अरावली पर्वतमाला की गिनती विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में होती है। दिल्ली से आरंभ होकर यह पर्वतमाला राजस्थान में से गुजरती हुई ठेठ गुजरात तक चली गई है। उसका पूर्वी छोर विंध्याचल को स्पर्श करता है और पश्चिमी छोर थार के रेतीले टीलों में विलीन होता है। उसका पश्चिमी भाग शुष्क है, जबकि पूर्वी भाग हरा-भरा। अरावली का उच्चतम भाग गुरु शिखर (1722 मीटर) है, जो माउंट आबू में है। यद्यपि बढ़ती आबादी के कारण अरावली का काफी हिस्सा उजड़ गया है, फिर भी उसमें इक्के-दुक्के ऐसे स्थल आज भी बचे हैं जहां का पुरातन प्राकृतिक वैभव बरकरार है। उनमें से एक है जयसमंद झील।
अरावली की गोद में स्थित जयसमंद झील एशिया के सबसे बड़े मानव-निर्मित जलाशयों में से एक है। उसका निर्माण मेवाड़ के महाराणा जयसिंह ने 1691 ई में कराया था। पहले वहां एक छोटा पोखर था, जिसे ढेबर झील कहा जाता था। कहते हैं कि महाराणा जयसिंह का बचपन का नाम ढेबर था और इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया था। अरावली की एक घाट को दीवार द्वारा चिनवाकर इस छोटे पोखर को विशाल झील में बदला गया। जयसमंद झील की अधिकतम चौड़ाई 14 किलोमीटर है। उसका घेराव 88 किलोमीटर और कुल क्षेत्रफल 21 वर्ग किलोमीटर है।
महाराणा जयसिंह ने इस सुरम्य झील का नाम जयसमंद (जयसमुद्र) रखा और उसके किनारे अनेक भव्य महल बनवाए। इनमें शामिल हैं उनकी सबसे छोटी रानी कोमलादेवी का "रूठी रानी का महल" और हवा महल।
हवा महल के संबंध में एक रोचक कहानी प्रचलित है। एक बार जयसमंद झील के किनारे महाराणा जय सिंह ने सेना सहित पड़ाव डाला था। तब उन्होंने पास की एक बारह हाथ चौड़ी खाई की ओर इशारा करते हुए अपने एक घुड़सवार से पूछा, "क्या तुम इस खाई को घोड़े पर छलांग लगाकर पार कर सकते हो?" घुड़सवार ने महाराणा की चुनौति स्वीकार की और एक बार नहीं तीन बार अपने घोड़े पर खाई को छलांग लगाकर पार किया। तीसरी बार, जब वह हवा में ही था, उसने घोड़े का मुंह फेर दिया जिससे वह उसी स्थान पर लौट आया जहां से उसने छलांग आरंभ किया था। यह हवाई कलाबाजी देखकर महाराणा दंग रह गए। घुड़सवार को शाबाशी देते हुए उन्होंने कहा, "जो तुम मांगो, सो तुम्हारा।" तब घुड़सवार ने महाराणा से कहा कि वे उसी स्थान पर कोई स्मारक बनवा दें, ताकि उसकी यह विस्मयकारी घुड़सवारी सदा याद की जाती रहे। महाराणा ने तुरंत वहां एक महल बनवाने का आदेश जारी किया और जब वह पूरा हुआ, उसका नाम घुड़सवार के हवाई प्रदर्शन की याद में हवा महल रखा।
किंवदंती है कि जयसामंद झील में नौ नदियां और निन्यानवे नालों का पानी आता है। यदि हम छोटे नालों को भुला दें, तो उसमें गोमती, झमरी, रूपारेल और बागार इन चार नदियों का पानी भरता है। झील के बीच तीन टापू भी हैं, जिन पर कभी मीणा और साधु समुदाय के लोग रहते थे।
आज यह विश्व-विख्यात झील जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य का एक अंग है। झील तथा उसके टापू और पृष्ठभाग में मौजूद अरावली पर्वत-माला असंख्य जलपक्षियों को आकर्षित करते हैं। इन पक्षियों में शामिल हैं हवासिल, बुज्जे, चमचे, जलमोर, जलमखानी, कुररी, बलाक, क्रौंच, बगुले आदि।
झील 50 किलोमीटर दूर स्थित उदयपुर नगर के लिए पानी का मुख्य स्रोत भी है। उदयपुर को झील का पानी ले जानेवाली पाइपें अभयारण्य के पश्चिमी छोर से गुजरती हैं। अनेक स्थानों पर इन पाइपों से रिसता पानी अभयारण्य के पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने का काम आता है।
जयसमंद झील के निर्माण हेतु महाराणा जयसिंह को 330 मीटर लंबा और 35 मीटर चौड़ा बांध बनवाना पड़ा, जो समुद्र की सतह से 320 मीटर ऊंचा है। जब जयसमंद झील पूरी भर जाती है, उसमें 6 करोड़ घन मीटर पानी समाता है, जो 2,000 वर्ग मील में उगी चावल की फसल को सींच सकता है। बांध पास की बखाड़ी खानों से लाए गए सफेद संगमरमर जैसे पत्थर से बना है।
बांध के सबसे ऊंचे स्थान पर नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर है।
बांध 2 जून 1691 को पूरा हुआ। उस पर चार साल से रुक-रुककर काम चल रहा था। बांध पूरा होने पर जो अनुष्ठान आयोजित किया गया, उसमें महाराणा ने अपनी प्रजा को स्वर्ण तुल्यदान (अपने वजन के बराबर सोने के सिक्कों का दान) देते हुए झील की पैदल परिक्रमा की।
इस बांध की डूब में 10 गांव आए। उन्हें झीले के किनारे पुनः बसाया गया। आज भी जब गर्मियों में झील का पानी उतरता है, झील में इन गांवों के खंडहर नजर आते हैं।
जयसमंद झील की पृष्ठभूमि में पलाश के वृक्षों के बड़े-छोटे झुरमुट से आच्छादित अरावली के हल्के ढलान हैं। अधिक ऊंचे ढलानों के निचले भागों पर बांस उगते हैं। खजूर, गूलर, लसोड़ा आदि शुष्क प्रदेश के पेड़ नालों के सूखे पाटों को आबाद किए हुए हैं। खुले मैदानों में बेर और खैर वृक्ष हैं। इन वृक्षाच्छादित ढलानों में असंख्य पशु-पक्षी निवास करते हैं। मांसभोजियों में तेंदुआ, लकड़बग्घा, गीदड़ और जंगली बिल्ली प्रमुख हैं। तृणभक्षियों में चीतल, सांभर, चिंकारा, खरगोश और नीलगाय का नाम लिया जा सकता है। सर्पों में नाग, करैत, दबोइया, अजगर और धामन हैं। जल-जंतुओं में मगर, ऊदबिलाव और अनेक जाति की मछलियां हैं। पक्षी तो विशेषरूप से सर्वसुलभ हैं। यह वन-श्री उदयपुर के पुराने राजा-महाराजाओं द्वारा इस क्षेत्र को दीर्घकाल तक मिली सुरक्षा का नतीजा है। यह सारा इलाका उस समय इन राजाओं का पसंदीदा शिकारगाह था। उनके द्वारा बनवाई गई अनेक शिकार की ओदियां आज भी वहां मौजूद हैं।
जयसमंद झील उदयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पर्यटकों के लिए उदयपुर में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
Monday, July 27, 2009
विजय का समुद्र
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण 3 टिप्पणियाँ
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