Friday, March 06, 2009

तमिल महाकवि सुब्रमण्य भारती

तमिल भाषा के प्रखर कवि और स्वतंत्रता सेनानी श्री सुब्रमण्य भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 को तमिल नाड के एट्टायपुरम नामक छोटी जमींदारी रियासत में हुआ था। वे चिन्नस्वामी अय्यर के पुत्र थे। सुब्रमण्य भारती ने अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय बहुत कम उम्र में ही देना शुरू कर दिया था। सात साल की उम्र में वे कविता रचने लगे थे। जब वे मात्र 11 साल के थे उन्होंने कविताई में अनेक जानेमाने कवियों को हरा दिया था। तबसे उन्हें भारती की पदवी हासिल हो गई। भारती का अर्थ सरस्वती है। उनकी पढ़ाई तिरुनलवेली और एट्टायपुरम के स्कूलों में हुई। पंद्रह वर्ष की आयु में उन्होंने चेल्लम्माल से विवाह किया।

उनेक पिता के देहावसान के बाद 1818 में वे वाराणसी चले गए। वहां वे अपनी मौसी कुप्पम्माल और उनके पति कृष्णशिवम के साथ दो साल रहे। वाराणसी में रहते हुए उन्होंने हिंदी और संस्कृत का गहन अध्ययन किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ऐंट्रेन्स परीक्षा अव्वल दर्जे में उत्तीर्ण की। पढ़ाई पूरी करके वे एट्टायपुरम लौट आए और उन्हें वहां के जमींदार के दफ्तर में तुरंत नौकरी मिल गई।

बेहतर आमदनी की तलाश में कुछ समय उन्होंने तमिल भाषा के शिक्षक के रूप में सेतुपत हाई स्कूल, मदुरै, में काम किया। मदुरै से वे चेन्नै चले गए जब उन्हें तमिल दैनिक स्वदेशमित्रन में पत्रकार की नौकरी मिली। स्वदेशमित्रन में काम करते हुए उन्हें देश की तत्कालीन दयनीय स्थिति और आजादी के लिए किए जा रहे प्रयत्नों की जानकारी मिली। स्वदेशमित्रन के संवाददाता के रूप में उन्होंने वाराणसि (1905) और कलकत्ता (1906) में आयोजित कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लिया।
सुब्रमण्य भारती के राजनैतिक गुरु स्वामी विवेकानंद की शिष्या बहन निवेदिता थीं। इनसे सुब्रमणय भारती की मुलाकात कांग्रेस अधिवेशन के दौरान कलकत्ता में हुई। बहन निवेदिता के संसर्ग से सुब्हमण्य भारत में देशप्रेम की प्रखर भावना प्रज्ज्वलित हो उठी जो उनकी कविताओं में फूट निकलीं।

सुब्रमण्य भारती ने अपना एक अखबार भी शुरू किया जिसका नाम उन्होंने भारत रखा। इसमें उन्होंने भारत की आजादी, विकास, महिला उन्नति आदि के बारे में लेख, कविताएं और एकांकियां लिखे। इन रचनाओं ने अनेक पाठकों में देशभक्ति की भावना जगाई। परंतु इन रचनाओं के कारण वे शासकों की नजरों में भी आ गए और उन्हें पुलिस उत्पीड़न का शिकार बनना पड़ा। आत्मरक्षा के लिए उन्होंने पांडिच्चेरी में शरण ली जहां फ्रांसीसियों का शासन था और इसलिए अंग्रेजों की पुलिस उन्हें परेशान नहीं कर सकती थी। वे दस साल पांडिच्चेरी में रहे और निरंतर कविता रचते रहे। उनकी प्रसिद्ध कविताओं में कन्नन पाट्टु, पांचाली शपथम और कुइल पाट्टु हैं। कन्नन पाट्टू में उन्होंने कृष्ण भगवान पर कविताएं लिखी हैं। पांचाली शपथम में द्रौपदी की कहानी कहते हुए उन्होंने स्त्रियों की उन्नति की आकांक्षा की है। कुइल पाट्टू रहस्यवादी रचना है।

नौकरी के अभाव में उन्हें अपने पांडिच्चेरी प्रवास के दौरान बहुत अधिक आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। आखिरकार और कोई विकल्प न रहने पर उन्हें पांडिच्चेरी छोड़कर वापिस मद्रास आना पड़ा। लेकिन 1918 नवंबर में वे मद्रास पहुंचने से पहले ही कुडप्पूर नामक स्थान में पुलिस द्वारा कैद कर लिए गए। ऐनी बेसेंट, सीपी रामस्वामी अय्यर आदि प्रभावशाली नेताओं के कहने पर वे बाद में छोड़ दिए गए। सुब्हमण्य भारती ने 1920 में एक बार फिर स्वदेशमित्र में काम शुरू कर दिया और देश भक्ति की कविताएं लिखते रहे। सन 1921 को 11 सितंबर को 39 वर्ष की उम्र में उनकी अचानक मृत्यु हो गई। कहते हैं कि वे रोज मंदिर के हाथी को केले का गुच्छा अपने हाथों से खिलाते थे। उस दिन हाथी मस्त में था और महावतों ने उनसे हाथी के पास न जाने की सलाह दी थी। पर सुब्रमणय भारती नहीं माने। जैसे ही वे हाथी के पास गए, उसने उन्हें सूंड़ में पकड़कर उछाल दिया। वे बुरी तरह घायल हो गए और वहीं दम तोड़ दिया।

भारती उन विचारक कवियों में से एक थे जो मानव कल्याण में रुचि रखते थे। वे कहते थे लोगों को पढ़ाना-लिखाना हजार मंदिर बनाने से बेहतर है। कविताओं के अलावा भारती ने अनेक कहानियां, निबंध, एकांकियां आदि रचे हैं जिनका अनुवाद भारत की लगभग सभी भाषाओं सहित रूसी, अंग्रीजी, फ्रेंच, जर्मन आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी हुआ है।

3 Comments:

रवि रतलामी said...

बहुत बढ़िया. आपके पास तो रचनाओं का अंबार सा है. इसी तरह पोस्ट करते रहें. ये सामग्रियाँ हिन्दी पाठकों के लिए निश्चित ही इंटरनेट पर बहुत काम की होंगीं.

not needed said...

सुब्रमण्य भारती के बारे में इस जानकारी के लिए धन्यवाद. मैं इनका नाम अक्सर लेता हूँ अपनी बातों में!

प्रज्योत कडू said...

भारती जी कौन है यही मै कई दिनों से जानना चाहता था. इस जानकारी के लिए धन्यवाद.

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