Tuesday, June 02, 2009

लंदन की आग

आज से लगभग तीन शताब्दी पूर्व लंदन शहर में एक भयंकर आग लगी थी, जो लगातार चार दिनों तक जलती रही। इस अग्निकांड में केवल आठ लोगों की मृत्यु हुई लेकिन इससे एक करोड पाउंड की संपत्ति का नुक्सान हुआ।

१ सितंबर १६६६ की रात राजा चार्ल्स के एक बेकर ने लंदन के पुडिंग लेन पर स्थित अपनी दुकान बंद की तो उसे पता नहीं था कि दुकान की भट्टी में आग अब भी सुलग रही है। उसके चले जाने के तीन ही घंटे बाद उसकी दुकान लपटों से घिर गई और घना काला धुंआ आसमान की ओर उठने लगा। बेकर, जो दुकान के पिछले हिस्से में ही रहता था, किसी प्रकार अपने परिवार के साथ बच निकला। भागने की हड़बड़ाहट में उसे मकान के ऊपरी हिस्से के एक कमरे में सो रही अपनी नौकरानी का खयाल नहीं रहा, जो आग की भेंट चढ़ गई।

जब बेकरी की ईमारत पूरी जल चुकी तो आग आसपास के मकानों में भी फैलने लगी। लोग आग बुझाने की फिक्र में न लगकर अपनी-अपनी जान-माल की रक्षा में लगे रहे। अगले दिन तक आग ३०० मकानों में फैल गई। थेम्स नदी पर स्थित मशहूर लंदन पुल का उत्तरी हिस्सा भी धुआने लगा।

धीरे-धीरे लंदन के नागरिकों को समस्या की गंभीरता का एहसास होने लगा। वे आग बुझाने के लिए टोलियां बनाकर काम करने लगे। राजा को भी आग की सूचना भेज दी गई। वह स्वयं आकर आग बुझाने के काम की निगरानी करने लगा। उसने आग के रास्ते पर पड़ने वाले मकानों को गिरवाने का आदेश जारी किया, लेकिन इन मकानों के मालिकों ने इस आदेश का पुरजोर विरोध किया। हवा का रुख भी आग को भड़काने में सहायता कर रहा था और आग बुझानेवालों के काम को मुश्किल बना रहा था। थेम्स नदी के किनारे स्थित कुछ दुकानों में जल्दी आग पकड़नेवाली वस्तुएं रखी थीं, जैसे तेल, भूसा, इमारती लकड़ी, कोयला आदि।

आग से बेघर हुए नागरिकों को रात खुले मैदानों और उद्यानों में बितानी पड़ी। कुछ लोगों ने थेम्स नदी पर तैर रही नावों और जहाजों पर कब्जा जमाकर उन पर रात बिताई। कुछ चालाक लोगों ने मौके का फायदा उठाकर जलते मकानों से अपना सामान ले जाने वाले लोगों को 40 पाउंड के भाड़े पर ठेले उपलब्ध कराकर काफी पैसे कमाए। यह भाड़ा आज की कीमत की दृष्टि से भी ज्यादा ही कहा जाएगा। आग को नियंत्रित करने की हर कोशिश के बावजूद आग फैलती रही। पूर्वी दिशा से चलनेवाली तेज हवाओं ने उसे विकराल स्वरूप दे दिया।

चौथे दिन हवा का रुख एकाएक बदल जाने से शहर अधिक नुक्सान से बच गया। अंततः आग 5 सितंबर को ही पूरी तरह बुझाई जा सकी। तब तक 93 गिरिजाघर, 52 गोदाम, अनेक चित्रशालाएं, संग्रहालय और पुस्तकालय जलकर राख हो चुके थे। इनमें प्रसिद्ध सेंट पोल गिरिजाघर भी शामिल था। बाद में जले हुए गिरिजाघरों में से केवल 50 की मरम्मत हो सकी।

शहर के जले हुए हिस्सों को पुनः बसाने में लगभग पांच साल लगे। यद्यपि आग राजा के ही एक कर्मचारी की लापरवाही से भड़की थी, आग के कारणों की जांच करने के लिए गठित एक राज्य समिति ने स्टेफेन ह्यूबर्ट नामक एक फ्रेंच नागरिक को दोषी ठहराकर उसे फांसी की सजा दिलवाई।

5 Comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत धन्यवाद. ज्ञानवर्धन हुआ.

रामराम.

परमजीत सिहँ बाली said...

जानकारी के लिए आभार।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अंधेर नगरी चौपट राजा ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

कुल 13 गिरिजाघर जले और पचास की मरम्मत हो सकी?

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

द्विवेदी जी: इस गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार। सही संख्या 93 होना चाहिए था, 13 नहीं। टाइपिंग में भूल हो गई। इसे अब ठीक कर दिया है।

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