माओवादियों ने बिहार के वैशाली जिले के गरीब ग्रामीणों को आदेश दिया है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें।
पटना से 40 किमी दूर स्थित वैशाली के माओवादियों ने हाशिए पर धकेल दिए गए निर्धन ग्रामीण परिवारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने हेतु यह अनोखा कदम उठाया है। उन्होंने गरीब परिवारों से कहा है कि वे अपने बच्चों से मजदूरी न करवाकर उन्हें पढ़ाएं।
माओवादियों का यह फरमान छह-सात विकास खंडों में जारी किया गया है, जिनमें शामिल हैं, पतेपुर, महनार, जनदहा, महुआ, लालगंज और हाजीपुर। माओवादियों ने कई गांवों में हाथ से लिखे इश्तहार लगाए हैं, जिनमें ग्राम वासियों को चेतावनी दी गई है कि यदि वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भजेंगे तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी।
माओवादियों के इस तेवर ने जिला अधिकारियों को अचंभे में डाल दिया है। वे इसका स्वागत तो करते हैं, और यह भी मानते हैं कि माओवादियों की तरफ से आने से इसका पालन भी अधिक होगा, लेकिन वे आशंकित भी हैं, कि इससे माओवादियों की छवि सुधरेगी और आम जनता में उनका रुतबा भी बढ़ेगा, जिससे सरकार के लिए उन्हें नियंत्रण में लाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
यह खबर काफी दुविधापूर्ण है एक आम भारतीय के लिए। कई अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि बाल मजूरी बंद करवाने के अनेक सामाजिक-आर्थिक फायदे हैं। बच्चों का शोषण तो रुकता ही है, इससे मजदूरी भी बढ़ती है। बच्चों से कराए गए श्रम के लिए अधिक मजदूरी नहीं दी जाती। बाल श्रम के कारण वयस्क मजदूर को काम नहीं मिल पाता है और मिलता भी है, तो बहुत कम मजदूरी पर। जब लगभग मुफ्त ही बच्चों से काम कराया जा सकता हो, तो वयस्क मजदूरों को पूरी मजदूरी पर क्यों रखा जाए? दूसरे, जब बच्चे पढ़-लिख लेते हैं, तो वे अधिक आय दिलानेवाले काम कर सकते हैं, और इस तरह गरीबी के कुचक्र को तोड़ सकते हैं। अपढ़ बच्चे, बड़ा होकर अकुशल काम ही कर सकते हैं, जिसमें अधिक आय की संभावना नहीं रहती है। इसके अलावा छोटी उम्र में ही, जब शरीर का पूर्ण विकास नहीं हुआ होता है, कड़े श्रम में लगाए जाने से बहुत से बच्चों का स्वास्थ्य इस कदर टूट जाता है कि बड़ा होने पर वे अधिक श्रम करने की स्थिति में नहीं रहते। इससे भी उनकी कमाने की क्षमता कुंठित हो जाती है। यदि बच्चे स्कूल जाएं और वहां मिड-डे मील आदि योजनाओं से उन्हें पोषक भोजन नियमित रूप से मिले, तो उनका शारीरिक और बौद्धिक विकास ठीक प्रकार से होगा और बड़ा होकर वे पूर्ण स्वस्थ और कठिन से कठिन काम करने में भी सक्षम हो जाएंगे। इस तरह वे पढ़े-लिखे, स्वस्थ सुंदर युवक-युवतियां बन जाएंगे, जिन पर देश और समुदाय को नाज हो।
दुख इस बात का ही है कि जो काम सरकार को करना चाहिए था, वही काम बागी संगठन कर रहे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि माओवादी केवल एक आतंकवादी गिरोह नहीं हैं, बल्कि बिहार आदि में राज्य संचालन का काम भी करते हैं, जिसमें कर वसूलना, न्याय करना, जन-हित के काम करना आदि भी शामिल हैं। एक तरह से माओवादियों ने अपने इलाकों में भारतीय राज्य की सत्ता का स्थानापन्न कर दिया है। यह चिंता की बात है। जल्द से जल्द जन कल्याणकारी नीतियां अपनाकर भारतीय राज्य को माओवादियों की इस नैतिक विजय को निरस्त करना होगा।
इसके साथ ही माओवादियों के इस कदम की सराहना किए बिना भी नहीं रहा जाता, भले ही वह राजनीति प्रेरित क्यों न हो।
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चित्र के बारे में - स्वामी अग्निवेश, जिन्होंने बाल मजूरी उन्मूलन को अपने जीवन का मिशन बना लिया था।
Thursday, June 11, 2009
माओवादी स्वामी अग्निवेश की भूमिका में
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8 Comments:
ऐसा लगता है कि माओवादियों ने सरकार से प्रतियोगिता आरंभ कर दी है। यदि ऐसा है तो इस चुनौती को सरकार को स्वीकार करना ही होगा। कोई और चारा भी तो नहीं सरकार के पास।
umda vishya
umda post
यह सिर्फ मास्क है। बिहार में स्थिति धीरे ही धीरे सही, सुधरनी शुरु हुई है और लालू/रामविलास राज्य स्तर पर समाप्त हो चुके हैं। ऐसे में डरे हुए माओवादी विकल्पहीनता के निर्वात को भरने का प्रयास कर रहे हैं। दिखावा है और कुछ नहीं।
समाजवाद और साम्यवाद के नाम पर इन्हों ने जो अत्याचार किए हैं, वे अक्षम्य हैं।
बिहार में हालत सुधरी हैं पर छत्तीसगढ़ में ७५-८० फीदसी क्षेत्र नक्सलियों के अंडर में आ रहा है। सिर्फ ६-७ राज्य ऐसे हैं जहां पर इनकी समानांतर सरकार नहीं चल रही।
नितीश: आपकी बात सही लगती है। अब तक गुजरात को नक्सल-मुक्त समझा जाता था, पर कुछ दिन पहले सूरत से कुछ लोग पकड़े गए जिनका नक्सलियों से संबंध था।
chalo maowadiyon ko thodi to budhi aayi...
about of islam
Great readd thank you
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