पानी से कौन नहीं परिचित है। कितने ही कामों के लिए हम उसका उपयोग करते हैं। प्यास लगने पर पानी पीते हैं, भोजन उससे पकाते हैं और कपड़े उसीसे धोते हैं। खेती में और पालतू पशुओं को भी पानी की जरूरत होती है। कारखानों और उद्योगों में भी पानी काम आता है। इन कार्यों के लिए पानी का उपयोग करते वक्त हम उसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता का लाभ उठाते हैं -- उसकी सर्वविलायिकता का। पानी ऐसा तरल है जिसमें हर वस्तु घुलती है। बहते पानी से बिजली पैदा की जाती है।
वस्तुतः पानी एक यौगिक पदार्थ है जिसके प्रत्येक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं और आक्सीजन के एक परमाणु के मिलने से बना होता है। पानी एक तरल पदार्थ के रूप में सर्वाधिक परिचित है। परंतु वह उन गिनी-चुनी वस्तुओं में से एक है जो प्राकृतिक रूप में अन्य दो अवस्थाओं में भी पाई जाती हैं, यानी ठोस और गैसीय अवस्थाओं में। ठोस अवस्था में पानी हिम या ओले बनकर गिरता है, पहाड़ियों की चोटियों में जमा होता है, हिमानियों के रूप में बहता है और ठंडे इलाकों में झीलों और तालाबों की सतह को सर्दियों में ढकता है। गैसीय अवस्था में उसे हम हवा की आर्द्रता, मेघ, कुहरा, धुंध आदि में महसूस कर सकते हैं।
आप सोचते होंगे कि पानी की आवश्यकता पीने, नहाने और दैनंदिन की विभिन्न गतिविधियों के लिए ही होती है जिनका हमने ऊपर जिक्र किया। परंतु क्या आपको मालूम है, हमारे शरीर का 65 प्रतिशत पानी से बना हुआ है? पानी शरीर के भीतर कई रासायनिक क्रियाओं को सफल बनाता है। जब आंख में धूल चली जाती है, तो कुछ ग्रंथियां एक तरल पदार्थ छोड़ती हैं, जिसमें पानी का अंश काफी अधिक होता है। यह तरल धूल को आंख से बहा ले जाता है। गरमी लगने पर शरीर से पसीना निकलता है, जिससे ठंडक महसूस होने लगती है। पसीना पानी ही होता है, जिसमें शरीर में बने कुछ मलिन पदार्थ भी घुले हुए होते हैं। इस तरह पसीना बहाकर शरीर शीतल ही नहीं होता, उसे मलिन पदार्थों से छुटकारा भी मिलता है। जो भोजन हम खाते हैं उसमें मौजूद पोषक तत्व और हमारे फेफड़ों द्वारा अवशोषित आक्सीजन शरीर के कोने-कोने तक रक्त द्वारा पहुंचाया जाता है। रक्त पानी से ही बना होता है।
पृथ्वी पर जीवन एक-कोशिकीय जीव के रूप में सर्वप्रथम पानी में प्रकट हुआ। करोड़ों वर्षों में यह सरल जीव अन्य जटिल प्राणियों में परिवर्तित हुआ। कालांतर में इनमें से कुछ तटीय इलाकों में और बाद में ठोस जमीन पर रहने लगे। हमारे चारों ओर जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों की जो विवधता नजर आती है, वह इन्हीं आदिम स्थल-जीवों की उपज है। स्थल पर रहते हुए भी इन प्राणियों के जीवनयापन के लिए पानी की उपलब्धता अनिवार्य है। मनुष्य भी इसका अपवाद नहीं है। उसके प्राचीनतम निवास-स्थल पानी के स्रोतों के आसपास ही हुआ करते थे। संसार के पुराने-पुराने शहर नदी तटों पर बनाए गए। ऐसी नदियों में सिंधु, गंगा, नील, ह्वेंग हो आदि के नाम लिए जा सकते हैं।
पानी के बिना तो जीवन असंभव है। वह जीवन का आधार है। चूंकि पानी इतना मूलभूत पदार्थ है, हमारे पूर्वजों ने उसे पंचभूतों में गिना।
Tuesday, May 12, 2009
पानी -- जीवन का आधार
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: विविध
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1 Comment:
its very for us as an essy and come to our help in school ,,.... thnxx for the one to upload it as it is very uesful
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