Thursday, June 11, 2009

हिंदी सचमुच विश्व भाषा बन चुकी है

हिंदी सचमुच विश्व भाषा बन चुकी है, हालांकि हमारे देश में उसकी अब भी अवगणन होती है। मैं अपना एक अनुभव सुनाता हूं जिससे आपको पता चलेगा कि हिंदी वास्तव में कितनी फैल गई है विदेशों में।

जिन लोगों ने मेरा प्रोफाइल देखा है, वे जानते होंगे कि मैं हिंदी अनुवादक हूं। अनुवाद का काम प्राप्त करने के लिए मैंने इंटरनेट पर कई जगह अपना बायोडेटा डाल रखा है, जिसमें मेरी अर्हताएं, अनुवाद का अनुभव, संपर्क जानकारी आदि रहते हैं।

एक दिन मुझे ईरान की एक स्त्री से ईमेल मिला। उसने इंटरनेट में खूब खोजबीन करके मेरा अता-पता ढूंढ़ निकाला होगा। इसमें वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि अनुवाद एजेंसियों के कर्मचारी साधारणतः महिलाएं ही होती हैं, और वे मेरे प्रोफाइल से ईमेल पता प्राप्त करके मुझे आए दिन ईमेल भेजती रहती हैं। पर यह ईमेस किसी अनुवाद एजेंसी से नहीं था। यह ईरान की एक छात्रा का पत्र था। अनोखी बात यह थी, कि पत्र हिंदी में था, और वह भी देवनागरी में लिखा हुआ। अब भारत में ही 90 फीसदी हिंदी भाषी कंप्यूटर पर हिंदी कैसे लिखी जाती है, यह नहीं जानते। पर ईरान की इस छात्रा का पत्र देवनागरी लिपि में हिंदी में था।

मैं यह देखकर सचमुच हैरान रह गया और मैंने पत्र को दो-तीन बार पढ़ डाला। तब मेरा आश्चर्य और भी बढ़ गया। पत्र में उस छात्रा ने हिंदी व्याकरण के एक गूढ़ विषय के बारे में मेरी राय मांगी थी। और ऐसा गूढ़ विषय कि उसे जवाब लिखने के लिए मुझे कामता प्रसाद गुरु के हिंदी व्याकरण से लेकर किशोरीदास वाजेपेयी के हिंदी शब्दानुशासन तक कितने ही व्याकरण ग्रंथों को उलटना-पलटना पड़ा।

इस छात्रा को हिंदी से इतना लगाव हो गया था कि उसने अपना एक हिंदी उपनाम तक रख लिया था, सपना चांदनी, जो उसके ईरानी नाम का हिंदी रूपांतर था। जैसे-जैसे इस छात्रा से मेरा परिचय बढ़ता गया, मैंने उससे पूछ ही डाला कि तुमने इतनी अच्छी हिंदी कैसे सीख ली?

उसने इसके जवाब में बड़ी ही मजेदार बात बताई। उसे हिंदी फिल्मों से बेहद रुचि है। शाहरुखान पर तो वह दीवानी है, और उसके हर फिल्म को देखती है। उसने मुझे बताया कि वह पहले शाहरुख खान के संवाद बिलकुल समझ नहीं पाती थी, क्योंकि शाहरुख संवाद बहुत तेज-तेज बोलता है। उसके संवाद समझने के लिए ही उसने हिंदी सीखना शुरू किया। हिंदी फिल्मों के शीर्षक हिंदी और उर्दू दोनों में आते हैं। फारसी लिपि उर्दू लिपि से बहुत मिलती-जुलती है। इसलिए उर्दू में लिखे शीर्षक वह आसानी से पढ़ लेती है। और इन उर्दू शीर्षकों को उनके समांतर के हिंदी शीर्षकों से तुलना करके उसने एक-एक करके हिंदी वर्णमाला के सभी अक्षरों को पढ़ना-लिखना सीख लिया। देखिए, कितनी लगन और प्यार है इस विदेशी छात्रा में हिंदी के प्रति। कहते हैं न, जहां चाह हो, वहां राह भी निकल ही आती है। इस लड़की ने इस कहावत को सिद्ध करके दिखा दिया।

मैं इस छात्रा के हिंदी प्रेम से इतना प्रभावित हुआ कि मैंने उसे कामता प्रसाद गुरु के हिंदी व्याकरण की एक प्रति अपने खर्चे पर भेज ही दी। मुझे पूरा विश्वास है कि यह लड़की इस किताब का सही उपयोग कर सकेगी।

यहां उसके द्वारा लिखी गई कुछ पंक्तियां दे रहा हूं, जिससे आपको भी अंदाजा हो जाएगा कि हिंदी पर उसकी पकड़ कितनी मजबूत है –
-------------
नमस्ते बाला जी

बहुत ख़ुशी हुई आप का जवाब देख कर  अच्छा, तो आप यात्रा पे गए थे। ठीक है, मुझे आशा है एक अच्छा सा यात्रा हुआ होगा।

आप ने देखी मेरी ग़लती ? मैं ने ख़ुद आज देख ली। जब मैं पिछली चिट्ठी लिख रही थी, पुस्तक आने की वजह से इतनी ख़ुश थी कि अपना वाक्य ग़लत लिखा। " जो पुस्तक आप ने भेजी थी मुझको मिली " की जगह पर लिखा " जो पुस्तक आप ने भेजा था मुझको मिली "

मैं और भी इन्तिज़ीर करूँगी आप के विस्तार जवाब का, मगर ये सारे शब्द हैं (पुस्तक की विषयसूची के) जिनका अर्थ मुझे पता नहीं

अनुकरणवाचक ---> ?
अध्याय ---> ?
विकारी शब्द ---> ?
अव्यय ---> ?
विकृत ---> ?
वाक्यविन्यास ---> ?

( मुझे वाक्य का अर्थ पता है , वाक्य = sentence; पर वह दूसरा शब्द का मतलब क्या होता है ? और दोनो शब्द का मतलब एक दूसरे के क्या होता है ? )

क्रियार्थक ---> ?

( मुझे क्रिया का अर्थ पता है क्रिया = verb; पर वह दूसरा शब्द का मतलब क्या होता है ? aur और दोनो शब्द का मतलब एक दूसरे के क्या होता है ? )

भूतकाळिक कृदंत ---> ?
विरामचिह्न ---> ?
काव्यस्वतंत्रता ---> ?

What is the different between वर्ण & लिपि ?

What is the different between भाग , परिच्छेद , खंड , अध्याय ? क्या इन में से कोई arrangement है ? ( जैसे : भाग > परिच्छेद > खंड > अध्याय)

अगर आप के पास Dictionary Program (Hindi to English & Hindi to Hindi BOTH) है तो please ईमेल से attach कर दीजिए।

जवाब देने के लिए शुक्रया,
---------------------
यदि ईरान की एक लड़की यह कर सकती है, निश्चय ही अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, दुबई आदि खाड़ी के देशों में ऐसे हजारों लोग होंगे जो हिंदी भली-भांति समझते होंगे। यह सब हिंदी फिल्मों का ही कमाल है। खेद की बात यही है कि आजकल हिंदी फिल्म निर्माता अमरीका, यूके, कनाडा आदि पर नजर टिकाए हुए हैं, और वहीं के भारतीयों को ध्यान में रखते हुए फिल्में बना रहे हैं। उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने फिल्मों के शीर्षक आदि हिंदी-उर्दू में न देकर अंग्रेजी में देने लगे हैं। इससे सपना चांदनी जैसे हजारों हिंदी के रसिकों को हिंदी सीखने में कितनी कठिनाई आ रही होगी, इसका शायद हिंदी फिल्म निर्माताओं को अंदाजा नहीं है।

काश हिंदी फिल्म निर्माताओं में भी हिंदी के प्रति थोड़ा लगाव होता। पर इसकी आशा करना तो बालू से तेल निकलने की आशा करने के समान है। सुना है कई अभिनेता-अभिनेत्रियां इतनी कम हिंदी जानती हैं कि उनके डायलोग या तो डब कराए जाते हैं (कैटरीना कैफ के संबंध में ऐसा कहा जाता है) या डायलोग अंग्रेजी लिपि में लिखवाकर उनसे पढ़ाया जाता है। फिल्म निर्माता करण जौहर के संबंध में भी कहा जाता है, कि उसे हिंदी नहीं आती है।

17 Comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

सोनिया अम्मा के बारे में भी पता लगाएँ।


इरानी लड़की तो लगन की मिसाल है। 'इश्क' है ही ऐसी चीज।

जेम्स प्रिंसेप को ही देखिए - ब्राह्मी पढ़्ने और समझने के लिए पूरी जिन्दगी ही झोंक दिया ।

राम त्यागी said...

हिंदी और हिंदुस्तान की भारत के बाहर बहुत क़द्र है, में एक सॉफ्टवेर कंपनी में कार्यरत होने की वजह से ज्यादातर हिंदी न बोलने वाले क्लाइंट के साथ काम करता हूँ और उनके अन्दर भारतीय खाने और हिंदी सीखने की जिज्ञासा से में भली भांति परिचित हूँ, पर देश में ही ये सब जूनून कम दिखाई देता है.,

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

गरिजेश - यह जेम्स प्रिंसेप कौन है? इसके बारे में अपने ब्लोग में विस्तार से समझाएं।

ये विदेशी लोग भारतीय ज्ञान को ओरिएंटलिजम के रूप में अजायबघर की चीजों के नजरिए से पढ़ते-पढ़ाते हैं। इसके बारे में एडर्वार्ड सैद ने एक अच्छी किताब लिखी है, ओरिऐंटलिजम, यदि नहीं पढ़ा हो, तो जरूर पढ़ें।

वरना ये फिल्प महाशय ब्राह्मी लिपि के स्थान पर देवनागरी लिपि पढ़ते।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

विनम्र विरोध:
(1) मेरा नाम बापू ने बड़े प्यार से रखा था लेकिन ऐसा रखा कि इसकी दुर्दशा करने के लिए भारत का हर नागरिक स्वतंत्र दिखता है। झेलते झेलते अब कॉम्प्लेक्स डेवलप हो गया है । आप भी अपवाद नही हैं। वैसे मुझे इस नाम का एक और ब्लॉगर मिला है। मैं एक संघ बनाने के मूड में हूँ ताकि संघर्ष किया जा सके।

(2) इस बार होम वर्क मैं नहीं करूँगा । आप करेंगें और जेम्स प्रिंसेप के बारे में ज्ञान देंगे। ये क्या बात हुई कि बड़ा भाई हमेशा धौंस दिखाता रहे।

प्रिंसेप जी बड़े ही हठवादी पुरुष थे और जिस ब्राह्मी को एक बार आप सारी भारतीय भाषाओं की एकल लिपि करने की वकालत (वैसे इस शब्द से बड़ा डर लगता है। आज कल ब्लॉग जगत में जो हलचल मची है, वह किसी से छिपी नहीं है. मैंने आज खुद एक वकील को झेला और उसकी ऐसी की तैसी भी की) कर चुके हैं, उसे इन्हीं महाशय ने पढ़ा था पहली बार। बेचारे पगला गए इसी प्रयत्न में।

सैम्पल जानकारी यहाँ उपलब्ध है।
en.wikipedia.org/wiki/Ancestry_of_Chandragupta_Maurya

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अगर बवाल कूटना हो तो इस पोस्ट से 'छौंका' देने की सामग्री भी ले लें:

http://rupeenews.com/2008/09/10/did-ashoka-exist-did-pandit-radhakantta-create-him-for-james-princep-in-1837/

Anonymous said...

इस ईरानी बाला की जिज्ञासा से मुझे, 'मेरा नाम जोकर' की याद हो आयी।

सच ही तो है -ढ़ाई आखर प्रेम का… सब कुछ कराये, फिर चाहे वह किसी देश की भाषा से ही क्यों न हो

Anita kumar said...

हमारा भी आप से मिलता जुलता अनुभव है। यहीं नेट पर घूमते घामते एक इजराइली प्रध्यापक मिल गया है , उसकी हिन्दी सीखने की ललक इतनी गहरी है कि हमने खुशी खुशी अपने कई घंटे बर्बाद कर दिये उसे हिन्दी सिखाने में।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

@ anitakumar:

इसे समय बर्बाद करना न कहें। आप ने एक पुण्य का काम किया है।

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत,आज हिन्‍दी की बिन्‍दी की चमक जितनी भारत के बाहर दिखती है उतना भारत के अंदर नही।

इस लड़की की प्रतिभा व लगन को नमन

Sachi said...

मैं आपको दो उदाहरण दूंगा. पूर्वी यूरोपीय देशों में तो हिंदी की ललक तो आम बात है, उसके कई उद्धरण मेरे पास हैं, मगर एक स्पेनी लड़की जिनका नाम रोसा है, वह 2006 में भारत घूमते घामते आयी थी, और उसे इतना लगाव हुआ कि आज वह सीकर के पास रहती है, और फर्राटेदार हिंदी बोलती है.

मेरे एक दोस्त हैं, बड़े जाने प्रोफेसर | सारी दुनिया देखा है उन्होंने, कहते हैं, रामायण और महाभारत में हिन्दू धर्म का सार है, और इसी वजह से हिन्दुओं ने अपने आप को बचा लिया,. सारा नाटक, मिथ, इत्यादी, वहीँ सुरक्षित है. आज कल बड़े लगन से हिंदी सिख रहे हैं. वजह सितम्बर में हिंदुस्तान में एक कांफ्रेंस में भाषण देंगे, वहां वह हिंदी में बात करना चाहते हैं. कहते हैं हिन्दुस्तानी अपने आप में एक बड़ी जबान हैं.

मेरे पास ऐसे कई उदहारण हैं. हिंदी विश्व भाषा है, यह दीगर बात है कि इसकी उपेक्षा बड़े पैमाने पर होती है.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

हम ही कहाँ समझते हैं हिन्दी का महत्व, आखिर हम हिन्दी भाषी जो ठहरे।
हम इसी में खुश हो लेते हैं कि विदेशी हिन्दी सीख रहे हैं, बोल रहे हैं पर हम तो अंग्रेजी ही गिटपिटायेंगे। आखिर ज्ञान तो अंग्रेजी में ही भरा है।

Astrologer Sidharth said...

जुनून को सलाम। हम भी सीखेंगे हिन्‍दी :)

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

डा. कुमारेंद्र सिंह सेंगर: अभी मैं डा. रामविलास शर्मा की किताब, भारत की भाषा समस्या, पढ़ रहा था। उन्होंने इस किताब में हिंदी की स्थिति की काफी डीटेल में छानबीन की है। उसमें उन्होंने एक मजेदार बात बताई है। गांधी-नेहरू ने भाषा के आधार पर राज्य गठित करने का समर्थन किया और तमिल, मलयालम, बंगाली, आदि भाषाओं के बोलनेवाले क्षेत्रों में अलग राज्य बनवा दिए। पर हिंदी भाषी लोगों को उन्होंने नजरंदाज कर दिया, हालांकि हिंदी देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। गांधी-नेहरू ने हिंदी भाषी क्षेत्र को एक सम्मिलित भाषा प्रदेश बनाने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इससे हिंदी भाषियों में उस तरह का भाषा-प्रेम पनप नहीं पाया जो तमिल, बंगाली आदि में पाई जाती है। उनका यह भी कहना है कि जब तक सभी हिंदी भाषी क्षेत्रों को एक न कर दिया जाएगा, तब तक इस तरह के भाषा-प्रेम के पनपने की कम संभावना है। पर निकट भविष्य में ऐसा हो पाना दुष्कर लगता है। माया जी तो रहे-बचे उत्तर प्रदेश के और पांच टुकड़े करने की बात कर रही हैं। उक्त किताब राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित है। जरूर पढ़ें। आंखें खोल देनेवाली किताब है।

Ashutosh said...
This comment has been removed by the author.
Ashutosh said...

जुनून को सलाम. इस लड़की की प्रतिभा व लगन को मेरा नमन. हिन्दीकुंज

राम त्यागी said...

Germany mein hindi ke deewane -

http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2009/06/090614_germany_hindi_va.shtml

Laxmi said...

बड़ी प्रेरक कहानी है। हिन्दी की समस्या यही है कि हिन्दी बोलने वाले ही उसकी कद्र नहीं करते हैं। भारत जैसे गरीब देश में जीविका चलाने की प्राथमिकता है और उसके लिए हिन्दी से ज्यादा अंग्रेज़ी का ज्ञान आवश्यक है। हिन्दी रोजी रोटी की भाषा नहीं है। मैंने कहीं पर पढ़ा था कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में विद्यार्थियों के सबसे कम अंक हिन्दी और समाजशास्त्र में आते हैं कयोंकि इन विषयों में कम नम्बर होने से नौकरी मिलने पर कोई खास असर नहीं होता।

बालसुब्रह्मण्यम लक्ष्मीनारायण जी आप बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं। आपके ब्लाग बहुत पसंद आए। मेरा नाम मात्र लक्ष्मीनारायण है।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट