गरमियां शुरू हो गई हैं और देश के अनेक भागों में धूल की आंधियां उड़ने लगी हैं। धूल की आंधियां तब प्रकट होती हैं जब ठंडी, अस्थिर वायु की बड़ी परतें सूखी, रेतीली जमीन की सतह पर तेजी से बहने लगती हैं। गरमियों में ऐसी जमीन बहुत अधिक गरम हो जाती है और उसके ऊपर की वायु उठने लगती है। यह गरम वायु 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाती है। इस कारण जमीन के ऊपर निम्न दाब का विस्तृत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यदि आस-पास में कहीं ठंडी वायु मौजूद हो, तो वह इस रिक्त स्थान की ओर बह चलती है। वायु का प्रवाह सतह के ऊपर ही रहता है क्योंकि अधिक ऊंचाई पर गरम वायु मौजूद रहती है। जमीन की सतह पर यदि वनस्पति का आवरण न हो और मिट्टी ढीली हो, तो वह वायु प्रवाह के साथ उड़ चलती है।
भारत में धूल की आंधियां मानसून के पूर्व के महीनों में प्रकट होती हैं। राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में अप्रैल-मई में धूल की प्रचंड आंधियां उठती हैं। इन क्षेत्रों में साल में दस-बारह आंधियां आती हैं। गरमियों में यहां अधिकतम तापमान 45 अंश सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इन विस्तारों के ऊपर के वायुमंडल में एक-दो किलोमीटर की ऊंचाई तक नमी बहुत कम होती है। वायुमंडल के इस शुष्क परत के ऊपर जब नम वायु का दखल होता है, तो तड़ित-झंझा उत्पन्न होती है, जिसके फलस्वरूप वर्षा होने लगती है। परंतु वर्षा बूंदें जमीन तक पहुंचने से पहले ही भाप बनकर उड़ जाती हैं और जमीन तक पहुंचती है केवल बूंदों के चारों ओर की शीतल वायु। जब ये वायु-पुंज रेतीली जमीन से टकराते हैं तो धूल के छोटे-छोटे गुबार ऊपर उठते हैं। इस समय यदि तेज सतही हवा बह रही हो तो वह धूल को भी अपने साथ उड़ा ले जाती है।
ऐसी आंधियां सामान्यतः दोपहर के कुछ ही बाद प्रकट होती हैं। इनकी शुरुआत ठंडी हवा के रह-रहकर बहनेवाले झोंकों से होती है। बाद में ये झोंके सम्मिलित होकर तेज पवन के रूप में बहते हैं। धूल का जो विशाल गुबार उठने लगता है, वह आसमान में 4 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। आंधी 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ती है और पवनों का वेग 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकता है। प्रचंड आंधियों में धूल इतनी उड़ती है कि दिखाई देना बिलकुल बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति 2-3 घंटों तक रहती है। आंधी के बाद तापमान में गिरावट आती है। कभी-कभी तापमान 15 अंश सेल्सियस तक गिर जाता है। इस कारण से लोगों को आंधी के बाद काफी राहत मिलती है।
आंधी के दौरान भारी मात्रा में मिट्टी के कणों का बड़ी दूरियों तक स्थानांतरण हो जाता है। अध्ययनों से पता चला है कि बड़े रेगिस्तानों में उठती आंधियों में 10 करोड़ टन धूल हजारों किलोमीटर दूर पहुंच जाती है। महाद्वीपों से कोसों दूर तैर रहे जलपोतों में धूल वृष्टि होने लगती है।
इस प्रकार भारी मात्रा में धूल के स्थानांतरण से सूखे की स्थिति को प्रोत्साहन मिलता है और रेगिस्तान का विस्तार होता है। रेत कृषि योग्य भूमि, फल बागान, आबादीवाले स्थल आदि को ढक देती है। प्रचंड आंधियों से वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है क्योंकि भारी मात्रा में कणिकीय सामग्री हवा में मिल जाती है। ये निलंबित अवस्था में वायुमंडल में बहुत समय तक बने रहते हैं। इनके कारण वायुमंडल की प्रकाशीय विशेषताओं में भी परिवर्तन आ जाता है, जो जलवायु को प्रभावित कर सकता है। धूल का बादल सौर विकिरण को भूमि तक पहुंचने नहीं देता। धूल कण या तो उसे अंतरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं अथवा स्वयं सोख लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का विकिरण संतुलन बिगड़ जाता है।
धूल की आंधियों की विनाश-लीला को टालने का सर्वोत्तम उपाय खुली जमीन पर वनस्पति उगाना है। वनस्पति की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं और आंधियों में मिट्टी के कण उड़ने नहीं पाते।
Thursday, May 14, 2009
धूल की आंधियां
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: मौसम
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1 Comment:
सब रिवाज़ हो गया, बहुत पहले यह सब पढ़ा था, धन्यवाद
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