Thursday, May 21, 2009

बिस्तर गीला करना -- बच्चों की एक आम बीमारी

सुनील वह दिन कभी नहीं भुला पाएगा। यह तब की बात है जब वह लगभग १० साल का था। उसका सारा परिवार अनेक सगे-संबंधियों के साथ उसके नाना के घर इकट्ठा हुआ था। परिवार में किसी की शादी थी। सभी बच्चों को एक बड़े कमरे में जमीन पर बिस्तर बिछाकर सुला दिया गया था।

अगले दिन उठने पर सुनील ने देखा कि सभी बच्चे उसे नजरें चुरा-चुराकर देख रहे थे और एक-दूसरे को ठेलते हुए खुसर-पुसर कर रहे थे और हंस रहे थे। उसकी मां भी उस दिन उस पर कुछ ज्यादा ही नाराज लग रही थी। बाद में ही उसे पता चला कि माजरा क्या है। उसने पिछली रात बिस्तर गीला कर दिया था।

पंद्रह वर्ष तक के बच्चों में यह बीमारी काफी सामान्य होती है। इस तकलीफ से पीड़ित बच्चे नींद के दौरान अपने मूत्राशय की मांसपेशियों पर नियंत्रण खो देते हैं।

यह बीमारी कुछ-कुछ वंशानुगत होती है, यानी बच्चे की माता अथवा पिता के परिवार में किसी को बचपन में यह शिकायत रही होती है। इस बीमारी के मुख्यतः दो कारण होते हैं। पहला यह कि मूत्राशय आकार में छोटा होता है और रात में बननेवाला मूत्र उसमें समा नहीं पाता। दूसरा यह कि मूत्राशय की मांसपेशियों को नियंत्रित करनेवाली नाड़ियां पूरी विकसित नहीं हुई होती हैं। कभी-कभी मूत्राशय को पहुंची चोट अथवा कोई अन्य शारीरिक कमजोरी भी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हो सकती है। इसलिए इस बीमारी से पीड़ित बच्चे का डाक्टरी जांच करवाना बहुत जरूरी है।

इस बीमारी का इलाज अनेक प्रकार से हो सकता है, जिसमें दवाइयों का सेवन भी शामिल है। खान-पान पर नियंत्रण रखने से भी कुछ बच्चों को फायदा हुआ है। विशेष रूप से संतरा, नींबू आदि फलों का रस, कार्बोनेटेड पेय तथा चाकलेट बच्चे को खाने नहीं देना चाहिए। कुछ प्रकार के योगासन भी मूत्राशय की मांशपेशियों को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं।

रात को सोने से पहले बच्चे को दूध आदि तरल पदार्थ पीने मत दें। यदि देना ही हो, तो बच्चे के सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले दें और लेटने से पहले उससे पेशाब करने को कहें। रात में एक बार बच्चे को जगाएं और पेशाब कराएं।

यद्यपि यह बीमारी काफी असुविधाजनक साबित हो सकती है, लेकिन इससे पीड़ित बच्चे को डांटने-फटकारने या चिढ़ाने से उसे कुछ भी फायदा नहीं पहुंचेगा, उल्टे नुकसान ही होगा -- उसमें मानसिक ग्रंथि विकसित हो जाएगी। आवश्यकता इस बात की है कि उसकी तकलीफ को ठीक प्रकार से समझा जाए और उसे अपनी बीमारी से उभरने में मदद दी जाए। वैसे भी यह बीमारी बच्चे के बड़े हो जाने पर अपने आप ही दूर हो जाती है, जब उसके मूत्राशय की नीड़ियों का विकास पूरा हो जाता है ।

2 Comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी .. इसमें बच्‍चों का कोई दोष नहीं होता .. इसलिए डांटना फटकारना व्‍यर्थ है .. 12 वर्ष की उम्र के बाद यह स्‍वयं ठीक हो जाता है।

nitin said...

आप इसे परिभाषित करने की अपेक्षा कुछ उपाय बताते तो अच्छा होता.

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