स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हर साल एक लाख महिलाएं ऐनीमिया (खून की कमी) के कारण मरती हैं। भारत में महिलाओं का पोषण स्तर अत्यंत शोचनीय है और लगभग 83 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की बीमारी से पीड़ित हैं। खून की कमी का मुख्य कारण शरीर में लौह तत्वों की कमी है। लोहा खून के हैमोग्लोबिन नामक पदार्थ के बनने के लिए आवश्यक है। यही हैमोग्लोबिन आक्सीजन का वाहक होता है और खून को लाल रंग देता है। हैमोग्लोबिन कम होने से शरीर को आक्सीजन कम मिलती है और आक्सीजन के अभाव में शरीर शर्करा और वसा का दहन करके ऊर्जा नहीं बना पाता। इसीलिए खून की कमी से पीड़ित महिलाएं अत्यधिक थकान महसूस करती हैं। एक अध्ययन से ज्ञात होता है कि कम खून वाली महिलाएं 7-8 मिनट से अधिक समय के लिए निरंतर श्रम नहीं कर पातीं।
एक स्वस्थ व्यक्ति के खून के हर 100 मिलीलिटर में 15 ग्राम हैमोग्लोबिन होता है। चूंकि यही हैमोग्लोबिन शरीर में आक्सीजन का वाहक है, वह श्वसन और पाचन की क्रियाओं को ठीक प्रकार से अंजाम देने के लिए बहुत आवश्यक होता है। हैमोग्लोबिन कम होने से चेहरा मुरझाया-मुरझाया सा रहता है और असमय ही शरीर पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। कम हैमोग्लोबिन का एक अन्य लक्षण है, खून का धीमी गति से जमना। घाव भी हैमोग्लोबिन के अभाव में अधिक धीरे भरते हैं। कमजोर दृष्टि और याददाश्त, सांस फूलना, सिर-दर्द और मायूसी का एहसास (डिप्रेशन) ऐनीमिया की कुछ अन्य निशानियां हैं।
शरीर में लोहा कम होने का मुख्य कारण कुपोषण है। समृद्ध वर्गों में यह अत्यधिक संसाधित भोजनों के उपोयग से या डायटिंग के कारण होता है। निर्धन वर्गों में इसका मुख्य कारण है कम भोजन खाना। यद्यपि लोहा स्वयं शरीर को ऊर्जा नहीं देता, पर वह ऊर्जा पैदा करनेवाली प्रक्रियाओं को संचालित करता है और ऊर्जा पैदा करने के लिए आवश्यक पदार्थों के अवशोषण को सुगम बनाता है। शरीर के लिए लोहे को आत्मसात करना अत्यंत कठिन होता है। एक दिन में औसत स्वास्थ्य का व्यक्ति केवल 2 मिलीग्राम लोहा ही आत्मसात कर सकता है। सौभाग्य से शरीर से लोहा उतनी आसानी से छीजता भी नहीं है। शरीर में लोहे की कमी एक लंबे समय तक उचित या पर्याप्त भोजन न मिलने से अथवा चोट, शल्य-क्रिया आदि के कारण शरीर से बहुत अधिक खून बह जाने से होता है।
खून और लोहे की कमी वयस्क महिलाओं और बड़ी लड़कियों में अधिक देखी जाती है क्योंकि उनमें मासिक स्राव के समय शरीर से नियमित रूप से बहुत अधिक खून निकल जाता है। इस खून की भरपाई यदि पौष्टिक भोजन से न हो, तो शरीर में लोहे का अकाल पड़ जाता है। गर्भस्थ शिशु भी अपनी माता के शरीर से बहुत अधिक मात्रा में लोहा खींच लेता है। इसी प्रकार स्तनपान करानेवाली महिलाएं, यदि पौष्टिक भोजन न करें, तो खून की कमी की चपेट में आ जाती हैं। आजकल की फैशन-परस्त महिलाएं टीवी और पत्र-पत्रिकाओं के विज्ञापनों की दुबली-पतली माडलों की देखा-देखी डायटिंग में कुछ अति कर बैठती हैं, जिससे भी वे कुपोषण के घेरे में आ जाती हैं। भारत में अधिकांश लोग अंडरवेट हैं, खासकरके महिलाएं, यानी वे मोटापे की नहीं, दुबलेपन की शिकार हैं। उन्हें डायटिंग की नहीं बल्कि अच्छे पौष्टिक भोजन की जरूरत है। परंतु विदेशी विज्ञापनों की नकल पर बने देशी विज्ञापन दुबली-पतली माडलों का इस्तेमाल करके जाने-अनजाने भारतीय दर्शकों को गुमराह करते हैं। विदेशों के समृद्ध समाजों में लोग आवश्यकता से अधिक भोजन करके मुटापे की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। वहां दुबलेपन का गुण गानेवाले विज्ञापन शायद प्रासंगिक हो सकते हैं, पर यहां नहीं।
खून की कमी का एक अन्य कारण मानसिक तनाव और चिंता है। तनाव-ग्रस्त व्यक्ति में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कम बनता है। यह अम्ल पाचन में तथा लोहे और अन्य जरूरी तत्वों के अवशोषण में सहायक होता है। कुछ प्रकार की दवाइयां आंतों में मौजूद उपयोगी जीवाणुओं को मार देती हैं। ये जीवाणु पाचन में तथा विटामिन, लोहे तथा अन्य खनिजों के अवशोषण में मदद करते हैं। सभी विटामिनों में विटामिन ई का अवशोषण कुछ प्रकार के दवाओं के सेवन से सर्वाधिक प्रभावित होता है। विटामिन ई की कमी भी खून की गुणवत्ता को घटा देती है।
सिगरेट-बीड़ी और तंबाकू के सेवन से और शराब पीने से भी ऐनीमिया बढ़ती है।
खून की कमी का एक ही इलाज है, बेहतर भोजन और लोहा-युक्त दवाइयों का सेवन। गेहूं और पूर्ण चावल में लोहे की मात्रा अधिक होती है। सब्जियों में बंध गोभी, गाजर, लाल शलजम, टमाटर और पालक में लोहे का तत्व अधिक होता है। सेब, केला, खजूर और आड़ू जैसे फल भी अच्छी मात्रा में लोहा उपलब्ध कराते हैं। इन सब पदार्थों के सेवन के अलावा लोहे के बर्तनों में खाना पकाने से भी खाने में लोहांश आता है। इसलिए लोहे के तवे, करछुल, कड़ाही, कटोरे, चम्मच, खरल और मूसल का अधिक उपयोग करें। आजकल स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों का चलन हो जाने से अधिकांश लोग लोहे के एक महत्वपूर्ण स्रोत से वंचित हो रहे हैं।
हैमोग्लोबिन के निर्माण के लिए थो़ड़ी मात्रा में तांबा भी आवश्यक होता है। यह तांबा अखरोट और बादाम में काफी मात्रा में पाया जाता है। तांबा शरीर द्वारा लोहे के अवशोषण में भी मदद करता है। हैमोग्लोबिन के निर्माण के लिए विटामिन बी-12 और फोलिक अम्ल भी आवश्यक हैं।
अन्य उपयोगी भोज्य पदार्थों में शामिल हैं आम, किशमिश, अंकुरित मूंग, तिल के दाने, चना, राजमा, गन्ने और अनार का रस, गुड़, दही, पनीर, लहसुन आदि। रोज सुबह एक कटोरा अंकुरित मूंग खाया जाए तो शरीर में खून के निर्माण में तेजी आ सकती है। इसी प्रकार काले तिल, गुड़ और दूध को एक साथ पीसकर आधा कप रोज सेवन करने से काफी लाभ मिलता है। रोज सुबह खाली पेट पर दो कप गाजर और पालक का रस पीने से ऐनीमिया के मरीजों को राहत हो सकती है।
आयुर्वेद में खून की कमी के निराकरण के अनेक प्रभावशाली उपचार हैं। लाभकारी आयुर्वेदिक दवाओं में शामिल हैं, च्यवनप्राश, शतवारी और अश्वगंधा। ये दवाएं हजारों सालों से हमारे समाज में प्रचलित रही हैं।
Tuesday, May 19, 2009
खून की कमी और उसका इलाज
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: स्वास्थ्य
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विषय विविधता आप के ब्लॊग की विशेषता है. मैं नियमित पाठक हूं. लिखते रहें.
धन्यवाद
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