गोरिल्ला नरवानरों में सबसे बड़ा है। नर गोरिल्ले की ऊंचाई पांच फुट और वजन २०० किलो होता है। बहुत बड़ा सिर, संकरा माथा, छोटे कान, काला चेहरा और फूले हुए बड़े नथुने, ये उसकी अन्य विशेषताएं हैं। शरीर के रोएं काले होते हैं, परंतु उम्र के साथ-साथ वे सफेद होने लगते हैं। शरीर के विभिन्न भागों में बाल की लंबाई अलग-अलग होती है। छाती पर बाल लगभग नहीं होते हैं। गोरिल्ले के हाथ-पांव अत्यंत मजबूत होते हैं। हाथों की लंबाई पैर से अधिक होती है। गोरिल्ले में पूंछ नहीं होती।
गोरिल्लों की दो नस्लें हैं, मैदानी और पहाड़ी। पहाड़ी गोरिल्ले अधिक बड़े होते हैं। गोरिल्ले पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में पाए जाते हैं। वे अधिकांश समय जमीन पर ही बिताते हैं। पेड़ों पर कूदना-फांदना उनके लिए संभव नहीं है क्योंकि उनका आकार बहुत बड़ा होता है। केवल रात बिताने के लिए वे पेड़ों पर चढ़ते हैं।
सभी नरवानरों के समान वे भी छोटी टोलियों में विचरते हैं, जिनमें २५-३० सदस्य होते हैं। हर टोली का एक नर सरदार होता है। टोली में वयस्क नर अधिक नहीं होते, पर दो-चार मादाएं और उनके बच्चे होते हैं। इस टोली का एक निश्चित अधिकार क्षेत्र होता है, जहां से वह आहार खोजता है।
गोरिल्ला शाकाहारी प्राणी है। वह फल, वनस्पति आदि को हाथ की उंगलियों से एकत्र करता है और फिर अपने मजबूत दांतों से इन खाद्य सामग्रियों का छिलका उतारकर खा जाता है। सामान्यतः उसे पानी पीने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि उसकी खुराक से ही उसे पर्याप्त नमी मिल जाती है।
गोरिल्ला दिवाचर प्राणी है। वह ठेठ सवेरे, जब वातारण अधिक ठंडा होता है, अधिक सक्रिय रहता है। दुपहर को आराम करके वह तीसरे पहर फिर आहार खोजने लगता है। सोने के लिए वह जमीन पर या पेड़ों पर टहनी, पत्ते आदि फैलाकर बिस्तर बनाता है।
गोरिल्ला तरह-तरह की आवाजें निकालता है। उसकी एक भाषा भी होती है जिसके सहारे वह आपस में खतरे, भोजन आदि की सूचना प्रेषित करता है। नकल करने में भी वह उस्ताद है। शत्रु को डराने के लिए वह अपनी मुट्ठी से छाती को पीटता है और दहाड़ता है।
उसका गर्भाधान काल लगभग २९० दिन का होता है। चार साल में एक बार एक शिशु पैदा होता है। शिशु अपने जीवन-काल के प्रथम छह महीने तक पूर्णरूप से अपनी मां पर निर्भर होता है और एक साल तक स्तनपान करता है।
गोरिल्ला वास्तव में एक सरल एवं शांतिप्रिय जीव है, परंतु मनुष्य की उर्वर कल्पना ने उसे खूंखार एवं असीम शक्ति से संपन्न दैत्य में बदल दिया है। इसका एक उदाहरण किंग-कांग जैसी लोकप्रिय चलचित्र हैं। आज वासस्थलों के नष्ट होने, अनियंत्रित शिकार और चिड़ियाघरों के लिए पकड़े जाने से इस मासूम वानर की स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गई है। गोरिल्ले को एक संकटग्रस्त प्राणी माना गया है और उसका कायमी अस्तित्व संदिग्ध लगता है।
Wednesday, May 20, 2009
सबसे बड़ा नरवानार--गोरिल्ला
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: जीव-जंतु
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3 Comments:
हिंदी की शांत सेवा करने के कारण आप स्तुत्त्य हैं
गिरिजेश जी की बात से सहमत हूँ । चुपचाप मूल्यवान लिखे जा रहे हैं आप, और हिन्दी निरन्तर समृद्ध हो रही है ।
जय जय-हिन्दी ।
इस रोचक जानकारी के लिए हार्दिक बधाई ......
कोई तो है जो इन जीवों के बारे मे चिंतन करता है...
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