मेलबोर्न हवाई अड्डे से विमान बस उड़ने ही वाला था। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। आस्ट्रेलिया में हो रही नस्लवादी हिंसा से घबराकर बहुत से भारतीय मेलबोर्न छोड़कर भाग रहे थे। इसलिए विमान खचा-खचा भरा हुआ था।
तभी एक श्वेत आस्ट्रेलियाई महिला विमान में चढ़ी और अपनी जगह ढूंढ़ने लगी। उसका टिकट एकोनोमी क्लास वाला था। परिचारिका ने उसे उसकी जगह दिखा दी।
श्वेत महिला अपनी सीट की ओर बढ़ी पर एकएक ठिठक गई और जोर-जोर से परिचारिका को बुलाने लगी। परिचारिका दौड़ी-दौड़ी आई और पूछा क्या बात है।
श्वेत महिला – मेरी सीट तुरंत बदल दीजिए, मैं यहां नहीं बैठ सकती।
परिचारिका – लेकिन मैडम आपकी सीट में क्या समस्या है?
श्वेत महिला (उसकी सीट के बगल में बैठे भारतीय व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए) - मैं 20 घंटे इस हब्शी के बगल में नहीं बैठी रह सकती।
परिचारिका – मैडक ऐसे कारणों के लिए हम सीट नहीं बदलकर दे सकते।
पर वह महिला भी अड़ गई, खूब हंगामा करने लगी। तब हारकर परिचारिका ने कहा – ठीक है मैडम, मैं देखकर आती हूं, कहीं दूसरी सीट खाली है कि नहीं।
परिचारिका के जाने पर महिला प्लेन के गलियारे में ही खड़ी-खड़ी उस भारतीय यात्री पर नजरों ही नजरों शोले बरसाने लगी।
थोड़ी देर में परिचारिका लौट आई और बोली – हमें खेद है मैडम, कोई भी दूसरी सीट एकनोमी क्लास में खाली नहीं है, आपको अपनी ही सीट पर बैठना पड़ेगा।
वह नस्लवादी महिला भी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। बोली - तुम कुछ भी करो, मेरी सीट बदल दो, वरना मैं सारी यात्रा खड़ी-खड़ी ही चली चलूंगी। जाओ विमान के कप्तान को बुला लाओ।
बेबस परिचारिका को ऐसा ही करना पड़ा। कप्तान महोदय आए। उसे सब कुछ बताया गया।
उसने कहा - मैडम, हम सामान्यतः एकनोमी क्लास वालों को बिजनेस क्लास में नहीं बैठाते, पर चूंकि एकोनोमी क्लाम में कोई सीट खाली नहीं है, इसलिए बिजनेस क्लास में देखता हूं कि कुछ व्यवस्था हो सकती है।
और उसने परिचारिका को पता लगाकर आने को कहा कि क्या बिजनेस क्लास में कोई सीट खाली है।
थोड़ी देर में परिचारिका लौट आई और बोली – जी हां, वहां एक सीट खाली है।
यह सुनना था कि उस श्वेत महिला के मुंह पर विजयी मुस्कान फैल गई। उस भारतीय व्यक्ति पर हिकारत की दृष्टि डालते हुए, वह अपना सामान समेटने लगी।
तभी कप्तान ने भारतीय व्यक्ति से कहा – महोदय, आप अपना सामान ले लें, मैं आपको बिजनेस क्लास में आपकी नई सीट दिखा देता हूं।
विमान के सभी यात्री गदगद हो उठे और उन्होंने कप्तान की न्याय प्रियता का तालियों से स्वागत किया।
नस्लवादी महिला यही सोचने लगी, जमीन फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।
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ऐसी घटना वास्तविक जीवन में अभी बहुत सालों तक नहीं होने वाली है। फिर भी कल्पना लोक में ही सही किसी भारतीय के साथ विदेशों में न्याय होता देखकर मन को शकून मिलता है। क्या कहेंगे आप?
Saturday, June 20, 2009
आस्ट्रेलिया जोक
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: आस्ट्रेलिया, चुटकुले, नस्लवाद
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4 Comments:
agar is dunia ko sundar banana hai to aisee hee soch viksit karnee padegee. Sundar aur sakaratamak rachnaa. Badhayee.
Ranjit
न्याय तो यही कहता है कि जिस एक व्यक्ति की जिद या और किसी कारण से दूसरे को हानि होती है तो मिलने वाला लाभ उस व्यक्ति को प्राप्त होना चाहिए जिसे हटाया जा रहा है।
काल्पनिक ही सही, न्याय तो यही कहता है. इसमें चुटकुला कहाँ है?
ऐसे ही मौकों के लिये ऊंट को पहाड़ के नीचे खड़ा किया जाता है।
मैं समीर जी से भी सहमत हूं।
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