जयहिंदी का भूख वाला लेख लिखना काफी विचलित कर देनेवाला अनुभव रहा। आपको पढ़ते हुए भी ऐसा ही लगा होगा।
सोचता हूं इस वीभत्स स्थिति को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है? सरकार तो कोशिश कर ही रही है। वह तो पिछले 60 सालों से कर रही है, और शायद अगले 60 सालों तक भी करती ही जाएगी। पर स्पष्ट ही यह पर्याप्त नहीं है। तो क्या और किया जा सकता है?
दिनेशराय द्विवेदी जी ने उक्त लेख की टिप्पणी में कहा है, जब तक भूखे स्वयं खड़े नहीं होते, कुछ नहीं होगा। पर भूखे ऐसा जल्द कर पाएंगे यह नहीं लगता। इसके लिए लंबे समय तक उन्हें संगठित करना होगा, शिक्षित करना होगा। इसके लिए एक क्रांतिकारी दल की आवश्यता होगी, समर्पित, शिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यता होगी, इस सब में समय लगेगा। यह भी जरूर करना चाहिए। पर तुरंत क्या किया जा सकता है?
तुरंत कार्रवाई तो वे ही लोग कर सकते हैं जो भूखे नहीं हैं, यानी हम और आप। जो थोड़ा बहुत इस संबंध में सोच पाया हूं, उसे ही यहां प्रस्तुत करता हूं, आप भी टिप्पणियों में अपने सुझाव दें –
- घर के नौकरों, उनके बच्चों आदि को रोज भोजन देना शुरू कर सकते हैं (इसका पैसा उनके वेतन से काटे बिना, यानी एक अतिरिक्त सुविधा के रूप में)।
- जिन मंदिरों, होटलों, कैंटीनों आदि में हमारा कुछ नियंत्रण है, उनमें अन्नदान को व्यापक स्तर पर आयोजित करा सकते हैं। यह आसान होना चाहिए क्योंकि हमारे सभी धर्मों में अन्नदान को ऊंचा स्थान दिया गया है। इन मंदिरों आदि में कोई भी जाकर निश्शुल्क भोजन कर आ सकता है। भोजन बहुत महंगा और विस्तृत हो यह जरूरी नहीं है, पर पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। दक्षिण के कुछ मंदिरों में मैंने ऐसी व्यवस्था देखी है (जैसे. कर्णाटक के धर्मस्थला में)। वहां रोज लाखों लोग मुफ्त में भोजन करते हैं। सारा खर्चा मंदिर की ओर से उठाया जाता है।
- स्कूलों में बच्चों को अनिवार्य रूप से भोजन दिलाया जाए। सरकार की ओर से पहले ही ऐसी एक योजना है। हमें बस यह करना होगा कि हम निगरानी रखें कि हमारे आसपास के स्कूलों में इस योजना को ईमानदारी से और सुव्यवस्थित ढंग से चलाया जाता है।
- राशन की दुकानों पर सामुदायिक स्तर पर नजर रख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उन्हें दिया गया अनाज सचमुच गरीबों में बांटा जाता है और दुकानदार चुपके से उन्हें बाजार में ऊंचे दामों पर बेच नहीं देता है।
- बच्चों के जन्म दिन, शादी की सालगिरह आदि खुशी के अवसरों पर पार्टियों आदि में पैसे न फूंककर, गरीबों को भोजन खिलाने का रिवाज शुरू कर सकते हैं। मान लीजिए आपकी माताजी 80 वर्ष की हुईं। तो 80 गरीबों को भोजन कराया जाए, या बिटिया के पांच वर्ष के होने पर 5 या 50 लोगों को भोजन कराया जाए।
- हमारे घर बहुत से नौकर, कारीगर और अन्य लोग आते रहते हैं, उन्हें सब अनिवार्य रूप से कोई न कोई भोजन की वस्तु दी जाए, जैसे केला, बिसकुट, दूध आदि। जिस तरह हम घर आए व्यक्ति को पानी दिए बिना नहीं जाने देते, उसी तरह अब हमें उन्हें खाने के लिए कुछ न कुछ दिए बगैर न जाने देने का नियम बना लेना चाहिए।
- हर महीने अपनी आय का एक अल्पांश बचाकर उसे भूख निवारण के लिए कार्य कर रही किसी संस्था को दान करना चाहिए।
- अगले पांच साल तक राष्ट्रमंडल खेल, छब्बीस जनवरी की परेड, चांद मिशन, हथियारों की खरीद आदि फिजूल खर्ची वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाकर इससे बचे पैसे से भूख निवारण कार्यक्रमों को सशक्त करना चाहिए।
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1 Comment:
- पाठ-पूजा में भोजन-दान पंडे-पुजारी को न देकर ग़रीब को दिया जाए। हम ऐसा ही करते हैं।
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