आप सोच रहे होंगे, तो क्या मुत्तालिक ने मैंगलूर से निकलकर दूरदराज अहमदाबाद में भी पांव फैला लिया है? अजी नहीं, मैं मुत्तालिक की राम सेना की नहीं, असली राम सेना की बात कह रहा हूं। जरा इन तस्वीरों को देखिए।
मई की चिलचिलाती दुपहर। मैं अपने कमरे में काम कर रहा था कि लंगूरों की हूप सुनाई दी। तुरंत काम छोड़कर बालकनी में आया। देखता क्या हूं कि पूरी राम सेना वहां डटी हुई है। एक ने पास के बंगले के बगीचे के पपीते के पेड़ से एक फल तोड़ लिया है। मैं अंदर दौड़ा मोबाइल लेने ताकि आपको भी यह दृश्य दिखा सकूं।
यह टोली नियमित रूप से हमारी सोसाइटी में आती है। हर दस-पंद्रह दिनों में उसका एक चक्कर लगता है। छोटे लंगूर बड़े ही नटखट होते हैं। एक-दूसरे के साथ खूब खेलते हैं। बहुत छोटे-बच्चों को बड़े बच्चे उसी तरह छेड़ते हैं, जैसे हमारे बच्चे, और ये वानर शिशु भी बड़ों को छकाने के लिए हमारे शिशुओं के ही समान मां की गोद में जा छिपते हैं।
एक बार मुझे याद है हम सब सो रहे थे जब राम सेना का आगमन हुआ। बालकनी का दरवाजा खुल रह गया था। सभी लंगूर अंदर रसोई में घुस आए और वहां रखे फल-सब्जी आदि खाने लगे। तभी मेरी पत्नी की नींद खुली और वे चाय बनाने रसोई में गईं। देखती क्या हैं कि सारी टोली वहीं जमी हुई है। दो तो फ्रिज पर चढ़कर बैठे हैं। पत्नी की चीख-पुकार से मेरी नींद खुली। मेरे हाथ बेटी का स्कूल का जूता आया और उसी को मैंने लंगूरों पर दे मारा। जूता उन्हें लगा तो नहीं, पर उससे डरकर वे सब जिस रास्ते आए थे, उसी रास्ते लौट गए। जूता पड़ौस के घर की छत में जा गिरा और उसे वापस पाने के लिए मुझे काफी जहमत करनी पड़ी।
मादा और बच्चे निरापद होते हैं, पर नरों से सावधान रहने की जरूरत है। ये आक्रामक होते हैं और भगाने पर जल्दी भागते नहीं है। कभी-कभी काट भी लेते हैं। यदि दो नर हों, तो वे आपस में खूब लड़ते हैं। लड़ते-लड़ते स्कूटर, साइकिल आदि को गिरा देते हैं।
Thursday, May 21, 2009
मेरे घर पर बोला राम सेना ने धावा
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: विविध
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5 Comments:
Nice article .....aisa hi kuch hamare yaha bhi hota hai.....
ऐसा ऊधम हमारे यहाँ भी खूब होता आया है, लेकिन पिछले वर्ष के बाद से सब शांत चल रहा।
मेरे शहर जबलपुर में असली रामसेना का हंगामा देखना है तो बढ़िया जगह है सुभाष टाकीज रोड . जमकर कमनीय तक हंगामा करते है . अभी एक भाई का मोबाइल एक बन्दर लेकर भाग गया था और बार बार अपने कान के पास मोबाइल लेजाकर लोगो को मोबाइल दिखा दिखाकर चिढा रहा था . इनकी धमाचौकडी देखने लायक होती है
महेंद्र जी: आजकल बंदर भी हाईटेक हो रहे हैं, यह जानकर खूब मजा आया। अब मोबाइल सेवा प्रदाताओं को इन नए ग्राहकों की ओर भी ध्यान देना होगा!
बंदरों के जलवे देखने हो तो वृंदवान भी अच्छी जगह है। अभी हाल में हम लोग वहां गए थे, तो एक बंदर मेरा चश्मा लेकर भागा था। एक स्थानीय लड़के को बीस रुपए थमाए, तो उसने पल भर में ही मेरा चश्मा वापस दिला दिया। मुझे लगता है कि वहां के कुछ लड़कों ने पैसे कमाने के इरादे से इन बंदरों को लोगों का चश्मा छीना सिखा रखा है।
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