चुनाव सिर पर है, और हमें सलाह दी जा रही है कि वोट डालना चाहिए, यह हर मतदाता का कर्तव्य है। वोट डालने से अच्छे उम्मीदवार लोक सभा पहुंचेगे, और अच्छे लोग लोक सभा पहुंचें तो हमारी हालत सुधरेगी, और हमारा देश उन्नति करेगा।
पर क्या बात इतनी सरल है?
केवल वोट डालने से कुछ नहीं बदलेगा। सोच-समझकर वोट डालना होगा। मतदाताओं की भी अपनी संस्थाएं होनी चाहिए, जो पार्टी घोषणा-पत्रों, उम्मीदवारों की छवि और निष्पादन, पार्टियों की नीतियां आदि की छानबीन करे और रिपोर्ट जारी करे, जिन्हें पढ़कर मतदाता सही चयन कर सकें। अभी चयन के लिए मदाताओं के पास पार्टी भाषणबाज, अखबार, टीवी, वेबसाइट आदि ही उपलब्ध हैं, जहां सब मामले का एक पक्ष (पार्टी पक्ष) ही उजागर होता है। इस तरह के मतदाता सेल देशभर में हर मुहल्ले और गांव में होने चाहिए।
यदि मुझे इच्छा हो कि चलो पता लगाएं कि कौन उम्मीदवार कितने पानी में है, तो मेरे घर के दो-चार कदम पर मतदाता सेल होना चाहिए जहां जाकर मैं मेरे चुनाव क्षेत्र से खड़े हो रहे उम्मीदवारों, उनकी पार्टियों और उनके घोषणापत्रों की छानबीन कर सकूं। यहां ऐसे जानकार लोग भी होंगे, जो मुझे निष्पक्ष सलाह दे सकेंगे कि उम्मीदवार कैसे हैं, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, कितने पढ़े-लिखे हैं, क्या पढ़ा है उन्होंने, राजनीति में कितना अनुभव है, पिछले पांच साल में कितनी पार्टियां बदल चुके हैं, कितनी बार चुनाव हार चुके हैं, क्या उनके साथ कोई आपराधिक मामला जुड़ा है, इत्यादि, इत्यादि।
इन सेलों का स्वरूप बरसाती मेंढ़कों का सा न होकर, जो केवल चुनावों के समय प्रकट होते हों, स्थायी होना चाहिए और इन्हें साल भर काम करते रहना चाहिए, और पार्टियों और उम्मीदवारों के बारे में जानकारी निरंतर इकट्ठा करते जाना चाहिए और उन्हें लोगों तक पहुंचाते जाना चाहिए। मूल संविधान में प्रेस को यह काम दिया गया था, लोकतंत्र के चौथे खंभे के रूप में, पर प्रेस को (जिसमें टीवी जैसे अन्य माध्यम भी शामिल हैं) अब व्यवसाय ने मोल ले लिया है। इसलिए लोकतंत्र के पांचवे खंभे के रूप में मतदाता सेल बनाए जाने की सख्त जरूरत है।
आजकल इंटरनेट का जमाना है, इसलिए इन मतदाता सेलों का कोई केंद्रीय मुख्यालय भी होना चाहिए, जिसके वेबसाइट के माध्यम से भी यह सब जानकारी उपलब्ध रहनी चाहिए, हिंदी में।
इन सेलों को उम्मीदवारों और मतदाताओं का इंटरएक्शन की भी व्यवस्था करानी चाहिए, जिसमें उम्मीदवारों से मतदाता (यानि की मैं और आप) उनके विचारों, पार्टी की नीतियों, कार्यक्रमों, वादों आदि के बारे में सवाल पूछ सकें।
ऐसे मतदाता सेल कौन स्थापित करेगा, उसके कर्माचरी कौन होंगे, उसे चलाने के लिए पैसा कहां से आएगा, ये सब विचारणीय मुद्दे हैं। मेरा सुझाव है कि इसे निर्वाचन आयोग की छत्र-छाया में लाया जा सकता है, और निर्वाचन आयोग इसके लिए पैसे जुटा सकता है। मतदाताओं से चंदे भी लिए जा सकते हैं। उद्योगों से चंदा स्वीकार नहीं करना चाहिए, वरना, इसका भी वही हस्र होगा जो प्रेस और टीवी का हुआ। इसे करदाताओं के पैसे से ही चलाया जाना चाहिए।
संविधान में संशोधन करके इन मतदाता सेलों को कानूनी हैसियत प्रदान करने पर भी विचार किया जा सकता है।
Sunday, March 29, 2009
लोकतंत्र का पांचवां खंभा
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: चुनाव
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2 Comments:
पहले वोट डाली जाती थी अपना नेता बनाने के लिए और अब वोट डाली जाती है भ्रष्टाचार को बढावा देने के लिए क्योंकि चाहे कोई भी नेता हो भ्रष्टाचारी हैं सब और अब हम भी लिप्त हैं इस बुराई से
आपने मतदाता सेल की बात की जो स्वच्छ चुनाव प्रणाली के लिए जरूरी है यह वाकई एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है सही उम्मीदवार के निर्वाचन का. किंतु मैं कहना चाहुंगा कि वास्तविक रूप से नागरिक समाज की जागरुकता से ही कुछ काम लायक बात बनेगी. भारत हो या कोई भी विकासशील देश सभी में निर्वाचन पद्धति काफी दोषपूर्ण है. लोकतंत्र में किसी की भी जवाबदेही तय नहीं हो पा रही है. नक्सलवाद हो या राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न या फिर बात करें समावेशी विकास की, ऐसे संवेदनशील मामले हमेशा ही उपेक्षा के शिकार होते रहे हैं. राष्ट्र के प्रश्न लोगों के स्वार्थ के कारण कहीं खो गए से लगते हैं. मैं भी अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए पिछले कुछ समय से ब्लॉग लिखना रहा हूं. आशा करता हूं कि आप जैसे विद्वतजन की नजर मेरे ब्लॉग पर पड़ेगी और आपकी अमूल्य टिप्पणियों से काफी लाभ होगा. मेरा ब्लॉग यूआरएल है:
rkpandey.Jagranjunction.com
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