कंप्यूटर के जमाने में डूबता आदमी इस तरह मदद मांगेगा।
इससे मिलती-जुलती घटना मेरे साथ भी घटी है। एक बार मैं किसी पुस्तकालय में बैठकर नोट्स ले रहा था। कहना न होगा कि यह भारतीय पुस्तकालय था, जहां कंप्यूटर आदि की व्यवस्था नहीं थी। कलम-कागज का ही सहारा था। दुपहर का वक्त था और भीषण गरमी थी। पुस्तकालय की ऊंची सी छत से अंग्रेजों के जमाने का एक भारी-भरकम पंखा मंथर गति से घूम रहा था, बस। गर्मी और पसीने से बुरा हाल था। ऊपर से नींद की झपकियां भी आ रही थीं। किसी तरह आंखें खुली रखते हुए मैं नोट्स लिए जा रहा था। मेरा आधा मन ही उस काम में लगा हुआ था।
शाम को घर आकर नहा-धोकर फ्रेश होने के बाद मैं पुस्तकालय से उतारे गए नोट्स को देखने बैठा। मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि मैंने हर दो-तीन पैरा के बाद बड़े-बड़े कैपिलटल अक्षरों में SAVE शब्द लिख रखा है!
स्पष्ट ही कंप्यूटर का आतंक उस समय भी मेरे दिमाग में छाया हुआ था। हमारे यहां बिजली का कोई भरोसा नहीं होता। कभी भी बिजली गुल हो सकती है और कंप्यूटर पर किया कराया सारा काम व्योम में उड़ सकता है। इसलिए हर भारतीय बड़ी निष्ठा से हर पांच सेकंड पर कंप्यूटर का सेव बटन दबाता रहता है। यही बात मेरे आधे सोए हुए मन पर छाई हुई थी, और कंप्यूटर पर काम न करते हुए भी, मैं आदतन कागज पर लिखे हुए काम को 'सेव' किए जा रहा था!
Saturday, June 06, 2009
कार्टून : बचाओ! बचाओ!
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: कार्टून
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3 Comments:
्बढिया आलेख।
veery fine
Ctr+S
सर, अधूरा काम न करें। कहीं F2 से लेकर F12 तक के बटन नाराज़ हो गए तो आप का क्या हाल होगा ? जरा सोचिए।
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