एक बार महात्मा बुद्ध को रात के विश्राम के लिए एक घने वन में रुकना पड़ा। वे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और उनका एक शिष्य पानी लाने के लिए पास के जलकुंड की ओर गया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि जंगली हाथियों का यूथ अभी-अभी वहां आया था और उन्होंने पानी को गंदला कर दिया है। शिष्य पानी के लिए अन्यत्र जाने लगा।
यह देखकर महात्मा बुद्ध ने उसे बुलाया और पूछा कि क्या बात है। जब शिष्य ने कारण बताया तो महात्मा बुद्ध बोले, "थोड़ी देर ठहर जाओ, कीचड़ अपने-आप नीचे बैठ जाएगा।" और उन्होंने इस प्रसंग का उपयोग करते हुए शिष्य को समझाया, "हमारा मन भी इस पानी के समान है। क्रोद्ध, द्वेष, ईर्ष्या आदि मनोवृत्तियों से वह कभी-कभी कलुषित हो जाता है। जब हमारा मन ऐसी दशा में हो, हमें कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। मन के शांत होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।"
Monday, May 25, 2009
शांत मन से ही निर्णय लेना चाहिए
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: प्रेरक प्रसंग
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3 Comments:
बहुत सुंदर और प्रेरक प्रसंग. शुभकामनाएं.
रामराम.
अच्छा कहा जी। मन का निग्रह कीचड़ के बैठने की प्रतीक्षा के अभ्यास से होता है।
जातक कथाएँ किसी षड्यंत्र वश हमारे देश मे लुप्त कर दी गई. इन्हे अब प्रकाशित होना ही चाहिये
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