Saturday, March 07, 2009

क्रिकेट और मध्य वर्ग

बैंगलूर के चिन्नस्वामी स्टेडियम में आस्ट्रेलिया और भारत की टीमों के बीच हुई क्रिकेट मैच में अंपायर द्वारा अज़रुद्दीन को संदिग्ध ढंग से लेग बिफोर विकेट आउट दिए जाने का विरोध करते हुए भीड़ ने जो उग्र प्रतिक्रिया जतलाई, उसके विश्लेषण से काफी रोचक निष्कर्ष निकलते हैं। इसी संदर्भ में भारत-श्रीलंका मैच में भारत के खराब प्रदर्शन के विरुद्ध कलकत्ता की भीड़ ने जो तेवर दिखाए, वह भी द्रष्टव्य है।

भीड़ ने इस प्रकार की प्रतिक्रिया क्यों जतलाई? स्पष्ट ही मैच में अपनी टीम की निश्चित हार की स्थिति को बर्दाश्त न कर पाने से भीड़ क्रुद्ध हो उठी। परंतु यह उत्तर संतोष नहीं देता। भारत की टीम का मैच हारना भीड़ के लिए इतना असहनीय क्यों था कि वह मैच को ही आगे न बढ़ने देने जैसे गैरकानूनी कार्य पर उतारू हो गई? जरूर मैच जीतना भीड़ के लिए मनोवैज्ञानिक स्तर पर बहुत अधिक महत्व रखता है, वरना वह कानून को अपने हाथों न लेती।

पहले हम भीड़ की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर विचार करें। भारत में क्रिकेट मध्यम वर्ग का प्रिय खेल है। बहुत अमीर वर्ग और बहुत गरीब वर्गों को क्रिकेट से कोई खास लेना-देना नहीं है। अमीर वर्ग अपने क्लबों-होटलों में घुड़दौड़, बिलियर्ड्स, गोल्फ आदि व्ययसाध्य क्रियाकलापों में मगन रहते हैं, जबकि गरीब वर्ग जीवित रहने के महान खेल में ही इतने उलझे रहते हैं कि क्रिकेट में क्या रुचि लेंगे! क्रिकेट के खिलाड़ी भी इसी मध्यम वर्ग से आते हैं। कपिल देव, सचिन, कांबले आदि नामी खिलाड़ियों के सामाजिक पृष्ठभूमि को देखने से यह बात भली-भांति स्पष्ट हो जाती है। क्रिकेट मैचों को देखने आनेवाली अपार भीड़ भी इसी मध्यम वर्गीय स्त्री-पुरुषों की बनी होती है।

देश में इस वर्ग की स्थिति कुछ यों है कि "भारत संस्थान", यानी भारतीय राज्य का ताम-झाम, उसकी प्रतिष्ठा, उसके क्रियाकलाप, आदि-आदि पर इस वर्ग का अस्तित्व बहुत अधिक निर्भर करता है। उग्र राष्ट्रीयता की जो संकल्पना अंगरेजों की विघटनकारी, सांप्रदायिक नीतियों की प्रतिक्रिया स्वरूप पिछले दो-एक शताब्दियों से भारतीय मानस में घर कर गई है, वह भी बहुत अधिक हद तक मध्यम वर्ग के ही लोगों के मनों में।

इस वर्ग के लिए राष्ट्रीयता की भावना, उसके संकीर्ण अर्थों में, उतना ही आवश्यक है, जितना भोजन-पानी। यह इसलिए क्योंकि इस वर्ग के सदस्यों की आसमान छूती आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति का साधन इनके पास नहीं है। मध्यम वर्ग संचार माध्यमों के जरिए उच्चवर्गीय जीवनयापन रीतियों को देख-परख सकता है, परंतु आर्थिक सामर्थ्यहीनता के कारण उन्हें अपना नहीं सकता। इससे मध्यम वर्ग के लोगों में तीव्र कुंठा ने घर कर लिया है। यही कुंठा क्रिकेट मैचों को देखकर और उनमें अपनी देशीय टीम को जीतते देखकर उनके जेहन से निकल आती है। इस कुंठा का इस प्रकार निकलना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि देश की व्यवस्था इस प्रकार है कि उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति का साधन उनके पास नहीं है।

आजादी के आंदोलन के दौरान लोकतंत्र से जनता को नेताओं ने बड़ी आशाएं बंधाई थीं, कि अंगरेजों के चले जाने पर लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा और इससे आम जनता की सभी तकलीफें मिट जाएंगी। वास्तव में यह नेताओं द्वारा जनता पर किया गया एक बहुत बड़ा छल था। संपन्न-महाजनवर्ग और सामंतवर्ग (राजा महाराजा, जमींदार, व्यापारी, उद्योगपति, आदि) यह अच्छी तरह समझ गए थे कि अपने बलबूते पर अंगरेजों को देश से निकालना संभव नहीं है, और उन्हें यहां से निकाले बगैर इन वर्गों की उन्नति भी नहीं हो सकती थी। राजनीतिक मंच पर गांधीजी के आने से और गांधीजी द्वारा जन साधारण की सहभागिता से आजादी आंदोलन चलाए जाने से इन वर्गों को अंगरेजों को मात देने का एक कारगर तरीका मिल गया। जनता की सक्रिय भागीदारी से देश आजाद हुआ, परंतु अंगरेजों के हाथों से निकलकर सत्ता की बागडोर इन्हीं देशी संपन्न वर्गों के हाथों में गई। कहा यही गया कि सत्ता जनता के हाथ में आई है, परंतु पिछले पचास वर्ष के अनुभव से सभी के लिए यह स्पष्ट हो गया है कि आजादी का असल फायदा किसको हुआ है। इस छलावे का सबसे बुरा असर मध्यम वर्ग पर ही पड़ा। आजादी को लेकर सबसे सुंदर सपने इसी वर्ग ने संजोए थे और इसलिए सबसे बड़ा मोहभंग भी इसे ही हुआ। आजादी की लड़ाई के दौरान जो सिद्धांत, नीतियां एवं आदर्श स्पष्ट-अस्पष्ट रूप से मुखरित हुए थे, उन सबको एक-एक करके नकारे जाते देखकर यह वर्ग अपने आपको अत्यंत विक्षुब्ध और नपुंसक महसूस करने लगा है। आजकल जोरों से फूंके जा रहे खगोलीकरण और उदारीकरण के मंत्र से उसके सामने उसके प्रति और देश के प्रति किए गए छलावे का भयानक चेहरा और भी स्पष्ट रूप से घूमने लगा है। वह देख रहा है कि आज देश गरीबी की रेखा के नीचे पिस रहा है, निरक्षर, निर्वस्त्र, निराश्रित और भूखा है, पर इसकी परवा न करते हुए देश के नेता अपनी तिजोरियां भरने और संपन्न वर्गों के लिए सुख-सुविधा के साधन जुटाने में ही लगे हुए हैं। चाहे कोई राजनीतिक दल हो, यहां तक कि साम्यवादी दल भी, किसी को भी देश के गरीबों और सत्ताच्युतों की परवा नहीं है और न ही देश की प्रतिष्ठा की ही।

खगोलीकरण-उदारीकरण के बल पकड़ने से इस वर्ग के लिए यह भी स्पष्ट हो गया है कि "भारतीय संस्थान" अब किसके हितों के संरक्षण के लिए ऐड़ी-चोटी एक कर रहा है। स्पष्ट ही ये महाजनों और रईसों के हित हैं। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, "भारतीय संस्थान" से मध्यम वर्ग का गहरा आर्थिक-सामाजिक नाता है। अधिकांश मध्यम वर्गीय सदस्य सरकारी-अर्धसरकारी संगठनों, जैसे बैंक, बीमा कंपनी, रेलवे, सेना, पुलिस आदि में कार्यरत हैं, कुछ छोटे-मोटे निजी व्यवसायों में लगे हैं, और इन सबके बच्चे सरकारी विद्यालयों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं, तथा बीमार होने पर ये सरकारी अस्पतालों में ही भर्ती होते हैं। इस प्रकार भारतीय संस्थान से उसकी रोजीरोटी जुड़ी है। अब तक वह इस छलावे में था कि इस भारतीय संस्थान पर उसका भी कोई नियंत्रण है। परंतु आज उसे स्पष्ट हो गया है कि यह संस्थान देशी-विदेशी पूंजीपतियों और उनके हाथों बिके नेतावर्ग का कठपुतला है और उन्हीं के हित-साधन का यंत्र है। न गरीबों की उसे परवा है न मध्यम वर्ग की ही। यह प्रतीति मध्यम वर्ग के लिए एक करारा तमाचा साबित हुआ है, जिसने उसे पूरा-पूरा विश्वासहीन, दिशाहीन, खिन्न एवं हिंसक बना डाला है। मध्यम वर्ग के बहुत से सदस्य इस कटु सचाई को स्वीकारना नहीं चाहते, और वे खेलों में, फिल्मों में और कलाओं में इसके झुठलाए जाने की आशा रखते हैं।

ओलिंपिक्स ने मध्यम वर्ग को दिखा दिया है कि अन्य खेलों से कुछ ज्यादा आशाएं रखना बेकार है। बस एक क्रिकेट है जो उसके लिए यह भ्रम पैदा कर सकता है कि अब भी हम नियंत्रण में हैं। क्रिकेट के मैदान में सचिन या अज़रुद्दीन नहीं खेल रहे होते, बल्कि मध्यम वर्ग का वही कुंठा एवं विषाद ग्रस्त व्यक्ति अपने प्रति भारतीय संस्थान द्वारा किए गए छल का प्रतिकार कर रहा होता है। सब ओरों से निराश मध्यम वर्ग के लिए क्रिकेट का मैदान ही "न्याय" का अंतिम जरिया बचा रहा है। जब वह देखता है कि यहां भी वह हार रहा है, वह छला जा रहा है--और वास्तव में वह छला ही जाता रहा है--तो अपनी असीम निराशा में सचाई को हिंसा द्वारा बदलने की नपुंसक कोशिश करने लगता है।

मध्यम वर्ग द्वारा शेषन, खैरनार आदि में राष्ट्रीय हीरो ढूंढ़ने के पीछे भी यही मनोवृत्ति काम करती है। इसके पीछे यही निराशापूर्ण विश्वास है कि "नहीं, भारतीय संस्थान मुझे धोखा नहीं दे सकता, और यदि उसने मुझे धोखा दिया भी है, तो शेषन या खैरनार मेरी ओर से उसे दंड देगा और जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा!"

मध्यम वर्ग निराशा के वशीभूत होकर पलायनवादी हो गया है। ये सब घटनाएं इसी भयंकर तथ्य को उजागर करती हैं। आनेवाले दिनों इस वर्ग के और उग्र और हिंसक होने की ही संभावना है।

मध्यम वर्ग हमेशा यह भ्रम सालता रहा है कि वह उच्च वर्ग का ही एक अंग है। अब उसे धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है कि महाजनी व्यवस्था में मध्यम वर्ग उच्च वर्गों से बराबरी कभी नहीं कर सकता। मध्यम वर्ग की त्रासदी यह है कि वह निम्न वर्गों के साथ मिलकर, उनके सुख-दुख में शरीक होकर अपने आपको उत्पीड़न से छुड़ाने का साझा प्रयत्न अपनी झूठी शान एवं अभिमान के चलते नहीं कर सकता। जब तक वह ऐसा नहीं करता, उसकी मुक्ति नहीं हो सकती। आजादी की लड़ाई से उसे यही सीख लेनी चाहिए। उस लड़ाई में भी मध्यम वर्ग तभी सफल हो सका था जब गांधीजी के नेतृत्व में वह किसानों, मजदूरों और भूमिहीनों का साझेदारी प्राप्त कर सका। इन्हीं वर्गों के योगदान के सुफलस्वरूप ही भारत ने प्रजातांत्रिक, समाजवादी व्यवस्था अपने शासन हेतु चुना।

परंतु आजादी के बाद इस व्यवस्था को जनता की भलाई से मोड़कर महाजनों और सत्ताधीन वर्गों की भलाई किस प्रकार साधी गई, यह इस देश की जनता पर किया गया एक महान विश्वासघात है। मध्यम वर्ग का भी देश पर किए गए इसमें मिलीभगत है, क्या इससे इनकार किया जा सकता है? विडंबना यह है कि आज इस विश्वासघात का शिकार स्वयं मध्यम वर्ग हो रहा है, और यह सचाई उसे बिलकुल रास नहीं आ रही। अपने ही जाल में फंसना किसे अच्छा लगता है? क्रिकेट के मैदान में हुल्लड़ मचाना अपने ही जाल में फंसे मध्यम वर्ग का छटपटाना ही है।

3 Comments:

RAJNISH PARIHAR said...

माध्यम वर्ग की लगातार उपेक्षा के कारण ही ये हालात पैदा हुए है..लेकिन हमारे नेताओं के पास टाइम ही तो नहीं है...अगर ध्यान देते तो...भारत संस्थान भी मजबूत होता...

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है।
शुभकामनाएं।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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