निश्चय ही वह महात्मा गांधी नहीं हो सकते। यह स्पष्ट करना जरूरी लगता है। गांधी नाम सुनकर लोगों के मन में महात्मा गांधी का विचार ही पहले आता है।
इसलिए, वरुण जब गांधी नाम की विरासत पर अपना दावा ठोकते हैं, तो उसमें फिरोस, इंदिरा और संजय की विरासत हो सकती है, पर महात्मा गांधी की नहीं। वरुण के तौर-तरीके देखकर तो यही लगता है कि उनको संजय की विरासत ही ज्यादा प्राप्त हुई है।
वरुण के विचारों का महात्मा गांधी के विचारों से दूर-दूर का भी संबंध नहीं है। गांधीजी समन्यवादी थे, जो सब कौमों को साथ लेकर चलना चाहते थे, खासकर मुसलमानों को। दूसरे, वे बहुत सोच-विचार कर ही बोलते थे, और कभी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते थे।
इन दोनों ही बातों में वरुण उनसे भिन्न हैं।
वरुण को जो राजनीतिक संस्कृति पारिवारिक विरासत के रूप में मिली है, वह आखिर रंग दिखा ही रही है। यह बड़े खेद की बात है।
और भी खेद की बात यह है कि वरुण उन्हीं मेनका गांधी के पुत्र हैं जिन्हें कुत्ते-बिल्लियों की पीड़ा से अपार सहानुभूति है। लगता है उनके बेटे के लिए मुसलमान कुत्ते-बिल्लियों से भी गए गुजरे हैं।
चुनाव आयोग को वरुण पर एक्सेंप्लरी सजा ठोकनी चाहिए और उसे चुनाव में भाग लेने से रोकना चाहिए। इससे चुनावी भाषणों में भड़काऊ बयानबाजी थोड़ी थमेगी।
एक बात और काबिले गौर है। राहुल और वरुण, इन दोनों चचेरे भाइयों में, राहुल निश्चय ही अधिक मृदु-भाषी, सज्जन, और विवेकशील मालूम पड़ रहे हैं। राजीव और संजय में भी ठीक यही अंतर था। नेहरू खानदान और कांग्रेस पार्टी को राहुल से इस बार बहुत आशाएं होंगी।
Tuesday, March 24, 2009
किस गांधी की बात कर रहे हैं वरुण?
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: चुनाव, वरुण गांधी
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3 Comments:
और आप को निराश ही होना पड़ेगा. पूरे नेहरु खानदान (अब तो यह कहना भी गलत होगा. फिरोज़ खानदान ठीक होगा,) के द्वारा देश कि जनता को गुमराह किया जा रहा है गांधी के नाम पर.
सही कहा आपने। वरूण जैसे नफरत फैलाने वाले लोग किस मुंह से महात्मा गॉंधी का नाम ले सकते हैं।
ab to sonia rahul sabhi gadhi log ek no k chore ho gaye hai g
inki sarkaar mein kitne gothale hua hai kisi ko sajaaaa nhi hui
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