Thursday, April 30, 2009

सच्चा होगा तेरा बाप!

यह रही सत्यम चुटकुलों की नई खेप। आशा है आपको पसंद आएंगे।

***

राजू, राजू।
येस पप्पा।
चीटिंग शेयरहोल्डर्स?
नो पप्पा।
टेलिंग लाइस?
नो पप्पा।
ओपन योर बैलेन्सशीट।
हा, हा हा!

***

2+2 कितने होते हैं?
इंजीनियर: 4
जज: उसे 4 होना चाहिए।
नेता: मैं उसे 4 बना दूंगा।
राजू: आप बताइए उसे क्या होना चाहिए।

***

मास्टरजी - राजू, तुम्हारे दांत मोतियों के जैसे चमक रहे हैं।
राजू - क्यों न चमकेंगे, मास्टरजी, अपनी ही कंपनी का पैसा जो मैंने खाया है।

***

बच्चा मां से – मम्मी, इस शब्दकोश में एक गलती है।
मां – हो ही नहीं सकती बेटे, यह 100 साल पुरानी किताब है, कितने ही संस्करण हो चुके हैं इसके।
बच्चा – नहीं मम्मी, सचमुच इसमें एक गलती है।
मां – क्या कहते हो?
बच्चा – हां मम्मी, इसमें दिया हुआ है कि सत्यम का मतलब सचाई होता है।

***

सत्यम कांड के बाद बावर्ची महासंघ ने राजू को ऊंचे वेतन वाली नौकरी की पेशकश की।
सत्यम खातों को जिस खूबी से राजू ने पकाया था, उसे देखकर बावर्ची महासंघ को यकीन हो गया था कि राजू सचमुच एक बेहतरीन बावर्ची हैं।

***

सांता बांता से – यार अब तो सरकार भी खुलेआम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने लगी है।
बांता (जंभाई दबाते हुए) – कोई नई बात बता न यार।
सांता – नहीं यार, यह तो हद हो गई।
बांता – क्या हद हो गई?
सांता (एक रुपए का सिक्का दिखाते हुए) - यह जो यहां लिखा हुआ है।
बांता – क्या लिखा हुआ है इसमें?
सांता (रुपया बांता को देते हुए) – लो खुद ही पढ़ लो।
बांता (रुपया न लेते हुए) - तू ही पढ़कर बता न।
सांता – यहां लिखा हुआ है, सत्यमेव जयते।

***

सत्यम के बाद सलमान रशदी, अभिमन्यू चैटर्जी, शोभा डे, और अरुणधती राय इतने खफा क्यों हैं?

क्योंकि सत्यम की लेखा पोथियां अंग्रेजी गल्प साहित्य के वर्ग में उनकी किताबों को कहीं पीछे छोड़ गई हैं।

***

पापा बेटे के गणित होमवर्क का निरीक्षण कर रहे थे।
पापा – बेटे, यहां तुझसे एक गलती हो गई है।
बेटा – कहां पापा?
पापा – यहां। तूने 1+1=11 लिख दिया है। उसे 2 होना चाहिए।
बेटा – नहीं पापा। वह गलती नहीं है। सत्यम के बाद गणित के नियम बदल गए हैं। अब 1+1 11 ही होते हैं।

***

क्या आपने सत्यम के बाद कौओं के व्यवहार में आए परिवर्तन की ओर ध्यान दिया?
वे अब सच बोलनेवालों को काट रहे हैं!

***

राज कपूर फिल्म्स के शानदार कक्ष में रहमान और ऋषि कपूर बैठे हुए थे। बात यह थी कि राज कपूर फिल्म्स बोबी फिल्म का रीमेक बनवा रहा था।
ऋषि कपूर - रहमान जी, जय हो के लिए बधाई।
रहमान – शुक्रिया... मुझे यहां क्यों बुलाया है आपने।
ऋषि - हम चाहते हैं कि बोबी के गानों का रीमेक आप ही करें। उसके एक गाने में हम थोड़ा परिवर्तन चाहते हैं।
रहमान - किस गाने में?
ऋषि - झूठ बोले कौआ काटे वाला गाना... , सत्यम के बाद वह अब प्रासंगिक नहीं रहा। उसे हम, सच बोले कौआ काटे..., के रूप में रीमेक करना चाहते हैं।

***

बबलू और उसके दोस्त में कुछ कहा-सुनी हो गई। बबलू रोता हुआ मां के पास आया।
बबलू - मम्मी, इसने मुझे सच्चा कहा।
मां (बबलू की दोस्त को डांटते हुए) - बदमाश, तेरी यह मजाल! सच्चा होगा तेरा बाप!

***

Wednesday, April 29, 2009

घोटाला काल

(बोफोर्स का मामला एक बार फिर सुर्खियों पर आ गया है। इससे इसी विषय पर मेरे एक पुराने व्यंग्य लेख को झाड़-पोंछकर बाहर निकालने और जयहिंदी में देने का मुझे मौका मिल गया है। इसे मैंने लगभग दस साल पहले नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व के समय लिखा था। आशा है आपको पसंद आएगा।)

मैंने देखा है कि जबसे दसवीं कक्षा के भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम में घोटाला काल नामक एक नया उपविभाग जोड़ा गया है, तब से मेरे छात्रों में इस नीरस एवं उबाऊ विषय में एक नई रुचि जागी है और वे पहली बार पूरा ध्यान लगाकर मेरे व्याख्यानों को सुनते हैं। इतना ही नहीं बहुत ही सूझ-बूझपूर्ण प्रश्न पूछकर इसका भी परिचय देते हैं कि विषय की बारीकियां उन्हें पूरी तरह समझ आ रही हैं।

जब मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो छात्रों ने खड़े होकर "गुडमार्निंग सर" कहकर मेरा अभिवादन किया।

उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए मैंने कहा, "गुड मार्निंग बच्चो, सब लोग अपनी-अपनी जगह बैठ जाओ। आज हम भारतीय इतिहास के स्वातंत्र्योत्तर काल के उस महत्वपूर्ण उपकाल का अध्ययन करने जा रहे हैं जिसे इतिहास में घोटाला काल कहा जाता है।" फिर उनके ध्यान को अध्ययन के विषय पर केंद्रित करने के लिए मैंने खड़िए से श्यामपट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा, "घोटाला काल"।

सभी बच्चे बड़े मनोयोग से मेरी बातें सुन रहे थे। थड़िए को मेज पर रखकर मैं उनकी ओर मुड़ा और मेज की टेक लेकर खड़ा होकर कहने लगा, "इतिहास को भिन्न-भिन्न कालों में बांटकर अध्ययन करने की परिपाटी पुरानी है। यदि हजारों सालों की मानव कहानी समझनी हो तो उसे छोटे-छोटे कालखंडों में बांटकर ही समझा जा सकता है। इन कालखंडों में कुछ खास प्रवृत्तियां रहती हैं जो उस काल की घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इस तरह मौर्य काल, गुप्त काल, मुगल काल, ब्रिटिश काल आदि कालखंड हैं। स्वतंत्रता के बाद के काल का अब तक स्वातंत्र्योत्तर काल नाम देकर अध्ययन होता रहा है। पर अब यह माना जाने लगा है कि इस काल में अनेक उप-काल हुए हैं जिनमें कुछ खास-खास प्रवृत्तियां हावी रही हैं। इसे ध्यान में रखकर भारतीय इतिहास के इस कालखंड को कुछ उपकालों में बांटा गया है। इन उपकालों में घोटाला काल एक प्रमुख उपकाल है। सुभीते के लिए घोटाला काल का आरंभ भारत के सातवें प्रधान मंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के आरंभ के वर्ष यानी 1985 से माना जाता है, परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि इस युग की मुख्य प्रवृत्ति, यानी देश के सभी सर्वोच्च नेताओं के घोटालों से आबद्ध होना, इसी वर्ष से शुरू हुई थी और इससे पहले यह प्रवृत्ति नहीं थी या आम नहीं थी। इतिहास की कोई भी प्रवृत्ति अचानक किसी वर्ष प्रकट नहीं होती। तारीखें तो इतिहासकार इन प्रवृत्तियों के अध्ययन को सरल बनाने के लिए किसी न किसी आधार पर दे देते हैं। क्या आपमें से कोई बता सकता है कि इस उपकाल का आरंभ इस वर्ष से क्यों माना जाता है?" मैंने छात्रों से पूछा।

"इसी वर्ष कोई बड़ा घोटाला हुआ होगा।" सुनीता ने अटकल लगाई।

"नहीं, कारण यह नहीं है," मैंने कहा, "परंतु तुम्हारी अटकल गलत भी नहीं है। दरअसल इस उपकाल का पहला घोटाला, जिसे बोफोर्स घोटाला कहते हैं, राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम वर्षों में सामने आया। यद्यपि इससे पहले भी घोटाले हुए हैं, परंतु बोफर्स ऐसा पहला घोटाला था जिसमें देश के सर्वोच्च राजनीतिक अधिकारी, यानी प्रधान मंत्री, स्वयं उलझे हुए थे। चूंकि यह घोटाला राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और चूंकि वे, उनके परिवार के कुछ अन्य जन और उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री इससे संलग्न थे, इसलिए इस उपकाल का आरंभ उनके कार्यकाल के प्रारंभिक वर्ष से मानते हैं।"

इस काल के नामकरण को लेकर सुधीर को शंका हुई। उसने पूछा, "सर इससे पहले के कालखंडों का किसी वंश के नाम पर नामकरण हुआ है, जैसे मुगल काल, मौर्य काल, ब्रिटिश काल आदि। इसी आधार पर इस कालखंड का नामकरण राजीव काल क्यों नहीं हुआ?"

मैंने कहा, "तुमने अच्छा सवाल किया है सुधीर। इसका कारण यह है कि इस काल की मुख्य प्रवृत्ति घोटाले रहे हैं, न कि कोई वंश या व्यक्ति द्वारा संचालित क्रियाकलाप। लगभग सभी मुख्य-मुख्य राजनीतिक किसी-न-किसी घोटाले में संलग्न रहे। इनमें से प्रत्येक अन्य सभी से बढ़कर घोटालाकार था। मसलन इस काल के सुख राम, नरसिंह राव, कल्पनाथ राय, हरशद मेहता, जैन बंधु आदि सब अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ घोटालेबाज थे। इनमें से किसी एक को इस काल के नियंता का गौरव प्रदान करना और उसके नाम पर पूरे काल का नामकरण करना अन्य घोटालेबाजों के साथ अन्याय होगा। इतिहास भेदभाव नहीं करता, तथ्यों का निष्पक्ष विश्लेषण मात्र करता है। इसलिए अगणित प्रतिभाशाली और दिलेर घोटालेबाजों में से किसी एक को वरीयता न देकर इस काल की मुख्य प्रवृत्ति, यानी घोटालों, के आधार पर इस काल का नामकरण उचित ही हुआ है।"

"सर इस युग का अंत कब हुआ?" प्रवीणा ने पूछा।

"यह एक टेढ़ा सवाल है," मैंने कहा। "इसको लेकर इतिहासकारों तक में काफी मतभेद है। पर आम राय यही है कि अभी हम घोटाला काल में ही जी रहे हैं और यह भारतीय इतिहास का नवीनतम काल है। इस काल का अंत भविष्य के गर्भ में छिपा है। वैसे यह भी सच है कि जिस प्रकार किसी काल की शुरुआत के वर्ष को पहचानना मुश्किल होता है, उसी प्रकार उस काल के अंत के वर्ष को पहचानना भी आसान नहीं होता। यदि कई सालों तक कोई मुख्य घोटाला सामने न आया और कोई अन्य प्रवृत्ति प्रबल हो उठी, तो हम कह सकते हैं कि घोटाला काल समाप्त हो गया और कोई दूसरे काल की नींव पड़ गई। परंतु पिछले कई वर्षों से घोटाले एक-के-बाद-एक सामने आते जा रहे हैं, इसलिए यह कहना उचित ही होगा कि घोटाला काल इस समय जवान एवं सक्रिय है।"

इस विषयांतर के बाद मैं अपनी मूल बात पर लौट आया, "जैसा कि मैंने शुरू में ही कह दिया था, यह तारीख सुभीते के लिए मान ली गई है। वैसे घोटाला प्रवृत्ति की जड़ें इससे कई वर्ष पहले ही पड़ चुकी थीं। राजीव की मां इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अंतुले ने कांग्रेस पार्टी के कोष के लिए सीमेंट उद्योग के मालिकों से भारी चंदा वसूल किया था। परंतु इस घोटाले और घोटाला काल के घोटालों में मुख्य फर्क यह है कि घोटाला काल के घोटालों में स्वयं देश के प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल थे। इस दृष्टि से सिमेंट घोटाला व अन्य इस तरह के घोटाले अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण थे। आज की कक्षा में हम इस उपकाल के कुछ मुख्य-मुख्य घोटालों के बारे में जानेंगे।"

मैंने कहा, "आगे बढ़ने से पहले मैं एक जरूरी बात तुम्हें बता दूं। घोटाला शब्द का समानार्थी एक अन्य शब्द भी है, "कांड"। कुछ पाठ्यपुस्तकों में घोटाला के स्थान पर कांड का प्रयोग तुम्हें मिलेगा। इससे किसी उलझन में नहीं पड़ना। कांड घोटाले को ही कहते हैं। परीक्षा में भी प्रश्न पत्र में इस शब्द को देखकर चौंकना नहीं।" और मैंने श्यामपट पर कांड शब्द भी लिख दिया।

"अब हम घोटाला काल के मुख्य-मुख्य घोटालों का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करते हैं। सबसे पहले बोफर्स घोटाले की बात हो जाए। भारतीय सेना के लिए विदेशी बनावट की तोप खरीदने के मामले में इटली की तोप बनानेवाली कंपनी बोफर्स ने भारतीय मंत्रि मंडल के अनेक व्यक्तियों और अनेक बड़े अफसरों को 32 करोड़ रुपए जितना घूंस दिया। घूंस प्राप्त करने वालों में प्रधान मंत्री राजीव गांधी का भी नाम लिया गया। इस सौदे को पटाने में राजीव गांधी की इटली देश में जन्मी पत्नी सोनिया का मित्र और मशहूर आयुध-व्यापारी हेनरी कोशिगर का बड़ा हाथ था। बोफर्स कंपनी ने विन चड्डा को भारत में अपना ऐजेंट नियुक्त किया था और पैसा इसी ने हवाला चैनेल से मंत्रियों तक पहुंचाया था।"

प्रदीप ने कहा, "सर यह हवाला क्या चीज है?"

मैंने कहा, "प्रदीप थोड़ा सब्र करो। इस सवाल का उत्तर मैं हवाला घोटाले को समझाते वक्त दूंगा। वैसे अर्थशास्त्र की कक्षा में तुम लोगों को इसके बारे में विस्तार से पढ़ाया जाइगा। इस वर्ष से अर्थशास्त्र के पाठ्यपुस्तक में हवाला अर्थतंत्र पर भी एक अध्याय शामिल किया गया है। अभी हम बोफर्स की बात पूरी कर लें। इस घोटाले से जुड़ा एक अन्य महापुरुष चंद्रस्वामी था। मंत्रियों, प्रधान मंत्री और बोफर्स कंपनी के बीच संपर्क साधने में इसका बड़ा हाथ था।

"तो बच्चो, यह था बोफर्स घोटाला। इसी से जुड़ा है सेंट किट्स घोटाला। उसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई कि जब बोफर्स का भंडा फूटा तो प्रधान मंत्री सहित अनेक अन्य बड़ी हस्तियों की चमड़ी बचाने के प्रयत्न आरंभ हुए। इस प्रयास में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नरसिंह राव की मुख्य भूमिका रही। मामले को दबाने के इस प्रयास को ही सेंट किट्स घोटाला कहा जाता है। बोफर्स की बातें तब सामने आईं जब राजीव गांधी के चुनाव हारने पर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री बने। विश्वनाथ प्रताप सिंह का मुंह बंद करने के लिए नरसिंह राव ने चंद्रस्वामी की सहायता से जाली दस्तावेज तैयार करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के बेटे ने स्विस बैंकों में कई करोड़ रुपए जमा करके रखे हैं।"

अमर ने पूछा, "सर ये लोग भारतीय बैंकों में ये पैसे क्यों नहीं रखते थे?"

मैंने उसे समझाया, "बेटे, घोटाला युग में अमीर लोगों के लिए यह आम बात थी कि वे अपनी दौलत को देशी बैंकों में न रखकर विदेशों के बैंकों में, खासकर के स्विटजरलैंड के बैंकों में, रखते थे, ताकि जब उनके क्रियाकलापों का भंडा फूटे तो वे चुपचाप विदेश भाग सकें। हां, तो बात सेंट किट्स घोटाले की हो रही थी। नरसिंह राव की इस जालसाजी की बातें जल्द ही खुल गईं, और वे स्वयं बोफर्स और हवाला कांड में बुरी तरह उलझ गए।"

मैंने देखा कि बच्चों के चेहरे पर कुछ घबाराहट और बेचैनी सी छा गई है। आखिर मनमोहन ने उन सबके मन की बात कह ही डाली, "सर इन घोटालों का विवरण तो मुगल शहजादों की आपसी रंजिश एवं घात-प्रतिघात से भी अधिक उलझा हुआ है। हम कैसे इसे सब याद रख पाएंगे? इस विषय की परीक्षा में तो हम अवश्य ही फेल हो जाएंगे।"

मैंने उसे सांत्वना दी, "निराश होने की कोई बात नहीं है। तुम लोगों के पाठ्यक्रम में घोटाला काल के मुख्य-मुख्य घोटालों के बारे में बहुत ही संक्षिप्त जानकारी ही मांगी गई है। अधिक गहराई से तुम लोग ऊपर की कक्षाओं में पढ़ोगे। घोटाला युग के क्रियाकलाप तो इतने जटिल एवं विस्तृत हैं कि आज सैंकड़ों छात्र हर साल इस विषय पर पीएचडी स्तर का शोध कर रहे हैं और प्रोफेसर लोग घोटाला काल पर पोथियां लिखकर हजारों रुपयों की रायल्टी कमा रहे हैं। मैं तुम लोगों को इन घोटालों के बारे में इसलिए विस्तृत जानकारी दे रहा हूं ताकि आगे की कक्षाओं में फायदा हो।"

बात दरअसल यही नहीं थी। मैं टीचरी से प्राप्त अपनी टुच्ची एवं नाकाफी आय में वृद्धि करने के लिए घोटाला काल पर एक पाठ्यपुस्तक तैयार कर रहा था और उसके लिए काफी मसाला इकट्ठा कर लिया था। इसे मैं अपनी कक्षा के विद्यार्थियों पर आजमाकर अपनी पुस्तक को अधिक सुपाठ्य बनाना चाहता था। परंतु यह देखकर कि घोटालों के अधिक पेचीदा अंशों से बच्चों का जी घबरा रहा है, मैंने अन्य घोटालों को जरा संक्षेप में पेश किया।

मैंने कहा, "कोर्स का अगला घोटाला प्रतिभूति घोटाला है। इसका मुख्य नायक शेयरों का दलाल हर्शद मेहता था। इसने राष्ट्रीय बैंकों में जमा अरबों रुपए की पूंजी को उन बैंकों के मैनेजरों व अन्य उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से बेनामी शेयरों में लगाकर खरबों रुपए कमाए। इससे शेयर बाजार में जो अस्वाभाविक उछाल आई उससे बहककर बहुत से टुटपुंजियों ने भी शेयरों में अपनी खून-पसीने की कमाई लगाई। परंतु जब यह अस्वाभाविक उभार ठंडा हुआ और शेयरों के भाव गिर गए तो बैंकों के अरबों रुपए और छोटे निवेशकों के करोड़ों रुपए पर चूना लग गया।"

अगला घोटाला मेरा मनपसंद हवाला घोटाला था। इस पर मैंने काफी सामग्री अपनी पुस्तक के लिए एकत्र कर ली थी। मेरी पुस्तक की खास विशेषता इसी घोटाले का विश्लेषण थी। मैंने देखा था कि मार्किट में जो अन्य पाठ्यपुस्तकें थीं, उन सबमें इस घोटाले का बहुत ही अपूर्ण एवं अस्पष्ट व्याख्या ही दी गई थी। इस कारण से मैंने हवाला घोटाले को कुछ विस्तार से समझाया, "बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने प्रस्तावों को संबंधित अधिकारियों से पास कराने और आवश्यक कागजात प्राप्त करने के लिए करोड़ों रुपए घूंस में खर्च करती हैं। यह सब रकम हवाला चैनेल से ही भेजी जाती है। इसी प्रकार नशीले पदार्थों की तस्करी आदि आपराधिक गतिविधियों से उत्पन्न अकूत दौलत भी हवाला चैनल से ही देश के बाहर जाती है। विदेशी ताकतें देश के विरुद्ध चल रहे आतंकवादी आंदोलनों को वित्तिय सहायता भी इसी हवाला चैनल से पहुंचाती हैं। देश के समृद्ध वर्ग अपनी दौलत देश के बाहर ले जाने के लिए और विदेशों में रह रहे भारतीय नागरिक अपनी बेशुमार दौलत चोरी-छिपे भारत में लाने के लिए भी इसी चैनल का उपयोग करते हैं। इससे उन्हें आय कर आदि से मुक्ति मिल जाती है। इसी चैनल से विदेशी ताकतें, औद्योगिक घराने, बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विदेशी जासूसी ऐजेंसियां आदि मुख्य-मुख्य राजनीतिक दलों को चुनावी खर्चे के लिए चंदा देते हैं और इस तरह उनकी नीतियों को अपने हितों के अनुकूल बना लेती हैं। इस तरह से हवाला चैनेल बेहिसाब दौलत के दो-तरफा बहाव का एक जरिया है। इसके संचालकों में से एक थे जैन बंधु जो एक छोटे स्तर के उद्योगपति भी थे। इनकी गिरफ्तारी से इनसे जो डायरी प्राप्त हुई उसमें बहुत से उच्च स्तर के राजनेताओं के नाम दर्ज मिले, जिनमें शामिल थे प्रधान मंत्री नरसिंह राव, उसके मंत्रिमंडल के कल्पनाथ राय और अरिफ मुहम्मद खान, विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, दिल्ली के भाजपा सरकार के मुख्य मंत्री मदनलाल खुराना, अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, कमलनाथ, आदि। हवाला घोटाले की एक अन्य मुख्य खासियत यह है कि प्रधान मंत्री नरसिंह राव ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को धराशायी करने के लिए उन्हें हवाला घोटाले में उलझा दिया। परंतु अंत में वे स्वयं ही अपने फैलाए गए जाल में फंस गए।

"अब हम आते हैं चीनी घोटाले पर। एक बार देश में चीनी की बड़ी किल्लत पैदा हुई और चीनी के दाम आसमान छूने लगे। बहुत से विशेषज्ञों ने भारत सरकार से विदेशों से चीनी आयात करने की सलाह दी। परंतु खाद्य मंत्री कल्पनाथ राय ने चीनी मिलों के मालिकों के हित को ध्यान में रखते हुए कई महीनों तक चीनी के आयात की अनुमति नहीं दी। अंत में जब चीनी आयात की गई तब तक भारत द्वारा चीनी आयात करने की संभवना को जानकर चीनी का अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव बहुत बढ़ गया और इससे देश को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। बच्चो, नोट करना कि इस घोटाले से संबंधित कल्पनाथ राय हवाला घोटाले में भी नाम कमा चुके हैं। इन दो घोटालों में उसकी भूमिका को आप कन्फ्यूस न करें।

"अब हम अगले घोटाले पर जाते हैं, जो है चारा घोटाला। यह बिहार राज्य का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है जो दस साल यह अबाध रूप से चलता रहा। जनता को ढोर व उनके लिए चारा खरीदने के लिए ऋण आदि देने के नाम से बिहार सरकार के कर्मचारियों ने हजार-डेढ़ हजार करोड़ रुपए हजम कर लिए। यह सब जनता के दुलारे, बिहार के दो बार मुख्य मंत्री रह चुके और उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पूर्ण जानकारी में हुआ।"

पाठ को समापन की ओर ले जाते हुए मैंने कहा, "कोर्स में शामिल अंतिम घोटाला टेलिफोन घोटाला है। इसके मुख्य अभियुक्त सुख राम थे जो केंद्र सरकार के दूरसंचार मंत्री थे। उन्होंने अपने राज्य हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी को देश में एक नया टेलिफोन नेटवर्क लगाने के लिए हजारों करोड़ों का टेंडर दिलवाया। इससे देश को सैंकड़ों करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ। इस कंपनी ने इसके बदले मंत्री को कई करोड़ रुपए घूस में दिए जिसे वे ठिकाने लगा पाते इससे पहले ही उनके घर पुलिस का छापा पड़ा। सारे रुपए अलमारियों, सूटकेसों आदि में ठूंसे हुए मिले।"

अंत में मैंने कहा, "बच्चो कोर्स में बस ये ही चंद घोटाले हैं। लेकिन एक अन्य घोटाले के बारे में जानना तुम लोगों को शायद रोचक लगेगा क्योंकि यह उपर्युक्त सभी घोटालों से थोड़ा भिन्न है। यह है राजन पिल्लै से संबंध रखनेवाला बिस्कुट घोटाला। यह घोटाला विलक्षण इस अर्थ में है कि यह इस देश में नहीं बल्कि दूर हांग कांग में हुआ। राजन पिल्लै एक बहुराष्ट्रीय बिस्कुट कंपनी का चेयरमैन था। उसने कंपनी के खाते में से सैंकड़ों करोड़ रुपए उड़ाए और जब इसका भंडा फूटने ही वाला था, हांग कांग के कड़े कानूनों से बचने के लिए वह भारत भाग आया और भारतीय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसे विश्वास था कि वह भारत के न्यायाधीशों को अपने पैसे के बल पर खरीद कर सस्ते में छूट जाएगा। परंतु दुर्भाग्य से वह जेल में रहते हुए पुलिस अत्याचार के फलस्वरूप मारा गया।

"अब मैं परीक्षाओं में पूछे जा सकने वाले कुछ प्रश्न श्यामपट पर लिखता हूं। गृह कार्य के रूप में तुम लोग उनका उत्तर तैयार करो। मैंने निम्नलिखित प्रश्न लिखेः-

1. नीचे दी गई ऐतिहासिक घटनाओं में से किन्हीं दो पर विस्तार से चर्चा करें।
क) 1857 की गदर; ख) बोफर्स घोटाला; ग) नमक सत्याग्रह; घ) जलियांवाला हत्याकांड

2. भारतीय इतिहास में निम्नलिखित इतिहास पुरुषों में से किन्हीं तीन के महत्व को समझाएं: विवेकानंद, नरसिंह राव, हरशद मेहता, भगत सिंह, लालू प्रसाद यादव, कल्पनाथ राय, महात्मा गांधी, सुख राम।

3. निम्नलिखित पुरुषों में से किसे आप घोटाला काल की प्रवृत्तियों का सच्चा प्रतिनिधि मानते हैं?
सुख राम, राजीव गांधी, कल्पनाथ राय, चंद्रस्वामी, हर्षद मेहता, लालू प्रसाद यादव।

4. चीनी घोटाले अथवा हवाला घोटाले में कल्पनाथ राय की भूमिका को स्पष्ट करें।

5. हवाला चैनेल कैसे काम करता है? राजनीतिक दलों के लिए यह चैनेल क्यों महत्व रखता है?

6. बिस्कुट घोटाला अन्य घोटालों से किस प्रकार भिन्न था?

7. घोटाला काल में घटित इन घोटालों का देश की अर्थव्यवस्था और निर्धन वर्गों पर क्या असर पड़ा?

तब तक कक्षा के समाप्त होने की घंटी बजी और मैं कक्षा से बाहर चला आया।

Tuesday, April 28, 2009

नालायक नेता

चुनावी सभा चल रही थी। लाख, दो लाख लोगों की भीड़ जुटी थी। नेताजी अच्छे वक्ता थे। उनके हर दूसरे-तीसरे वाक्य पर खूब तालियां पिटीं। पार्टी सदस्य बेहद खुश थे, नेता का जादू चल गया था।

पर नेता स्वयं खिन्न थे। हेलिकोप्टर में बैठते हुए सचिवों से बोले, “क्या मैं इस लायक भी नहीं था? एक जूता भी तो नहीं फेंका गया मुझ पर!”

Saturday, April 25, 2009

इंडीब्लोगर – एक अलग प्रकार का ब्लोग एग्रिगेटर

हिंदी चिट्ठाकार चिट्ठाजगत, ब्लोगवाणी, नारद आदि एग्रिगेटरों से परिचित होंगे, पर आपमें से कई इंडीब्लोगर में नजर नहीं आ रहे हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि हिंदी ब्लोगर इंडीब्लोगर को अंग्रेजी ब्लोग का एग्रिगेटर समझकर उसे छोड़ देते हैं। पर इंडीब्लोगर सभी भारतीय भाषाओं के ब्लोगों का एग्रिगेटर है, मात्र अंग्रेजी ब्लोगों का नहीं। उसकी डाइरेक्टेरी में 300 से ज्यादा हिंदी ब्लोग हैं, और यह संख्या रोज बढ़ती जा रही है। तमिल, मराठी, गुजराती, मलयालम आदि भाषाओं के ब्लोग भी उसमें हैं। इसलिए अपने हिंदी ब्लोग को इंडीब्लोगर में जमा कराने से न कतराएं।

इंडीब्लोगर भी एक प्रकार का ब्लोग एग्रिगेटर है, जैसे चिट्ठाजगत आदि, पर वह कुछ-कुछ भिन्न भी है।

इसे रेनी रवीन और उसके मित्रों ने शुरू किया है। इसमें ब्लोगर अपना प्रोफाइल बनाकर अपने ब्लोगों को जमा कर सकता है। जब इंडीब्लोगर ब्लोग को अनुमोदित कर देता है, तो वह इंडीब्लोगर की ब्लोग डाइरेक्ट्री में दिखाई देने लगता है। प्रोफाइल पृष्ठ में उस ब्लोग के पांच-छह ताजा पोस्टों की कड़ियां भी दर्शाई जाती हैं। यदि एक व्यक्ति के कई ब्लोग हों, प्रोफाइल पृष्ठ में ये सभी ब्लोग दिखाई देंगे, बशर्ते उन सभी ब्लोगों को इंडीब्लोगर में विधिवत जमा कराया गया हो।

ब्लोगों को क्रम (इंडीरैंक) दिया जाता है और सबसे अधिक क्रम वाले ब्लोग डाइरेक्ट्री में पहले दिखाई देते हैं। डाइरेक्ट्री को अनेक वर्गों में बांटा गया है, जैसे:-

• तकनीकी ब्लोग
• हिंदी ब्लोग
• फुड ब्लोग
• ट्रेवल ब्लोग
• क्रिकेट ब्लोग
• आदि

इस विस्तृत वर्गीकरण के कारण ब्लोगों की विसिबिलिटी बढ़ती है क्योंकि प्रत्येक वर्ग में कुछ सौ ब्लोग ही होते हैं, और यदि आपका ब्लोग अपने वर्ग के ब्लोगों से थोड़ा भी अच्छा हो, तो सूची के आगे आ जाता है।

यह एग्रिगेटर अभी नया ही है। इसके बने कुछ ही महीने हुए हैं। इसलिए इसमें अभी अधिक ब्लोग नहीं जमा हुए हैं। अतः आपका ब्लोग ब्लोगों की भीड़-भाड़ में खो नहीं जाएगा। उदाहरण के लिए इसके हिंदी ब्लोग वाले वर्ग में अभी केवल 300 ब्लोग हैं। कुछ प्रमुख हिंदी ब्लोग जो इंडीब्लोगर में हैं, ये हैं –

• कबाडखाना (अशोक पांडे, हल्दवानी)
• रविरतलामी का हिंदी ब्लोग (रवि श्रीवास्तव, भोपाल)
• भड़ास (रजनीश झा, नई दिल्ली)
• अनिल का हिंदी ब्लाग (डा. अनिल कुमार, टक्सास)
• इर्द-गिर्द (हरि जोशी, मेरठ)
• बाल सजग (महेश, कानपुर)
• नुक्ताचीनी (सरिता अग्रारे, भोपाल)
• अप्रवासी उवाच (सुधीर पांडे, मिशिगम, अमरीका)
• मिशन इंडिया फाउंडेशन (मुनीश रायजादा, अमरीका)

मैंने अपने तीनों ही ब्लोगों को, अर्थात जयहिंदी, प्रिंटेफ-स्कैनेफ और केरल पुराण को, इंडीब्लोगर में जमा किया है।

कई परिचित हिंदी ब्लोग अभी इंडीब्लोग में नहीं दिखाई दे रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:-

• Mired Mirages (घुघूती बासूती)
• शब्दों का सफर (अजीत वाडनेकर)
• चोखेर बाली
• मल्हार (पी एन सुब्रमण्यम)
• मसिजीवी
• आंख की किरकिरी (नीलिमा, दिल्ली)
• मोहल्ला
• तरकश, जोग लिखी (संजय बेंगाणी)
• संचिका, भुजंग (लवली कुमारी)

यदि इनके रचयिता इस पोस्ट को पढ़ रहे हों, तो इंडीब्लोगर में अपने इन ब्लोगों को अवश्य ले आएं। इसमें चंद मिनटों का समय ही लगता है।

ब्लोग डाइरेक्टेरी के अलावा इंडीब्लोगर में दो-एक अन्य विशेषताएं भी हैं जो मैंने अन्य ब्लोग एग्रिगेटरों में नहीं देखी हैं।

इनमें से एक इंडीवाइन नामक विशेषता है। इसमें इंडीब्लोगर आपके ब्लोग के कुछ अच्छे पोस्टों को जमा करने देता है। इंडीवाइन के लिए भी इंडीब्लोगर में कुछ वर्ग रखे गए हैं, और यदि आपने उन वर्गों में कोई अच्छा पोस्ट लिखा हो, तो उन्हें आप अलग से इन वर्गों में जमा कर सकते हैं। इससे आपके अच्छे पोस्टों को अतिरिक्त विसिबिलिटी प्राप्त हो सकती है। इनमें से कुछ वर्ग ये हैं:-

• इलेक्शन्स 2009
• महिलाओं पर प्रहार
• टाटा नैनो
• मुंबई आतंकी हमले
• आईपीएल टूर्नामेंट, आदि

आप नए वर्ग भी सुझा सकते हैं।

एक अन्य सुविधा यह है कि आप अपने प्रोफाइल के साथ इंडीब्लोगर के अन्य ब्लोगों को जोड़ सकते हैं, कुछ-कुछ वैसे जैसे ब्लोगस्पोट में हम दूसरे ब्लोगरों के फोलोवर बनते हैं। इससे आपका इंडीरैंक बढ़ जाता है, यानी आपके ब्लोग को जितने अधिक लोगों ने अपने प्रोफाइल के साथ जोड़ा हो, उतना ही आपके ब्लोग का इंडीरैंक बढ़ेगा और आप इंडीब्लोगर की डाइरेक्ट्री में ऊपर आएंगे।

इंडीब्लोगर की एक अन्य विशेषता उसका फोरम (चर्चा मंच) है। इसमें अनेक प्रकार के विषयों पर चर्चाएं चलती रहती हैं। चर्चा में भाग लेनेवाले हर व्यक्ति का नाम और उसके प्रोफाइल की कड़ी दर्शाई जाती है। इससे ये चर्चाएं अपने प्रोफाइल को और अपने ब्लोगों को प्रचारित करने का बहुत बढ़िया मौका देती हैं। फोरम में आप अपने ब्लोग की समीक्षा की मांग भी कर सकते हैं। इससे भी आपके ब्लोग को प्रसिद्धी मिलती है।

इंडीब्लोगर समय-समय पर देश के अलग-अलग भागों में ब्लोगर मीट आयोजित करता रहता है, जिसमें भाग लेकर ब्लोगर एक-दूसरे के साथ व्यक्तिगत परिचय बढ़ा सकते हैं।

इंडीब्लोगर का अपना एक ब्लोग भी है जिसमें इसके निर्माता लोग इंडीब्लोगर के बारे में अपना मंतव्य प्रकट करते रहते हैं।

कुल मिलकार इंडीब्लोगर चिट्ठाजगत, ब्लोगवाणी आदि बड़े-बड़े एग्रिगेटरों से अधिक छोटा, चुलबुला और कसा हुआ एग्रिगेटर है, जिसमें अपने ब्लोग को जमा करने के अनेक फायदे हैं।

यदि आपका ब्लोग इंडीब्लोगर में नहीं हो, तो जल्दी ही उसे इंडीब्लोगर की डाइरेक्ट्री में शामिल करा दीजिए।

Friday, April 24, 2009

मौत का मंत्री

श्यामसुंदर हवाई अड्डे की लौंज में बड़ी बेसब्री से चहल-कदमी कर रहा था। लौंज असंख्य यात्रियों से भरा हुआ था। वे सब दिल्ली की ओर जानेवाली उड़ान के इंतजार में थे। इस उड़ान का नियत समय तीन बजे था, पर अभी साढ़े चार हो रहे थे। यात्रियों द्वारा बार-बार पूछे जाने पर भी हवाई अड्डे के अधिकारी नहीं बता रहे थे कि इस उड़ान को क्या हो गया है, वह विलंब से क्यों आ रही है। असल में यह हवाई जहाज बैंगलूर से आ रहा था। अधिकारियों ने घोषणा भी कर दी थी कि वह बैंगलूर हवाई अड्डा छोड़ चुका है, घंटे भर में यहां के रनवे पर उतरेगा। लेकिन इस घोषणा के दो घंटे हो गए थे, पर हवाई जहाज का कोई अता-पता नहीं था। उसको लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।

श्यामसुंदर ने एक बार फिर काउंटर पर बैठी महिला से नम्रता से पूछा, "मैडम दिल्ली की उड़ान के बारे में कोई ताजा समाचार?"

उसने शिष्टतापूर्वक उत्तर दिया, "आइ एम सॉरी। वह किन्हीं तकनीकी कारणों से एक दूसरे हवाई अड्डे पर उतार दी गई है। आपकी असुविधा के लिए हमें खेद है।"

श्यामसुंदर पर मायूसी सी छा गई। उसने कहा, "मैडम यह तो बताइए वह दिल्ली के लिए कब उड़ान भरेगी?"
स्त्री ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, "मुझे क्षमा करें। इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।

कोई सूचना आते ही हम पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर ऐनाउन्स कर देंगे।"

श्यामसुंदर ने एक गहरी उसांस ली। वह स्त्री उसकी तरफ आत्मीयता से देखती रही। श्यामसुंदर ने उससे कहा, "सामान्य परिस्थितियों में मुझे इस देरी से कुछ अधिक परेशानी नहीं होती। लेकिन इस समय मैं बहुत लाचार हूं। मेरे साथ मेरे पिताजी भी हैं। उन्हें कल रात दिल का दौरा पड़ा था।

डाक्टरों ने बाइपास सर्जरी की ताकीद दी है। दिल्ली के एक नामी अस्पताल में उनके आपरेशन की तारीख भी तय हो चुकी है। यदि अधिक देरी हुई तो उनकी जिंदगी को खतरा है।"

काउंटर की महिला ने सहानुभूति जतालाते हुए कहा, "मुझे आपके साथ पूरी हमदर्दी है। पर परिस्थिति हमारे नियंत्रण के बाहर है। वीआइपियों के आवागमन से हमारे सारे शेड्यूल गड़बड़ा जाते हैं। यात्रियों को भी बहुत कष्ट होता है।"

श्यामसुंदर का माथा ठनका। उसने गुस्से से कहा, "तो क्या कोई मिनिस्टर-विनिस्टर उतर रहा है क्या?"
महिला ने हां में सिर हिलाया।

श्यामसुंदर बुदबुदाया, "सामने पड़ जाए तो साले को मैं अपने इन हाथों से चार जूते लगाऊंगा।"

वह फिर लौंज में वापिस आ गया। एक व्हीलचेयर पर उसके पिता बेसुध पड़े थे। मां ने उससे पूछा, "बेटा फ्लाइट कब जाएगी? मेरा तो दिल घबरा रहा है। घर से निकले चार घंटे के ऊपर हो गए हैं। टैक्सी में चढ़ना, उतरना, यहां इस प्रकार व्हीलचेयर पर बैठे रहना, यह सब इनके लिए कुछ अच्छा नहीं है। डाक्टर ने तो इन्हें बिस्तर से उठने तक की मनाही की है।"

"घबराओ नहीं मां, फ्लाइट अभी आती ही है," श्यामसुंदर ने अपनी मां को समझाया। पर उसके शब्दों में छिपे अविश्वास को भांपकर उसकी बेहन वंदना धीरे से उसके पास आई और उसे थोड़ा अलग ले जाकर उससे पूछा, "भैया इतना चिंतित क्यों हो? क्या कोई ऐसी-वैसी बात हो गई है?"

श्यामसुंदर ने दबे स्वर में लगभग रुआंसा सा होकर कहा, "वंदु सच कहूं तो मुझे बड़ा डर लग रहा है। पिताजी को यहां लाकर हमने कोई गलती तो नहीं की?"

"भैया ऐसा न कहो", वंदना ने अपने भाई का हाथ पकड़ कर कहा।

"नहीं वंदु। अभी मैं हवाई अड्डे के एक अधिकारी से बात करके आया हूं। फ्लाइट कब आएगी, यह उसे भी पता नहीं है।"

"पर इस देरी का कारण क्या है? कहीं कोई दुर्घटना-वुर्घटना तो नहीं।।।" यह भयानक बात कहते-कहते वंदना रुक सी गई।

"अरे नहीं, कोई मिनिस्टर-विनिस्टर आ रहा है बस। उस बदमाश के चले जाने के बाद ही अब हमारी फ्लाइट उड़ान भरेगी।" श्यामसुंदर ने घृणा से कहा।

"हे भगवान!" यह अनिष्टकारी सूचना सुनकर वंदना ने अपने होंठ दांतों तले दबा लिए।

अचानक हवाई अड्डे में चहल-पहल बढ़ गई। किसी हवाई जहाज के रनवे पर उतरने की आवाज आने लगी। हवाई अड्डे के बाहर दो फौजी ट्रक आकर रुके और उनमें से 60-70 हथियारबंद सैनिक उतर पड़े। हवाई अड्डे के अंदर और बाहर चारों ओर फैलकर वे सभी यात्रियों को दीवारों के किनारे खदेड़ने लगे। इस धक्का-मुक्की में श्यामसुंदर के पिता का व्हीलचेयर उलटते-उलटते बचा। जब श्यामसुंदर ने इसका विरोध किया तो धक्का लगानेवाला जवान गंदी गालियां निकालते हुए श्यामसुंदर की छाती पर अपने स्टेनगन का कुंदा मारने लगा। यह देखकर वंदना चीख मारकर अपने भाई के पास दौड़ी और जवान के अनेक वारों को अपने ऊपर लेती हुई गुस्से एवं अपमान से छटपटाते श्यामसुंदर को अलग खींच ले गई।

जवानों के अपने-अपने स्थान पर खड़े होते ही, लगभग एक डर्जन मोटरों का काफिला हवाई अड्डे के पोर्च पर आ रुका। उन गाड़ियों से अनेक खद्दरदारी नेता और उनके सफारी सूटवाले सचिव उतर पड़े। सचिवों के हाथों में बड़ी-बड़ी फूलमालाएं थीं।

तभी रनवे से लौंज की ओर खुलनेवाले निकास द्वार से बहुत से वर्दीदारी सुरक्षा-कर्मचारियों के घेरे में एक रौबदार पुरुष निकला आया। उसकी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था। उसकी तंदुरुस्त सी देह पर खादी के वस्त्र थे। सिर पर गांधी टोपी थी।

इसके प्रकट होते ही मोटर काफिले से उतरे लोग नारे लगाने लगे, "पूज्य रक्षामंत्री ब्रजमोहन सहाय की जय हो!"

"जनता के दुलारे ब्रजमोहन सहाय जिंदाबाद!"

फिर खद्दरदारी नेता अपने सचिवों से फूलमालाएं लेकर एक-एक करके आगे बढ़े और विदेश यात्रा से लौटे जनता के दुलारे पूज्य रक्षामंत्री ब्रजमोहन सहाय को माला पहनाकर घुटनों तक झुककर प्रणाम कर-करके लौटने लगे। कुछ ने तो उसके सामने साष्टांग प्रणाम भी किया।

ब्रजमोहन बनावटी मुस्कुराहट से अपनी आवभगत को स्वीकारता और महात्मा बुद्ध के समान अपनी हथेली फैलाकर उन्हें आशीर्वाद देता रहा।

थोड़ी ही देर में ये सब लोग काफिले की मोटरों में सवार हो गए। आगे-आगे फौज के दो मोटरसाइकिल सवार साइरन बजाते हुए चल पड़े। उनके पीछे एक-एक करके मोटरें चलने लगीं।

मोटरों के दोनों ओर भी सैनिकों की मोटरसाइकिलें थीं।

उधर इस काफिले का साइरन बज रहा था, इधर हवाई अड्डे के लौंज के एक कोने पर से विलाप के स्वर उठ रहे थे। श्यामसुंदर की मां व्हीलचेयर में लेटे अपने मृत पति से चिपटकर दहाड़ मार-मारकर रो रही थी। वंदना अपनी मां से लिपटी उसके क्रंदन से अपने विलाप के स्वर मिला रही थी। श्यामसुंदर पास खड़े धीरे-धीरे सुबक रहा था।

Sunday, April 19, 2009

अंग्रेजी की वर्णमाला ठीक से न बोलने पर 11 साल की लड़की को टीचर ने पीटकर मार डाला

आप सोच रहे होंगे कि क्या इक्कीसवीं सदी में भी ऐसी घटनाएं घट सकती हैं?

जी हां हमारे भारत महान में यह सब होता है।

इस मासूम बच्ची से, सन्नो नाम था उसका, अंग्रेजी की वर्णमाला ठीक से बोली नहीं गई। उसकी टीचर आग-बबूला हो गई और पहले तो उसने सन्नो को खूब मारा-पीटा, और उसके बाद उसे तीन घंटे तक कड़ी धूप में खड़ा रखा, जिससे थकावट के कारण बेचारी लड़की की जान ही चली गई।

स्कूलों में शिक्षकों द्वारा बच्चों पर क्रूरता बरतने का यह अकेला किस्सा नहीं है। आए दिन अखबारों में ऐसी खबरें आती रहती हैं। कहीं छात्रों को नेत्र की ज्योति से हाथ धोना पड़ता है, कहीं वे उम्र भर पंगु बनकर रह जाते हैं।

यह स्थिति अमरीका से ठीक उल्टी लगती है। वहां छात्र बंदूक लेकर शिक्षकों को भून डालने में आगा-पीछा नहीं देखते, यहां मां-बाप बच्चों को स्कूल भेजकर यहीं भगवान से दुआं करते हैं कि ये सकुशल घर लौट आएं और किसी गुस्सैल टीचर की मार-पीट और दंड के शिकार न बन जाएं।

इस समस्या का समाधान क्या हो।

मुझे लगता है कि निजी स्कूलों में, जैसे उपर्युक्त अंग्रेजी स्कूल में टीचरों का भी खूब शोषण होता है। उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं दिया जाता है और बहुत काम भी कराया जाता है। एक-एक क्लास में 50-50, 60-60 बच्चे ठूंस दिए जाते हैं। इससे उनमें फ्रस्ट्रेशन खूब बढ़ जाता है। वे इस फ्रस्ट्रेशन को स्कूल संचालकों पर तो उतार नहीं सकते। रह जाते हैं बेचारे बच्चे, जिन्हें मार-पीटकर ये शिक्षक कुछ सकून पाते हैं।

शिक्षकीय क्रूरता रोकने के लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है और उन्हें कड़ाई से लागू भी करना चाहिए। उपर्युक्त जैसे किस्सों के लिए मौत की सजा भी वाजिब है।

दूसरी ओर हमारा शिक्षण तंत्र अनेक कुरीतियों से ग्रस्त हो गया है। उदाहरण के लिए निजी स्कूलों द्वारा बारबार फीस बढ़ानेवाला मामला, जिससे अभिभावकों पर असहनीय आर्थिक बोझ आ जाता है।

मुझे लगता है कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकार ने पिछले 60 सालों में स्वास्थ्य और शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है, न ही उन पर पर्याप्त खर्च ही किया है। शिक्षा के नाम पर नेहरू के समय आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थाएं तो बना दी गईं, जहां अंग्रेजी का बोलबाला है, पर प्राथमिक शिक्षण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह इसलिए हुआ क्योंकि भारत में लोकतंत्र की भावना अभी गहरी पैठी नहीं है। यहां अब भी अभिजात वर्गों का ही चलता है, और देश का पैसा उन्हीं के फायदे के लिए खर्च किया जाता है। यहां का प्रधान मंत्रि अपने पांच साल के कार्यकाल में से तीन साल अमरीका के साथ परमाणु करार करने में खर्च कर देता है, लेकिन देश से निरक्षरता, कुस्वास्थ्य, गरीबी, बेरोजगारी आदि मिटाने के लिए काम करना हो, तो उसके पास समयाभाव हो जाता है।

शिक्षा पर सरकार को अभी के 10-12 प्रतिशत से कहीं ज्यादा खर्च करना चाहिए। लेकिन केवल खर्च करना ही काफी न होगा, खर्च किया गया पैसा सही जगह पहुंचता भी है इसका भी ध्यान रखना होगा। राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि सरकार द्वारा खर्च किए हर रुपए में से मात्र 10 पैसा ही अंतिम लाभार्थी को मिल पाता है। बाकी के 90 पैसे को बिचौलिए हड़प लेते हैं।

यह सब बहुत ही बड़ी और असाध्य सी समस्याएं प्रतीत होती हैं, पर हमें हिम्मत और आशा नहीं हारनी चाहिए।

पुनश्च

इस कांड से जुड़े अन्य तथ्य भी अब सामने आ गए हैं, जो कुछ अन्य संगीन मुद्दों को भी उजागर करते हैं।

सन्नो के शरीर के पोस्टमोर्टम की रिपोर्ट आ गई है। डाक्टरों ने मृत्यु का कारण सफोकेशन (दम घुटना) बताया है, और यह भी कहा है कि सन्नो पहले से ही किसी बीमारी से बीमार चली आ रही हो सकती है, और टीचर की मार और धूप में खड़ा किए जाने के कारण बीमारी से कमजोर हुआ उसके शरीर ने दम तोड़ दिया हो सकता है।

दूसरी चौंकानेवाली बात यह है कि स्कूल से लौटने पर सन्नो को उसके मां-बाप तुरंत डाक्टर के पास नहीं ले गए, बल्कि नीम-हकीमों के पास ले गए और इस तरह बहुमूल्य समय गंवा दिया। यदि वे उसे तुरंत किसी डाक्टर या अस्पताल ले गए होते तो शायद सन्नो की जान बचाई जा सकती थी।

अब सवाल ये खड़े होते हैं -

1. यदि सन्नो लड़का होती, तो क्या मां-बाप उसकी बीमारी के प्रति इतनी लापरवाही बरतते?

2. यदि सन्नो लड़का होती, तो क्या मां-बाप उसे नीम-हकीम के पास पहले ले गए होते? उसे लेकर तुरंत किसी अस्पताल या डाक्टर के पास न दौड़े होते?

इस तरह यह मामला शिक्षकीय हिंसा का एक वीभत्स उदाहरण तो है ही, साथ-साथ लड़कियों के प्रति हमारे समाज में और परिवार में किए जानेवाले भेद-भावपूर्ण व्यवहार का भी यह एक ज्वलंत उदाहरण है।

Wednesday, April 15, 2009

बाल सजग - बच्चों का बढ़िया हिंदी ब्लोग

हिंदी में खास बच्चों के लिए लिखे गए कम ही ब्लोग हैं। इसलिए बाल सजग जैसा कोई अच्छा बाल हिंदी ब्लोग देखकर खुशी होती है।

इसमें सभी रचनाएं बच्चों की ही लिखी हुई हैं। इसे सुंदर रूप से अभिकल्पित किया गया है। जैसा कि बच्चों के ब्लोग में होना चाहिए इसमें ढेर सारे रंग-बिरंगे चित्र भी हैं।

आप भी देख आइए इसे।

Tuesday, April 14, 2009

मेरा नया ब्लोग केरल पुराण

आज 14 अप्रैल को विषु है, जो केरलवासियों का एक मुख्य त्योहार है। यह उनके लिए नववर्ष भी है। पंजाब में भी बैसाखी इसी दिन बनाया जाता है। तो मेरे केरल और पंजाब के मित्रों को विषु और बैसाखी की शुभकामनाएं और नव वर्ष के लिए अभिनंदन।

विषु के इस शुभ पर्व को मैंने केरल से संबंधित एक नया ब्लोग शुरू किया है, केरल पुराण

इसमें मैं प्रसिद्ध मलयालम ग्रंथ ऐदीह्यमाला के प्रथम भाग की कहानियों का हिंदी अनुवाद दे रहा हूं।

इस ग्रंथ का परिचय इस प्रकार से हैं:-

मलयालम साहित्य की कालजयी कृति "ऐतीह्यमाला" बीसवीं सदी के प्रारंभ में (लगभग १९०७ को) रची गई थी। इस ग्रंथ के रचयिता हैं कोट्टारत्तिल शंकुण्णि। इस ग्रंथ का मलयालम साहित्य में वही स्थान है जो पंचतंत्र, हितोपदेश, एक हजार एक रातें, ईसप की कथाएं आदि का विश्व साहित्य में है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी के केरलवासी इस ग्रंथ-रत्न का आस्वादन करते आ रहे हैं और एक शताब्दी से पूर्व लिखे जाने के बावजूद इसकी लोकप्रियता में जरा भी कमी नहीं आई है।

इस ग्रंथ में यूरोपियों के आने के पूर्व के केरल के समाज की अत्यंत सजीव तस्वीर उभरती है। केरल प्रदेश के सभी प्रतीकों का, वहां के देवी-देवताओं, मंदिरों, नदी-तालाबों, पशु-पक्षियों, विभिन्न वर्गों के स्त्री-पुरुषों, जैसे विद्वान और मूर्ख, राजा और भिखारी, पागल और संन्यासी, ब्राह्मण और शूद्र, कुलटा और पतिव्रता, यहां तक कि वहां के प्रेत-पिशाचों और व्यंजनों तक का अत्यंत रोचक वर्णन इस ग्रंथ में हुआ है। यद्यपि आज पढ़ने पर इस ग्रंथ की घटनाओं में निहित जीवन-मूल्य कुछ अप्रासंगिक एवं पुरातन लग सकता है, परंतु यदि इस बात को न भूला जाए कि लेखक जिस समय का चित्रण कर रहा है, उस समय का केरल ऐसे ही जीवन-मूल्यों से संचालित था, तो हम देखेंगे कि लेखक ने प्रचलित शोषणकारी परंपराओं को सीधी चुनौती न देते हुए भी उन पर अत्यंत तीखा व्यंग्य किया है, जिससे उसके सुधारक मनोवृत्ति, विनोदशीलता एवं मानवीयता का प्रमाण मिलता है।

इस ग्रंथ में आई घटनाएं इतनी चमत्कारिक एवं अविश्वसनीय हैं कि पाठक उन्हें एक ही सांस में पढ़ जाने के लिए बेचैन हो उठता है। इस मामले में इसकी तुलना हिंदी के "चंद्रकांता संतति" से की जा सकती है, लेकिन ऐतीह्यमाला का विषय-क्षेत्र मात्र सामंती समाज न होकर अत्यंत विस्तृत है।

यह ग्रंथ प्रारंभ में प्रसिद्ध मलयालम अख्बार "मलयाल मनोरमा" में लगभग सौ साल पहले धारावाहिक रूप से छपा था और बाद में इसकी लोकप्रियता को देखकर अखबार के प्रकाशक ने इसे आठ खंडों में प्रकाशित कराया। तब से इसकी असंख्य आवृत्तियां निकल चुकी हैं। कुछ वर्ष पूर्व कोट्टारत्तिल शंकुण्णि स्मारक न्यास ने आठों खंडों की सामग्री को एक ही जिल्द के अंदर प्रकाशित कराया। इस जिल्द में १२६ कहानियां शामिल की गई हैं जिनमें से प्रत्येक कहानी अन्य से बढ़कर पठनीय है।

केरल पुराण ब्लोग में "ऐतीह्यमाला" के प्रथम खंड में शामिल २१ कहानियों का हिंदी अनुवाद दूंगा। यदि पाठकों को ये कहानियां पसंद आईं, तो अन्य खंडों के अनुवाद का श्रम खुशी-खुशी हाथ में लूंगा।

सीखिए कोरिया की भाषा हिंदी माध्यम से

सतीश चंद्र सत्यार्थी जी अपने ब्लोग कोरियन सीखें में हिंदी के माध्यम से कोरियाई भाषा सिखा रहे हैं। यदि रुचि हो तो देख आएं।

हिंदी के जरिए अब ऐसी जानकारियां भी मिलने लग रही हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। यह हिंदी के एक विश्वव्यापी भाषा बनने का सबूत है।

Friday, April 10, 2009

टिकट का कटना

आज कई टीवी चैनलों में इस मुहावरे का प्रयोग सुनने को मिला, आपने भी सुना होगा। यह चिदंबरम जूता प्रकरण के बाद सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर का कांग्रेस का चुनावी टिकट रद्द होने के संदर्भ में प्रयोग हुआ है।

लेकिन उसे सुनकर मुझे लगा कि कहीं न कहीं यह प्रयोग गलत है। इंडिया टीवी, और आज तक दोनों के ही टिप्पणीकार बार बार कह रहे थे, कि "टाइटलर-सज्जन का टिकट कट गया"। लिखित इश्तहार भी यही दर्शा रहे थे।

इसे देखकर मैं यही पहले समझा कि इन दोनों को कांग्रेस पार्टी ने टिकट दे ही दिया है, और कांग्रेस की नैतिकता-हीनता को मन ही मन कोसने भी लगा था। पर नहीं, टीवी टिप्पणीकार इसका ठीक उल्टा कहना चाह रहे थे। उनका आशय था, इन दोनों को कांग्रेस पार्टी ने जो पहले टिकट दे रखा था, वह अब रद्द कर दिया गया है।

जहां तक मैं जानता हूं, "टिकट कटना" मुहावरे या उक्ति का अर्थ होता है, "प्रवेश पाना"। हम अक्सर कहते और सुनते हैं, "क्या तुम नरक का टिकट कटाकर आए हो?",या "स्वर्ग का टिकट कटाकर आए हो?" और हमारा आशय यही होता है कि हमने स्वर्ग या नरक पहुंचने का पक्का इंतजाम कर लिया है।

इसलिए मुझे लगता है कि टीवी टिप्पणीकारों द्वारा टिकट कटने के इस मुहावरे का प्रयोग गलत है। सवाल यह उठता है कि इनसे यह गलत प्रयोग कैसे हो गया?

कहीं ऐसा तो नहीं है कि पंजाबी आदि दिल्ली के आस पास की भाषाओं में टिकट कटने का अर्थ हिंदी में इस मुहावरे के अर्थ का ठीक उल्टा हो?

यदि अजीत वाडनेकर जी इसे पढ़ रहे हों, तो शब्दों का सफर के किसी अंक में इस मुहावरे की चीरफाड़ प्रस्तुत करें ताकि मेरी यह शंका दूर हो सके।

आप भी बताएं कि आपको क्या लगता है। टिकट कटना का मतलब टिकट कैंसल होना हो सकता है? अथवा उसका अधिक सही अर्थ यह है कि टिकट मिल गया?

Thursday, April 09, 2009

लोड मकोले उवाच

इसे पढ़कर जान लीजिए कि लोड मकोले कितने दूरदर्शी थे और वे अपनी नीति में कितने सफल हुए।

Wednesday, April 08, 2009

क्या आरक्षण हटाना चुनावी मुद्दा बन सकता है?

संविधान निर्माताओं ने आरक्षण की नीति को समाज में विषमता दूर करने के एक अस्थायी औजार के रूप में ही देखा था। पर राजनीतिक कारणों से वह देश की एक स्थायी नीति बन गई है, और कोई भी उसके नुकसानों की चर्चा नहीं कर रहा है।

आरक्षण की नीति सबको समान अधिकार देने के संवैधानिक प्रावधान का खुला उल्लंघन है। इससे देश में गहरी दरारें बनती जा रही हैं, और यह राष्ट्र हित में नहीं है।

आरक्षण की नीति को वापस खींचने की आवश्यकता है। लेकिन साठ सालों से उसे लागू करने से अनेक लोगों का निहित स्वार्थ उससे जुड़ गया है। क्या वे राष्ट्र हित में इन निहित स्वार्थों से ऊपर उठ पाएंगे?

सबसे अच्छा यही होगा कि आरक्षण को दूर करने की मांग स्वयं उन लोगों से आए जिन्हें आरक्षण से अभी लाभ मिल रहा है।

उन्हें इस ओर प्रेरित करने के लिए मैं एक सुझाव देना चाहूंगा जिसके तीन अंग हैं। वे इस प्रकार हैं।

1. शिक्षण से अंग्रेजी हटाई जाए

आरक्षण को समाप्त करना चाहिए, लेकिन उसके साथ शिक्षण के समान अधिकार की भी व्यवस्था होनी चाहिए। आज एक ओर अंग्रेजी आधारित श्रेष्ठ शिक्षण तंत्र है जहां देश के अमीरों के बच्चे पढ़ते हैं, और दूसरी ओर हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल हैं जहां नाममात्र का ही शिक्षण मुहैया किया जाता है। और इन दोनों के ही बाहर वह विशाल समुदाय है जिसने स्कूल में कभी कदम ही नहीं रखा है।

ऐसी विषम परिस्थिति में आरक्षण को हटाना राजनीतिक दृष्टि से संभव न होगा।

इसे हटाने का एक कारगर उपाय होगा सबको समान कष्ट वाले सिद्धांत पर आधारित पहल, जिसमें अमीर वर्गों को भी कष्ट उठाना पड़े और गरीब वर्गों को भी।

मेरा सुझाव है कि आरक्षण की व्यवस्था को हटाने के साथ-साथ अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण देने की व्यवस्था को भी प्राथमिक शिक्षण से लेकर उच्च शिक्षण तक सभी जगह से हटाया जाए, जिसका अर्थ होगा हमारे नर्सरी-किंटरगार्टन से लेकर आईआईटी, आईआईएम, आदि अभिजातीय शिक्षण संस्थानों का शिक्षण माध्यम हिंदी कर देना। इससे मात्र अंग्रेजी के ज्ञान के कारण समृद्ध वर्गों को जो अतिरिक्त लाभ मिलता है, वह जाता रहेगा और ये संस्थाएं अधिक लोकतांत्रिक हो जाएंगी।

2. उच्च शिक्षण संस्थाओं के लिए भर्ती बोर्ड परीक्षा के नंबरों के आधार पर हो

शिक्षण सुधार के लिए दूसरा सुझाव मैं यह देना चाहूंगा कि आईआईटी, आईआईएम, और अन्य पेशेवरीय शिक्षण संस्थाओं में नए छात्रों की भर्ती के लिए जो अलग से स्पर्धात्मक परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, जैसे एआईईईई (इंजीनियरी कालेजों के लिए), जेईई (आईआईटियों के लिए), कैट (आईआईएमों के लिए), इत्यादि को गैरकानूनी घोषित करके, इन सब संस्थाओं के लिए छात्रों की भर्ती मात्र बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे के आधार पर किया जाए। हां यदि आवश्यक हो तो छात्रों का निजी साक्षात्कार लिया जा सकता है। इससे स्कूल शिक्षण की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण इजाफा होगा और छात्रों का जीवन भी तनावमुक्त हो जाएगा। पर इसका अधिक साधु प्रभाव निर्धन बच्चों पर पड़ेगा, जो अब आईआईटी आदि में पढ़ पाने का ख्वाव देख सकेंगे।

इस एक कदम से हमारे देश में शिक्षण अधिक समतापूर्ण और वैज्ञानिक हो जाएगा। आज गांव का बच्चा चाहे वह रामानुजम या आईनस्टाइन जितना मेधावी क्यों न हो, हमारे आईआईटी, आईआईएम में घुसने का सपना तक नहीं देख सकता है। वह इसलिए क्योंकि आईआईटी आदि की स्पर्धात्मक परीक्षाएं न केवल अंग्रेजी में हैं, बल्कि वे अस्वाभाविक रूप से इतनी कठिन रखी गई हैं कि सालों तक उनके लिए तैयारी करने के बाद ही इन परीक्षाओं में कोई पास हो सकता है। राजस्थान के कोटा आदि शहरों में इन परीक्षाओं के लिए कोचिंग सातवें दर्जे से ही शुरू हो जाते हैं, और लगातार पांच वर्षों तक चलते हैं, यानी आईआईटी के बीटेक कोर्स से भी एक साल ज्यादा, जो चार साल के होते हैं। इन कोचिंग क्लासों की फीस कई लाख रुपए है, जो स्वयं आईआईटी द्वारा ली जाने वाली फीस से भी ज्यादा है। और इन कोचिंग क्लासों में पढ़ा रहे "प्रोफेसरों" की तंख्वाह आईआईटी के प्रोफेसरों से भी ज्यादा है। सोचिए, किस हद तक हमारे देश में आईआईटी आदि मजाक बनकर रह गए हैं।

इसे तुरंत रोकना होगा। आईआईटी, आईआईएम के लोकतांत्रीकरण की आवश्यकता है। सबसे पहला काम इनका शिक्षण माध्यम हिंदी करना होगा, और इनके लिए नए छात्रों की भर्ती बारहवीं की परीक्षा के नंबरों के आधार पर करना होगा।

3. अगले पांच सालों में सर्वशिक्षा लाई जाए

तीसरा आवश्यक कदम यह है कि सरकार जल्द से जल्द एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत सर्वशिक्षा लाने का प्रयास करे। मेरे अनुसार इसके लिए पांच साल का समय काफी होगा, पर सरकार को युद्ध स्तर पर काम करना होगा। यहां तक कि अन्य सभी कार्यक्रमों से पैसा खींचकर इस एक बड़े काम में झोंकना होगा। मैं अगले पांच सालों तक सभी हवाई अड्डों, सड़कों, बांधों, बंदरों, नहरों आदि के निर्माण पर, हथियारों की खरीद पर, और राष्ट्रमंडल खेल जैसी फिजूल खर्चियों पर पूर्ण रोक लगाने के पक्ष में हूं। इससे बचे पैसे से गांव-गांव में अच्छे स्कूल, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं, शौचालय आदि स्थापित करके बच्चों में शतप्रतिशत स्कूल भर्ती प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। संभव है इसके लिए राष्ट्रीय आय के 50-75 प्रतिशत को अगले पांच सालों तक हर वर्ष खर्च करना पड़े। पर इसके लिए राष्ट्र के हर तबके को संकल्प करना पड़ेगा।

सर्वशिक्षा के साथ भूख निवारण कार्यक्रम को भी जोड़ा जाए, तो इस देश से व्यापक कुपोषण दूर हो सकता है। स्कूलों में ही बच्चों को पौष्टिक आहार की भी व्यवस्था होनी चाहिए। इससे पढ़ाई पूरी होने से पहले ही बच्चों के स्कूल छोड़ने की समस्या भी दूर हो जाएगी। साथ ही बाल मजूरी जैसे राष्ट्रीय कलंक भी धुल जाएंगे।

क्या देश के उद्योगपति, अभिजात वर्ग आदि राष्ट्र हित में यह बलिदान करने को तैयार हैं? यदि हां, तो वे आरक्षण नीति को हटाने में कामयाब हो सकेंगे।

यदि उपर्युक्त तीन सुझावों को लागू करते हुए आरक्षण नीति को हटाने का प्रस्ताव रखा जाए, तो यह राजनीतिक दृष्टि से लोगों को अधिक ग्राह्य हो सकता है।

क्या आप इससे सहमत हैं?

Tuesday, April 07, 2009

आज मैंने एक नया ब्लोग शुरू किया

आज मैंने एक नया ब्लोग शुरू किया है, प्रिंटेफ-स्कैनेफ

इसमें मैं कंप्यूटर प्रोग्रामन भाषाओं पर छात्रोपयोगी सामग्री प्रकाशित करूंगा।

हमारे बच्चे 9-10 वीं से ही सी आदि कंप्यूटर प्रोग्रामन भाषाएं सीखना शुरू करते हैं। हिंदी माध्यम से पढ़ रहे बच्चों को यह दिक्कत आती है कि कंप्यूटर आदि तकनीकी विषयों पर अधिक पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध नहीं हैं। यह ब्लोग इसी कमी को कुछ कम करने का मेरा तुच्छ प्रयास है।

यदि आपके बच्चे स्कूल में सी आदि भाषाओं से भिड़ रहे हों, तो उन्हें इस ब्लोग की जानकारी अवश्य दें।

Monday, April 06, 2009

अतुल्य भारत का एक उदाहरण

इस वीडियो की जानकारी मुझे अंकुर गुप्ता के ब्लोग से मिली। सोचा जयहिंदी में भी इसे दे दूं।

देखें, और फिर तय करें कि ऐसे में हम सबका क्या कर्तव्य बनता है।

Sunday, April 05, 2009

कंगारू शब्द

कंगारू आस्ट्रेलिया में पाया जानेवाला थैलीदार जीव है, जिसमें मादा के शरीर के अग्रभाग में एक थैली होती है, जिसमें उसका नवजात शिशु बड़ा हो जाने तक रहता है। इस तरह के कई जानवर हैं, जिन्हें थैलीदार स्तनधारी कहते हैं। ये आदिम प्रकार के स्तनधारी होते हैं।

तो कंगारू में एक ही जीव के अंदर उसी के जैसा दूसरा जीव, यानी उसका बच्चा, विद्यमान रहता है।

मजे की बात यह है कि इस तरह के कुछ शब्द भी होते हैं, यानी इन शब्दों की वर्तनी में ही ऐसा दूसरा छोटा शब्द छिपा रहता है जिसका अर्थ वही होता है जो मूल बड़े शब्द का।

अंग्रेजी में ऐसे बहुत शब्द मिलते हैं, कुछ शब्दों में तो दो-दो समानार्थी शब्द विद्यमान रहते हैं।

आइए पहले, अंग्रेजी के कंगारू शब्दों से परिचय बढ़ाते हैं, फिर इस पर विचार करेंगे कि क्या ऐसे शब्द हिंदी में भी हैं या नहीं।

मुर्गी के लिए अंग्रेजी शब्द chicken को लीजिए। इसे हम इस तरह से लिखें:- cHickEN। जिन वर्णों को कैपिटल में लिखा है, उनकी ओर खास ध्यान दीजिए। आइए इन वर्णों को मिलाकर लिखें:- HEN, यानी मुर्गी। देखा आपने, chicken शब्द में उसी अर्थ का एक दूसरा शब्द hen छिपा हुआ है। तो chicken एक कंगारू शब्द हुआ।

आइए एक और शब्द लेते हैं, container, यानी पात्र। इस शब्द के हिज्जों को ध्यान से देखने पर हमें उसमें एक नहीं दो-दो छोटे शब्द मिलते हैं, जिनका अर्थ पात्र होता है:- can (ContAiNer) और tin (conTaINer)।

है न कंगारू शब्द मजेदार चीज?

अंग्रेजी के कंगारू शब्दों पर एक लेख यहां उपलब्ध है।

अब देखते हैं कि क्या ऐसे शब्द हिंदी में भी हैं? इस विषय पर आने से पहले कंगारू शब्दों के बारे में कुछ नियम हैं, जिन्हें समझना जरूरी है। ये नियम दो हैं:-

पहला नियम है, किसी शब्द को कंगारू शब्द तभी माना जाएगा जब उसके भीतर स्थित छोटे शब्द के हिज्जे उसी क्रम में बड़े शब्द में आएं जिस क्रम में वे छोटे शब्द में आते हैं।

दूसरा नियम है, छोटे शब्द के वर्ण एक साथ नहीं आने चाहिए, अर्थात बड़े शब्द में छोटे शब्द के हिज्जों के बीच कोई अन्य वर्ण रहना चाहिए। इसे ऊपर के chicken शब्द से समझाता हूं। इसमें hen शब्द के h वाले भाग और en वाले भाग के बीच में ck वर्ण आते हैं (cHickEN)। यह आवश्यक है।

अब हमने कंगारू शब्दों के दो नियम समझ लिए हैं। आइए देखते हैं, इन नियमों पर खरे उतरनेवाले हिंदी में कोई कंगारू शब्द हैं?

मैंने इस लेख के लिए हिंदी कंगारू शब्दों के उदाहरण इकट्ठा करने के लिए खूब माथा-पच्ची की, पर मुझे दो ही ऐसे शब्द मिल पाए। पर इसका मतलब यह नहीं है कि हिंदी में ऐसे और शब्द नहीं हैं। जरूर हैं पर मेरी दृष्टि उन पर नहीं गई है।

पहले आपको हिंदी के एक कंगारू शब्द का अता-पता बता दूं। यह है सरोवर, जिसमें सर शब्द निहित है (रोव)। वैसे इस शब्द के प्रथम दो वर्ण सर से भी सर शब्द बन सकता है, पर यह ऊपर बताए गए दूसरे नियम का उल्लंघन होगा। लेकिन यदि हम सरोवर के शुरू के स और अंत के र को लें, तो सरोवर एक सार्थक कंगारू शब्द सिद्ध होता है।

हिंदी का एक दूसरा कंगारू शब्द है शताब्दी, जिसमें शती शब्द दुबककर बैठा है।

इस दूसरे उदाहरण के बारे में मुझे पूरा संतोष नहीं है, क्योंकि हम शती शब्द बनाने के लिए ब्दी शब्द से ई की मात्रा ले रहे हैं। क्या यह ठीक है? हिंदी की वर्ग पहेलियों में यह ठीक नहीं माना जाता है, उनमें पूरे सिलेबल को स्वरों की मात्रा सहित एक इकाई माना जाता है, और वर्गों में पूरे सिलेबेल को रखने की प्रथा है। यदि हम इस प्रथा को हिंदी कंगारू शब्दों पर लागू करें, तो शताब्दी कंगारू शब्द नहीं ठहरता।

खैर, मुझे ये ही दो (या एक, यदि हम शताब्दी को अस्वीकार करते हैं, तो) कंगारू शब्द अब तक हिंदी में मिले हैं। आगे और मिलें, तो इस चिट्ठे में जरूर जोड़ दूंगा अथवा अलग चिट्ठे में उन्हें दे दूंगा।

तब तक आप भी इन मजेदार शब्द खेल में हाथ आजमाइए और यदि आपको कोई कंगारू शब्द मिले, तो उन्हें इस चिट्ठे की टिप्पणियों के रूप में पोस्ट कीजिए। मुझे विश्वास है कि कई लोग दिमाग लड़ाएं, तो हिंदी में भी ऐसे कई शब्द निकल आएंगे।

इस चिट्ठे को समाप्त करने से पहले मैं आपको आगाह कर दूं कि यह उतना आसान नहीं है जितना सरसरी नजर में लगता है। मुझे कई संभावित उम्मीदवारों को खारिज कर देना पड़ा है क्योंकि वे ऊपर बताए गए दो नियमों में से किसी न किसी एक पर खरे नहीं उतरते हैं।

उदाहरण के लिए, ये सब शब्द कंगारू शब्द नहीं माने जा सकते, हालांकि उनमें भी उसी अर्थ के छोटे शब्द है:-

जनता (जन)
बहुतायत (बहुत)
संस्थान (संस्था)
ईश्वर (ईश)
जगदीश्वर (ईश्वर)
भूमि (भू)
पुस्तिका (पुस्तक)
प्रत्युत्तर (उत्तर)

कारण यह है कि इन सबमें छोटे शब्द के वर्ण एक साथ आते हैं और उनके बीच मूल शब्द का कोई अन्य वर्ण नहीं आता है।

तो मुझे आपके द्वारा खोजे गए कंगारू शब्दों की प्रतीक्षा रहेगी।

योगदान

योगासन मंडली के सदस्य झील के किनारे वाले उद्यान में एकत्र हुए थे। सभी सेवानिवृत्त पेंशनयाफ्ता वृद्ध थे। शाम का वक्त था।

आचार्य के दिखाए अनुसार आधा घंटा हरी घास में आसन लगाने के बाद सब पेड़ों के नीचे अपनी-अपनी पसंद के बेंचों पर और उसके चारों ओर की घास पर बैठे-लेटे बतियाने लगे।

उद्यान के बाहर के चायवाले से इशारे से चाय मंगा ली गई।

मोहन बाबू – भाई विमलदा, क्या तुमने रतन प्रकाश के ब्लोग का वह किश्त पढ़ा जिसमें उन्होंने सांसद दांडेरकर की पोल खोलकर रख दी है?

दातादीन – वही चिट्ठा न जिसमें दांडेरकर बनाम सविता वाले कांड की चर्चा है?

मोहन बाबू – वही, वही... बड़ी मेहनत से तथ्य जुटाए हैं, रतन ने। मजा आ गया पढ़कर। यह सब अखबारों में कही नहीं आया...

रमाशंकर – किस अखबार में हिम्मत है दांडेरकर के विरुद्ध कुछ लिखने की... चुटकी में सरकारी विज्ञापन बंद हो जाते उसका...

भवानी प्रसाद – इन बहादुर लिक्खड़ों के लिए कुछ करना चाहिए, ताकि उनका हौसला बुलंद रहे।

मोहन बाबू – लाख रुपए की बात कही तुमने। मैं भी यही सोच रहा था...

तब तक चाय आ गई, और बातचीत चाय की चुस्कियों में मंद पड़ गई।

अंधेरा छाने लगा। कुर्ता-पायजामा झाड़ते हुए वे उठ खड़े हुए और उद्यान के बाहर आ गए।

पर कोई घर नहीं गया, पास ही के इंटरनेट कफे में उनकी नई महफिल जमी। सब एक-एक कंप्यूटर पर रतन प्रकाश के ब्लोग के पन्ने खोलकर बैठ गए, और लगे चटकाने उसके पृष्ठों के विज्ञापनों पर चूहे का बटन।

दस पंद्रह मिनट बाद वे बाहर आ गए।

दातादीन – लो भवानी, रतन के लिए चाय पानी के खर्चे का तो इंतजाम कर ही दिया, अब तो खुश।

मोहन बाबू - ऐसा ही लिखता रहे बर्खुरदार!

उधर कुछ दिनों के बाद रतन प्रकाश को गूगल से एक ईमेल प्राप्त हुआ। उसमें लिखा था:-

हमें खेद है कि हमें आपका एडसेन्स खाता बंद करना पड़ रहा है। तारीख .... और .... के बीच आपके जाल पृष्ठ के पन्नों के एडसेन्स विज्ञापनों पर असाधारण रूप से अधिक क्लिकें आई हैं। हमें लगता है कि यह एडसेन्स के नियमों का उल्लंघन करते हुए हुआ है।

यदि आपको इस संबंध में कुछ कहना हो, तो निम्नलिखित ईमेल पत पर हमसे संपर्क करें।

एडसेन्स का उपयोग करने के लिए धन्यवाद।

एडसेन्स टीम

Saturday, April 04, 2009

तालिबानी इंसाफ

पाकिस्तान में उस सत्रह साल की किशोरी को अपने पड़ोसी के साथ बाहर निकलने के लिए जैसा इंसाफ मिला उस पर कोई टिप्पणी करना यहां मेरा इरादा नहीं है। इसकी खूब चर्चा टीवी चैनलों, अखबारों और ब्लोगों में हो चुकी है। उसमें कुछ भी नया जोड़ने को बाकी नहीं रह गया है।

यही दिमाग में आता है कि मध्य युग में चंगेज खान आदि जालिमों के जमाने में ऐसा ही सब हुआ होगा।

अफसोस होता है कि पाकिस्तान क्या-क्या सोचकर हमसे अलग हुआ था और आज क्या-क्या होकर रह गया है। पर पाकिस्तान की दुर्गति पर खुश होने का हमें कितना अधिकार है? यहीं मैंगलूर के पबों में लड़कियों के साथ जैसा सलूक किया गया क्या वह तालिबानी इंसाफ से जरा भी कम वहशियाना था?

--------
जिन्होंने अब तक टीवी या इंटरनेट में इस बर्बरता को नहीं देखा है, वे यूट्यूब के जरिए यहां उसे देख सकते हैं। हालांकि दृश्य काफी विचलित कर देने वाले हैं, पर, जैसा कि घुघूती बासूती ने उचित कहा है (टिप्पणी में देखें), हमें ऐसे कृत्यों के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति अपनानी होगी, जिसके लिए यह आवश्यक है कि हम इस तरह की वीभत्सता को अपनी आंखों से देख लें।

Friday, April 03, 2009

इस्लाम ने यूरोप को कैसे बचाया

यह एक और अंग्रेजी ब्लोग है। यह इस उद्देश्य से ही लिखा गया है कि लोग उत्तेजित होकर प्रतिक्रिया करें। और देखिए तो किस तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं।

मैं समझता हूं कि हमारे देश को छूते विषयों पर हमारे हिंदी ब्लोगरों को भी यही शैली अपनानी चाहिए ताकि खूब बहस हो, लोग विषय पर सोचें और सार-गर्भित प्रतिक्रियाएं करें।

अभी तो नब्बे फीसदी प्रतिक्रियाएं "आपका ब्लोग अच्छा लगा, ऐसे ही लिखते जाइए।" से आगे नहीं बढ़तीं, कोई विचार-मंथन शुरू नहीं हो पाता। क्या आप इससे समहमत हैं?

http://hubpages.com/hub/How-The-Great-Accomplishments-Of-Islam-Saved-Europe?comments

क्या अमरीका साम्यवादी देश बनता जा रहा है?

मैं आपका ध्यान इस अंग्रेजी ब्लोग की ओर दिलाना चाहूंगा जिसमें अमरीका के साम्यवादी हो जाने पर चर्चा की गई है। ब्लोग भड़काऊ शैली में है, पर देखिए तो इस पर जो प्रतिक्रियाएं जतलाई गई हैं, वे कितने संयत, गहरे और विचारशील हैं।

हमारे हिंदी ब्लोगों में इस स्तर का विचार-विमर्श कम ही देखने में आता है।

http://hubpages.com/hub/Why-Does-Socialism-Always-Fail

रामायण क्विज

आज राम नवमी है, भगवान राम का जन्मदिन।

राम की जीवन कथा रामायण के बारे में आप कितनी जानकारी रखते हैं, इस रामयण क्विज में भाग लेकर पता लगाइए।

http://hubpages.com/hub/Ramayana-Quiz


*

Wednesday, April 01, 2009

अमर उजाला में जयहिंदी


अमर उजाला के ब्लोग कोना स्तंभ में इस बार जयहिंदी का एक लेख शामिल किया गया। आप भी देखिए।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट