टाइम्स ओफ इंडिया दुनिया का सबसे बड़ा अंग्रेजी अखबार होने का दम भरता है।
उससे आज दुनिया की सबसे बड़ी छापे की भूल भी हो गई है। इतनी बड़ी भूल कि उसे अखबारी इतिहास में ऊंचा स्थान मिलेगा।
यदि आप इस अखबार को मंगाते हों, तो आज (जून 16) की प्रति के संपादकीय पृष्ठ को देखें, और साथ में इसी अखबार के कल (जून 15) के संपादकीय पृष्ठ को भी। क्या आपको दोनों पृष्ठों में कोई अंतर नजर आया?
उन लोगों की सुविधा के लिए जो इस अखबार को नहीं मंगाते, मैं दोनों पृष्ठों का चित्र नीचे दे रहा हूं। ध्यान से देखकर बताइए कि दोनों पृष्ठों में कोई अंतर है?
क्या, तारीख के सिवा आपको कोई अंतर नहीं नजर आया? अरे यही तो है महा भूल जो इस अखबार से हो गई है!
इस अखबार ने जून 15 और जून 16 को अपने अखबार में हूबहू एक ही संपादकीय पृष्ठ छाप डाला है! वे ही संपादकीय लेख, वही मुख्य लेख, वे ही पाठकों के पत्र। हर दृष्टि में दोनों पृष्ठ एक-जैसे हैं। केवल तारीख अलग है।
इतनी बड़ी भूल तो एक पृष्ठ वाला नुक्कड़ का अखबार भी नहीं करता। और यह भूल हुई है दुनिया का सबसे बड़ा अंग्रेजी अखबार कहलानेवाले टाइम्स ओफ इंडिया से, जिसके पास अपार साधन हैं, दर्जनों प्रूफ-शोधक, उपसंपादक, संपादक, प्रबंध संपादक, कंप्यूटर, और न जाने क्या-क्या अत्याधुनिक तामझाम।
यह अखबार हिंदी, हिंदी साहित्य, हिंदी साहित्यकार, हिंदी अखबार आदि पर खूब खिल्ली उड़ाता है। आज हमें मौका मिला है इसे ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए, तो खूब हंसिए इस अखबार की इस महा भूल पर, जिसने इसके लिए मुंह छिपाने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है।
आखिर अखबार का सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ संपादकीय पृष्ठ होता है, जिस पर प्रधान संपादक से लेकर, अखबार मालिक तक सबकी नजर जाती है। उसे सजाने-संवारने में सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। और इसी पृष्ठ पर इतनी बड़ी भूल हो गई है। सारा पृष्ठ ही गलत छप गया है! होगी अखबारी इतिहास में इससे बड़ी गफलत की मिसाल!
अब देखना यह है कि यह अखबार कल के संस्करण में क्या सफाई पेश करता है, इस महा भूल के बारे में।
यदि आप कुछ पैसे कमाना चाहते हों, तो इस अखबार के कल और आज के संस्करण खरीदकर संजोकर रखें। ये प्रतियां बेशकीमती हैं। कौन जाने, कल को कोई सनखी कलेक्टर इस गलत छपे संपादकीय पृष्ठ वाली प्रति को आपसे हजारों रुपए देकर खरीद ले जाए!
21 Comments:
मसालेदार, मजेदार.
यह तो संग्रह की चीज हो गई. धन्यवाद बताने के लिए.
वाह गुरु.... साबित कर दी समझदारी....।
भगवान अखबार वालों को अक्ल दे।
- गंगू तेली
भारत में अंग्रेजी के अखबार तरह-तरह की बैशाखियों के सहारे चल रहे हैं। सरकारी विज्ञापनों की बैसाखी, देश भर के पुस्तकालयोंकी बैसाखी, कुछ अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बैसाखी, एयरलाइनों की बैसाखी, कुछ आत्मविश्वासहीन भारतीय छात्रों की बैसाखी जो इसे अंग्रेजी सीखने के लिये इस्तेमाल करते हैं आदि।
इन सबके बावजूद भी भारत के दस प्रमुख अखबारों में इनकी गिनती नहीं हैं! ये बड़े महान हैं।
गयी किसी बेचारे की नौकरी...
सुब्रमण्यम जी, ऐसा अधिकांश अख़बारों द्वारा उन पृष्ठों के साथ किया जाता है जिनमें तात्कालिक महत्त्व की खबरें नहीं छपतीं. सम्पादकीय पृष्ठों पर सामान्यतः विविध लेख, पात्र, और ऐसी चीज़ें छापी जाती हैं जो वास्तव में समाचार नहीं होता. यह कोई बड़ी भूल नहीं है. मैंने अखबार में कुछ समय काम किया है, अलग-अलग संस्करणों में ऐसा करना आम है.
ओह! मैं देख ही न पाया कि दोनों एक ही शहर के अलग-अलग दिनों के समाचार पत्र हैं! वास्तव में बड़ी भूल है! आप सही थे!
इस शोध के लिए धन्यवाद। भला ऐसे नायाब उदाहरण कहॉ मिलेंगे, संग्रहणीय है।
समय पर तनखा नहीं दोगे तो यही छापेगें.. मजेदार
आप की पोस्ट में 15 तारीख का अखबार तो दिख रहा है। लेकिन 16 तारीख का नहीं। फिर क्या दोंनों एक ही संस्करण हैं? यह पता नहीं। हो सकता है 15 तारीख वाला सिटी एडीशन हो और 16 तारीख वाला डाक एडीशन। ऐसी अवस्था में संपादकीय पृष्ठ एक ही होगा। क्यों कि कोटा में दिल्ली का अखबार जो सुबह पहुँचता है और मुम्बई का जो शाम को पहुँचता है वह एक दिन पहले के सिटी एडीशन के संपादकीय लिए होते हैं।
अगर सच में कोई भूल हुई है, तो बहुत बड़ी है । कहीं दिनेश जी की बात तो सच नहीं ।
बेहतरीन सूचना ।
द्विवेदी जी और हिमांशू जी: दोनों दिनों के अखबार का सुबह का संस्करण है, वह संस्करण जो अखबारवाला सुबह सबके घर डाल जाता है।
मैंने दोनों अंकों के मास्टहेड में देखा, दोनों में कोई अंतर नहीं मालूम पड़ा। उनमें यही लिखा है कि वे अहमदाबाद संस्करण हैं। डाक या सिटी संस्करण का सूचक कोई शब्द मुझे वहां नहीं दिखा।
इसलिए ऐसा ही लगता है कि उनसे कोई भूल हुई है।
कल यदि वे कोई भूल-सुधार संदेश छापते हैं, तो इसका पक्का प्रमाण मिलेगा।
यदि वे छापें, तो मैं उसका कटिंग जयहिंदी में जरूर दूंगा।
यह तो भयानाक गलती है. हिंदी की हंसी उड़वाने के लिए कुछ हद तक हिंदी भाषी भी जिम्मेदार है.हममे हिंदी के प्रति हीन भावना है अंग्रेजी बोलने वाले को पढ़ा लिखा समझा जाता है और हिंदी वाले को अनपढ़ जब तक यह मानसिकता रहेगी ..वे लोग हमारी हंसी उडायेंगे ही.बात वही है अगर हम खुद को सम्मान नही देंगे कोई हमे क्यों सम्मान देगा ?
कल का इन्तिज़ार है.
माफ करने वाली भूल नहीं है यह। पर क्या करें अखबारों में काम करने वाले भी तो इंसान होते हैं। कई बड़े अखबारों में कई बार इस तरह की भूल हो जाती है। यह निश्चित मानकर चलिए कि जिसने भी यह भूल की होगी उसकी तो जरूर अखबार से छूटी हो गई होगी। हमें आज भी याद है हम एक अखबार में काम करते थे, तो हम वहां पर अपने खेल का पेज लगाकर रात को 12 बजे आ गए थे। हमारे इसी पेज में प्रथम पेज की शेष खबरें जाती थीं। पहले संस्करण में सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन दूसरे संस्करण में जब पहले पेज की शेष खबरें लगवाई गईं तो पहले पेज के संपादक ने ध्यान नहीं दिया और आपरेटर ने एक माह पुराने पेज में खबरें लगा दी और वह पेज छप गया। दूसरे दिन अखबार देखकर सबसे पहले संपादक को फोन हमने किया। पहले पेज के संपादक ने सारा दोषा हम पर डालने का पूरा प्रयास किया, हमने संपादक के सामने पहला संस्करण रख दिया और कहा कि अगर पहले संस्करण में यह गलती होती तो दोषी हम होते। जब दूसरे और अंतिम संस्करण में हमारे पेज पर काम करवाने वाले पहले पेज के संपादक महोदय हैं तो फिर हम कहां दोषी हैं। अगर हमसे ऐसी भूल हुई होती तो हम खुद नौकरी छोड़ कर चले गए होते। उन पहले पेज के संपादक महोदय को काफी माफी के बाद रखा गया और पेज को लगाने वाले आपरेटर को निकालने की बात की गई तो हमने कहा कि जब सबसे बड़ी गलती करने वाले संपादक को नहीं निकाला जा रहा है तो बेचारे कम पढ़े-लिखे आपरेटर का क्या दोष? पेज चेक करने का काम संपादक का होता है न कि आपरेटर का। तो जनाब ऐसी गलतियां हो जाती हैं लेकिन ऐसी गलती करने वाले को खुद अपनी जिम्मेदारी लेते हुए अपनी नौकरी को नमस्ते कर देना चाहिए। अगर वास्तव में उस गलती को करने वाले इंसान में पत्रकारिता की थोड़ी भी समझ होगी तो वे ऐसा ही करेंगे। बाकी अखबार गलती के लिए खेद प्रगट के अलावा और क्या कर सकता है। जब तीर कमान से निकल जाए तो फिर उससे कौन मरता है या घायल होता है क्या फर्क पड़ता है। अखबार तो छप गया है अब इसका क्या किया जा सकता है।
khoob bataya
achha time pass hoga logon ka
समाचार तो अक्सर रिपीट हो जाते है मगर पूरा का पूरा पेज रिपीट होना…………। निपट गया होगा कोई बकरा अब तक़्।
पहले तो कार्टून ही दोबारा तिबारा लगा देते थे। वर्तनी की गलतियों को तो देखना ही छोड़ दिया है।
घुघूती बासूती
मज़ेदार!
हमने pdf फाईल तो रख ली दोनो पृष्ठों की
arey bhai sampadak mahoday Chhutti par gaye honge. Waise bhi oon logo ko malum hai ki Sampadkiye eetni ghatiya hoti hai ki shayad hi koi padhta hoga. Ab ho sakta hai aapko wo log prize waigarah bhi de dhundh kar ki koi to hai jo ToI ka sampadkiye padhta hai.
Lekin aapni sahi pakdi hai.
ऐसा भी होता है.
बहुत पैनी नजर रखते हैं आप चारों दिशाओं में.
i stopped calling it a news paper ten years ago ! itz a mere piece of toilet paper ,but i never wrote agaist it 'cos it is the most loved by readers after all. itz Delhi edition has surpassed all records of obscenity . u will be shocked if u read how brazenly this paper advocates drinking and pre marital sex.
अच्छी खबर दी है |
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