यह कविता किसकी लिखी हुई है, पता नहीं, पर अमरीकी नस्लवाद के बारे में एक काले बच्चे द्वारा उठाए गए ये सवाल दिलचस्प हैं। मूल कविता अंग्रेजी में है, उसका हिंदी अनुवाद पढ़िए:
पैदा हुआ तो मैं काला था
बड़ा होने पर भी काला ही रहूंगा
धूप में जाऊं तो भी काला रहूंगा
डर जाने पर भी काला ही रहूंगा
बीमार होने पर भी काला ही रहूंगा
और तुम श्वेत?
पैदा हुए, तो गुलाबी थे
बड़ा होने पर सफेद हो गए
धूप लगने पर लाल हो जाते हो
डर जाने पर पीला
ठंड लगने पर नीला
बीमारी में हरा
और मरने पर धूसर
और तुम मुझे कलर्ड कहते हो?
Friday, July 24, 2009
पैदा हुआ तो काला था...
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13 Comments:
बहुत ही अच्छी कविता. पूरे रंगभेद को परिभाषित करती हुई
बहुत ही दिल छू लेने वाली रचना के लिए बधाई....
bahut acchi avhivayakti ki hai us ladke ne,
अनुवाद दिलचस्प हैं.. पढ़कर आनंद आ गया .
छा गए !
यह कविता किसी के ब्लाग पर ही मैने पढा था .. किसी किशोर के द्वारा लिखी गयी है .. किसी प्रतियोगिता में इसे प्रथम पुरस्कार भी मिला है .. पर कौन और कहां .. बताना मुश्किल है।
गजब की कविता है नस्लवाद पर करारी चोट.
रंग से भेद करना तो गलत है। खोपड़ी के अन्दर जो भरा है - उसकी इज्जत होती चाहिये।
नस्लवाद पर करारी चोट करती हुई रचना!!!
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की बात से सहमति है. आपका अनुवाद तो बहुत सुन्दर हुआ है, मूल पंक्तियाँ तो अधकचरी सी ही थीं. संगीता पुरी जी की बात सही है, पिछले कई सालों से ईमेल पते चोरी करने वाले दलों द्वारा भेजे जाने वाले मेल-श्रंखलाओं में यह लाइनें भी थीं जिन्हें (झूठमूठ ही) संयुक्त राष्ट्र द्वारा पुरस्कृत बताया गया था. इस बारे में वेद रत्न शुक्ल की एक पुरानी पोस्ट और उसकी टिप्पणियां यहाँ पढी जा सकती हैं:
http://bakaulbed.blogspot.com/2008/12/blog-post.html
अनुराग जी (स्मार्ट इंडियन), यह कड़ी देने के लिए आभार। मूल अंग्रेजी कविता मुझे भी जंक मेल में ही मिली थी।
मूल कविता से कहीं ज्यादा सुंदर अनुवाद है। पुरस्कार के लायक।
about of islam
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