जब असम के रहनेवाले दाधी पाठक 55 वर्ष के हुए, तो उनके सारे दांत गिर गए। कृत्रिम दांत लगवाने के लिए वे दंत चिकित्सक के पास गए, लेकिन ये इतने महंगे निकले कि उनकी बस के बाहर थे।
पर पाठक जी निराश नहीं हुए, उन्होंने स्वयं ही अपने लिए एक दंत पंक्ति बना ली, और बांस से, जी हां, बांस से। यह उनके लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि बांस की असीम उपयोगिता के प्रति उनमें गहरी श्रद्धा है। इसके सबूत हैं स्वयं उनका मकान और साइकिल, जो पूरे-पूरे बांस से बने हैं। गांव के लोग तो उन्हें बास बाबा कहकर ही पुकारते हैं।
अब बांस के दांत बनाने की अपनी खोज का लाभ वे अन्य लोगों को भी देने लगे हैं, जिसके लिए उन्होंने अपने ही घर में एक छोटा दवाखाना खोल लिया है। वे एक दांत के लिए बीस रुपए लेते हैं। बांस का एक दांत लगभग दो घंटे में तैयार हो जाता है। पाठक जी कहते हैं कि उनके द्वारा बनाया गया बांस का दांत लगभग 12 साल चलता है, क्योंकि बांस एक टिकाऊ पदार्थ है और जल्दी सड़ता नहीं है।
पाठक जी को बांस से इतना अधिक लगाव है कि उन्होंने कह रखा है कि उनका अंतिम संस्कार बांस की चिता पर ही किया जाए ।
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दाधी पाठक का ऊपर दिया गया चित्र, श्री पी एन सु्ब्रमण्यम के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। उसका मूल लिंक यह है -
http://www.goodnewsindia.com/Pages/content/discovery/sristi.html
Saturday, June 06, 2009
बांस के दांत
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: विविध
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4 Comments:
कौतूहलपूर्ण. हमें आप पर बड़ा गुस्सा आता है. इतने सुन्दर पोस्ट लिखते हैं परन्तु कभी भी चित्रों से उन्हें supplement करना आवश्यक नहीं समझा. आपकी यह पोस्ट तो बहुत ही महतवपूर्ण है. देखिये इस लिंक में उस दाधी पाठक की फोटू भी है.
http://www.goodnewsindia.com/Pages/content/discovery/sristi.html
अरे भाई जल्दी से फोटो चिपकाइए।
वैसे बाँस से अपार्टमेंट बिल्डिंग बनाना महँगा होगा क्या? अब यह न कहिएगा कि असम में बन चुकी है । यदि है तो एक पोस्ट और हो जाए।
सुब्रमण्यम जी: आपकी झिड़क सिर-आंखों पर। आगे से कोशिश करूंगा कि पोस्टों के साथ उपयुक्त चित्र भी लगाऊं। दाधी पाठक के फोटो का लिंक देने के लिए आभार। इस फोटो को अब पोस्ट में लगा दिया है।
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