Saturday, May 30, 2009

बैलों से बिजली


गुजरात के वडोदरा जिले के छोटाउदयपुर क्षेत्र के 24 जनजातीय गांवों में एक अनोखा प्रयोग चल रहा है, जिसके अंतर्गत बैलों की शक्ति को बिजली में बदला जा रहा है।

बिजली निर्माण की यह नई तकनीक श्री कांतिभाई श्रोफ के दिमाग की उपज है और इसे श्रोफ प्रतिष्ठान का वित्तीय समर्थन प्राप्त है। श्री कांतिभाई एक सफल उद्योगपति एवं वैज्ञानिक हैं।

इस खोज से एक नया नवीकरणीय उर्जा स्रोत प्रकट हुआ है। इस विधि में बैल एक अक्ष के चारों ओर एक दंड को घुमाते हैं। यह दंड एक गियर-बक्स के जरिए जनित्र के साथ जुड़ा होता है। इस विधि से बनी बिजली की प्रति इकाई लागत लगभग चार रुपया है जबकि धूप-पैनलों से बनी बिजली की प्रित इकाई लागत हजार रुपया होता है और पवन चक्कियों से बनी बिजली का चालीस रुपया होता है। अभी गियर बक्से का खर्चा लगभग 40,000 रुपया आता है, पर इसे घटाकर लगभग 1500 रुपया तक लाने की काफी गुंजाइश है, जो इस विधि के व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने पर संभव होगा।

बारी-बारी से काम करते हुए यदि चार बैल प्रतिदिन 50 इकाई बिजली पैदा करें, तो साल भर में 15,000 इकाई बिजली उत्पन्न हो सकती है। इस दर से देश के सभी बैल मिलकर 20,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकते हैं, और इससे देश में बिजली की किल्लत बीते दिनों की बात हो जाएगी।

बैलों से बिजली निर्माण की पहली परियोजना गुजरात के कलाली गांव में चल रही है। बैलों से निर्मित बिजली से यहां चारा काटने की एक मशीन, धान कूटने की एक मशीन और भूजल को ऊपर खींचने का एक पंप चल रहा है।

कृषि में साधारणतः बैलों की जरूरत साल भर में केवल 90 दिनों के लिए ही होती है। बाकी दिनों उन्हें यों ही खिलाना पड़ता है। यदि इन दिनों उन्हें बिजली उत्पादन में लगाया जाए तो उनकी खाली शक्ति से बिजली बनाकर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।

बैलों से बिजली निर्माण में मुख्य समस्या यह आती है कि इस बिजली को संचित करने का कोई कारगर उपाय नहीं है। यदि अनुसंधान को इस ओर केंद्रित करके इस कमी को दूर किया जा सके, तो स्वायत्त गांवों का गांधी जी का सपना साकार हो सकता है, और आयातित तेल पर देश की निर्भरता कुछ कम हो सकती है। पर्यावरण पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

5 Comments:

अजय कुमार झा said...

kamaal hai...bahut hee anokhi baat inkaa naam kanti bhai nahin balki kranti bhai hona chaahiye...sarkaar ko chaahiye ki in yojnaaon ko protsaahit kare....jaankaaree ke liye aabhaar..

Gyan Dutt Pandey said...

अगर, और यह बहुत बड़ा अगर है, इसकी लागत की गणना सही है तो यह बहुत रोचक व्यवसायिक विचार है।
चार रुपया प्रति किलोवाट-घण्टा लघु पैमाने पर बिना प्रदूषण के विद्युत बनाना तो स्वप्न है!

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

ज्ञानदत्त जी: इस विधि से बिजली बनाने का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी है, वह ठीक किसान के घर पर ही बनता है और इसलिए उसे बिजलीघरों से दूर-दूर तक तारों के माध्यम से ले आने की झझंट नहीं है, जिसके दौराना काफी बिजली नष्ट भी हो जाती है।

असली तकनीकी अड़चन निर्मित बिजली को संचित करने में आएगी। इस तरह की बैटरियां आदि उपलब्ध हैं या नहीं, यदि नहीं हैं, तो उन्हें विकसित किया जा सकता है या नहीं, विकसित करने का काम कौन करेगा, इत्यादि सवाल उठ खड़े होते हैं। बड़े अनुसंधान प्रयोगशालाओं को आगे आना होगा, इन सवालों का समाधना करने।

पर करोड़ रुपए का प्रश्न यह है कि क्या वे आएंगे सामने?

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

इस बिजली का संचयन किया जा सकता है। बस बैटरी सोलर पैनल वाली बैटरी की तरह सतत चार्ज और सतत डिस्चार्ज टाइप बनानी होगी।

लेकिन अब गाँवों में बैल बँचे कहाँ? ट्रैक्टर रखना या भाड़े पर उसे चलाना बैल रखने से सस्ता और सुविधाजनक है।

farhaan khan said...

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