सांगली के मकरंद काले नामक व्यक्ति ने दालों से बुलेट प्रूफ जैकट बनाने की विधि खोज निकाली है। इस विधि से बना जैकेट एके-47 जैसी घातक बंदूकों से निकली गोली को भी रोक सकता है। उन्होंने यह विधि 2003 में विकसित की थी। उनका कहना है कि भारतीय सेना ने इस प्रौद्योगिकी को जांच-परख लिया है। काले का कहना है कि वे अब उसमें और सुधार करने में लगे हुए हैं, ताकि वह डेढ़ किलोमीटर दूर से आई गोली को भी रोक सके।
काले एक खिलाड़ी हैं और सांगली में उनका एक स्पोर्ट्स अकादमी है। उन्होंने इस जैकेट का नाम आयुर्वेदिक जैकेट रखा है। वे कहते हैं, मैं इस जैकेट के जरिए सिद्ध करना चाहता हूं कि आर्युवेद में असीम ताकत निहित है।
काले द्वारा निर्मित जैकट का वजन मात्र 2.1 किलो है और उसकी कीमत मात्र 22,000 रुपए, जबकि भारतीय सेना द्वारा उपयोग किए जानेवाले जैकट का वजन 9 से 11 किलो जितना होता है और उसकी कीमत 40,000 रुपए।
यह आश्चर्यजनक आविष्कार तथा अन्य 50 आविष्कार अहमदाबाद की तीन संस्थाओं -- राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान, ज्ञान, और हनीबी नेटवर्क -- द्वारा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के उपलक्ष्य पर सोमवार 11 मई 2009 को पुणे में आयोजित एक कार्यशाला में सामने आए। राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष और भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के प्रोफेसर डा. अनिल गुप्ता ने कहा, कार्यशाला के लिए पुणे को इसलिए चुना गया क्योंकि इस शहर में मोटरकारों के पुर्जे बनानेवाले अनेक छोटे-बड़े उद्यम हैं, जहां के कारीगरों में गजब की आविष्कारशीलता पाई जाती है। उनके आविष्कारों को पहचानकर बाहर लाने की आवश्यकत है, क्योंकि इनमें से कई आविष्कार ऐसे हैं जिनसे मानव समुदाय को लाभ पहुंच सकता है।
कार्यशाला में आविष्कारकों के अलावा डिजाइनर, इंजीनियर, विक्रेता, वैज्ञानिक आदि शामिल थे। उन सबने मिलकर विचार किया कि कार्यशाल में प्रस्तुत हुए आविष्कारों को बाजार में कैसे उतारा जा सकता है।
Monday, June 08, 2009
दालों से बना बुलेट प्रूफ जैकेट
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: विविध
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 Comments:
रोचक। इसकी कुछ सिद्धान्त/तकनीक के बारे में बताते तो पूरा आनन्द आता।
दालें और महँगी हो जाएँगीं। अमेरिका जेनेटिक म्यूटेशन के द्वारा इसकी काट के लिए कॉर्न पर शोध में जुट जाएगा और इस्लामी जिहादी AK 47 छोड़ कर तलवार पर उतर आएँगें .......
सैनिक के पास रहेने वाली आपातकालीन रसद में कटौती की जाएगी। आवश्यकता पड़्ने पर वे जैकेट को ही चबा सकेंगे....
इस पर तो व्यंग्य का पूरा मसाला है। क्यों न एक लिखते हैं।
वैसे खोज है कमाल की।
ज्ञानदत्त जी: यह पोस्ट मैंने एक न्यूज रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया है, जिसमें इससे अधिक जानकारी नहीं है। मूल लिंक यह है -
http://www.nif.org.in/nifnews/GRID/ayurved.htm
गिरेश जी: मैं इतना ही कहूंगा, घर की मुर्गी दाल बराबर! बाकी आप समझ लें!
Post a Comment