Thursday, July 16, 2009

सब खुश हैं बादलों के शासन में

अब बरसात का मौसम अच्छी तरह जम गया है और पिछले तीन-चार दिनों से हर दिन दो-तीन घंटे तेज बारिश हो रही है। अब 42 डिग्री वाली गरमी के वे त्रस्त कर देनेवाले दिन भूल से गए हैं और दिल-दिमाग पर नई ऋतु के आगमन की फिजा छा गई है। मौसम का हम पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है! शायद इसलिए बड़े कवियों ने बादल, वर्षा, गर्मी, बसंत आदि पर खूब कलम चलाई है। निराला के बादल गीत तो प्रसिद्ध ही हैं। उन्हीं में से एक यहां दे रहा हूं, देखिए वह कैसे हम सबके मन की बात व्यक्त कर रहा है –

बादल-राग

झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
राग-अमर! अंबर में भर निजर रोर!
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु तरु-ममर्र, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव-घोर कठोर-
राग-अमर! अंबर में भर निज रोर!
अरे वर्ष के हर्ष।
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!
उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल, -
मेरे पागल बादल!
धंसता दलदल,
हंसता है नद खल-खल
बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।
देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल,
इस मरोर से-इसी शोर से-
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!
राज अमर! अंबर में भर निज रोर!
- निराला

वर्षा के आगमन से हमारा ही नहीं पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों का भी हृदय नाच रहा है। हमारी बालकनी के नीचे, सोसाइटी की परिधि की दीवार के किनारे पीपल का एक पौध उग आया है। अब तक वह बेचरा कुम्हलाया, मरियल सा ही था। कंकरीट स्लैबों से पटी सोसाइटी के आंगन में उसे कहां पानी और पोषण मिल पाता होगा। पर इन कुछ दिनों की बारिश से उसमें नई जान आ गई है। उसके खूब कोपलें फूट रही हैं, और देखते ही देखते उसने अपना कद दो-चार इंच बढ़ा लिया है। वह अधिक दिनों का मेहमान नहीं है, क्योंकि जैसे ही वह थोड़ा और बड़ा हो जाएगा, सोसाइटी का रखरखाव करनेवालों की नजर उस पर पढ़ेगी और वे उसे जरूर उखाड़ डालेंगे। कौन पीपल जैसा विशाल पड़े अपने आंगन में चाहेगा। पीपल जंगलों, गांवों, बगीचों और खुले प्रदेशों में ही फबता है। कंकरीट जंगल में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। पर फिर भी जब तक वह जिए खुशी से जिए। मैं रोज सुबह बालकनी से झांककर उसे देख लेता हूं और उसे अब भी जीवित पाकर मुझे अच्छा लगता है।

घर की बालकनी में पक्षियों के लिए रखा बचा-खुचा भोजन खाने और पानी पीने आनेवाले पक्षी भी पहले जैसे प्यास और गरमी से परेशान नहीं लगते हैं। लंगूर जो गर्मियों में लगभग रोज ही सोसाइटी का चक्कर लगा जाते थे, अब कम दिखने लगे हैं। अब पानी और भोजन उन्हें बाग-बगीचों और खुले स्थानों के पेड़-पौधों में बारिश के बाद आई नई वृद्धि से मिलने लगे हैं।

सब कुछ बढ़िया चल रहा है, एक ही चिंता है, आज मौसम विभाग ने अगले दो दिनों में घनघोर बारिश की भविष्यवाणी की है, जिससे लगता है अगले दो दिन शुष्क रहेंगे!

Thursday, July 09, 2009

आखिर आ पहुंची मेघ राजा की सवारी अहमदाबाद

इन पंक्तियों को लिखते समय बाहर जोरों के झपाटे पड़ रहे हैं, मेघ गर्जन हो रहा है और बिजली चमक रही है। ट्यूब लाइट भी टिमटिमा रहा है, बिजली गुल होने की चेतावनी देते हुए। कोई चिंता नहीं, इनवर्टर है, बीस मिनट तक कंप्यूटर को खींच लेगा, तब तक तो यह पोस्ट पूरा हो जाएगा।

लिख रहा हूं तो खिड़की से ठंडी बयार पर सवार महीन फुहार पीठ पर लग रही है और मिट्टी पर प्रथम बारिश की बूंदों की सोंधी महक नथुनों को छेड़ रही है। बहुत अच्छा लग रहा है।

दो महीने से 42 डिग्री पर पक रहे थे। उमस इतनी कि शरीर पर वस्त्र भी कटार सा घाव कर रहे थे। कोई राहत नहीं थी।

हम यही सोच रहे थे कि क्या इस बार मेघ राजा ने अहमदाबाद को भुला ही दिया है? सूरत तक आकर लौट गए।

पर उनके दरबार में देर सही अंधेर नहीं है। आज 9 जुलाई की रात पौने बारह बजे मौसम की पहली तेज बारिश शुरु हुई है अहमदाबाद में, और जोरों से हो रही है।

अब ज्यादा लिखना संभवन नहीं है, यह बारिश देखने का समय है, कंप्यूटर पर झुके रहने का नहीं, यह चेहरे पर ठंडी-ठंडी बूंदों के आघात का मजा लेने का समय है। तो अलविदा, कल बताऊंगा यह बारिश कब तक रही।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट