रुप में ही लें।

Gyan Dutt Pandey said...

आप मूंगफली खाते हैं। फिर छिलके की पन्नी ले ताकते हैं इधर उधर। फिर आप ब्लॉग पोस्ट देखते हैं। फिर उसे वहां डाल देते हैं। फिर आकलन करते हैं कि वह वहां ५० साल रहेगा या नहीं! :-)

संजय बेंगाणी said...

जहाँ तक मैं समझता हूँ, डिसिप्लिनाचार्य और साइबरित्य के वंशज ऐसी हिन्दी के पक्ष में नहीं है. वैसे यह हिन्दी है ही नहीं, मजाक जरूर है.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हद कर दी आप ने!

वैसे शब्द सर्जन (अंग्रेजी surgeon) और सृजन की परम्परा हिन्दी उपन्यासों में भी दिखती है। रेणु ने परती परिकथा और शायद मैला आँचल में भी नए शब्द गढ़े हैं। जैसे - टेपरिकॉर्डर के लिए 'धुन फीताबन्दी' और डेमोक्रेसी के लिए 'दीमाकृषि'।
ऐसे शब्दों का एक संग्रह 'जय हिन्दी' पर प्रकाशित होना चाहिए।

मुझे अभी सक्रिय होने में समय लगेगा। ब्लॉग जगत से दूर होना अखर रहा है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हमने भी अभी कुछ दिन पहले ही एक मेल के जरिए इसे पढा था...पढ कर कुछ क्षण के लिए ही सही मुस्कुराहट जरूर आ गई। वैसे भी ये एक मजाक है ओर मजाक को मजाक की तरह से ही लिया जाना चाहिए।

Ashish Shrivastava said...

संज्ञा और परिभाषा मे अंतर होता है। ये हिन्दी संज्ञाये नही परिभाषाये है।

Arkjesh said...

बडा मजा आया ।
एक मेरी तरफ़ से भी,
रेलवे स्टेशन - आवागमन भुक-भुक अड्डा ।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट