संसद भवन। मई 2009। चुनाव के बाद नए सांसद संसद में एकत्र हैं। प्रधान मंत्री मायावती सांसदों को संबोधित कर रही हैं। विपक्षी दलों के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी अग्रिम पंक्ति की कुर्सियों में से एक में विराजमान हैं। संसद भवन खचाखच भरा हुआ है। सांसदों की आपसी बातचीत के शोर के कारण किसी की भी बात सुनाई नहीं दे रही है।
अध्यक्ष महोदय माइक्रोफोन पर चिल्लाकर सबको चुप हो जाने को कह रहे हैं। धीरे-धीरे शोर कम हो जाता है। तब मायावती कहने लगती हैं, "इस समय हम एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करने के लिए यहां एकत्र हैं। इस मुद्दे के निराकरण के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है। इसलिए मैं बहुजन समाज पार्टी, उसको समर्थन देनेवाली पार्टियों तथा विरोधी दलों के सांसदों से अपील करती हूं कि वे सब इस मुद्दे के निराकरण में सहयोग दें। वैसे यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है, इसलिए संशोधन के लिए आवश्यक दो-तिहाई बहुमत हासिल करना मुश्किल नहीं होना चाहिए। मैं चाहती हूं कि इस मुद्दे को जल्दी से जल्दी सुलटाकर संसद अन्य अधिक महत्वपूर्ण कार्रवाइयों की ओर आगे बढ़े, और इस सीधे से मुद्दे पर अनावश्यक बहस करके अधिक समय न बिगाड़े।"
इस छोटी सी भूमिका के बाद प्रधान मंत्री ने उप प्रधान मंत्री रामविलास पासवान को संक्षेप में संसद सदस्यों के सामने विचाराधीन मुद्दे को पेश करने को कहा।
रामविलास पासवान ने बोलना आरंभ किया, "धन्यवाद, प्रधान मंत्री जी। प्रिय सांसदो, आप सबने अखबारों व अन्य संचार माध्यमों से जान लिया होगा कि हमारे देश का राष्ट्रीय पशु बाघ इस वर्ष के आरंभ में विलुप्त हो गया। आखिरी शेर कारबट राष्ट्रीय उद्यान में चोर शिकारियों के हाथों मारा गया। यह एक दुखद घटना है और हमारे जंगलों की शान इस शानदार पशु के विलुप्त होने से हजार गुना कम हो गई है। लेकिन उससे भी ज्यादा पेचीदा मामला यह है कि बाघ के विलुप्त होने से एक संवैधानिक संकट पैदा हो गया है।
"जैसा कि आप जानते हैं, बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है। लेकिन उसके विलुप्त हो जाने से स्थिति एकदम बदल गई है। हमें अब हमारे देश के लिए नया राष्ट्रीय पशु चुनना होगा। इसी महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने के लिए हम यहां एकत्र हुए हैं।
"मैं जानता हूं कि राष्ट्रीय पशु का चुनाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, परंतु जहां तक मैं समझता हूं, और जैसा कि हमारी माननीय प्रधान मंत्री ने अभी कहा, वह राजनीति से हट कर है। इसलिए इसे राजनीति से अलग रखते हुए सब सांसद इस संवैधानिक संकट को सुलटाने में बहुजन समाज पार्टी की सरकार की मदद करें। विपक्षी दलों के नेता श्री आडवाणी जी से मैं निवेदन करता हूं कि इस मुद्दे की बहस को अब वे आगे बढ़ाएं और यह बताएं कि उनकी पार्टी, यानी भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय पशु के रूप में किस प्राणी का समर्थन करती है।"
लालकृष्ण आडवाणी अपनी खास शैली में मुसकराते हुए बोलने लगे, "माननीय उप प्रधान मंत्री श्री रामविलासन पासन के प्रति मैं आभारी हूं। बाघ का विलुप्त होना हम सबके लिए एक दुखद घटना है। उसके विलुप्त होने से जो संवैधानिक समस्या पैदा हो गई है उसे सुलटाने में हमारी पार्टी सरकार को पूरा समर्थन देगी। जैसा कि आप सब जानते हैं, भारतीय जनता पार्टी इस देश की संस्कृति, इतिहास, भाषा, रीति-रिवाज आदि की उन्नति के लिए कृतसंकल्प है। अतः हम चाहते हैं कि देश का राष्ट्रीय पशु कोई ऐसा प्राणी हो जो देश की संस्कृति का पूरा प्रतिनिधित्व करे।
"हमारी पार्टी ने इस विषय पर काफी विचार किया है और हमारी राय है कि राष्ट्रीय पशु पूजनीय गौ माता को बनाया जाए। आप सब जानते होंगे कि संविधान में गौ माता की रक्षा शासन का एक मुख्य कर्तव्य बताया गया है। हमारे पूजनीय बापूजी भी गाय के प्रति बड़ी ममता रखते थे। हमारे धार्मिक ग्रंथों में गाय की खूब महिमा गाई गई है। वृषभ भोलेनाथ का वाहन है और कृष्ण तो गायों के पालक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
"गाय हमारे किसानों का अभिन्न साथी है। गाय पर ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। हमारे देश के करोड़ों बच्चों को गाय ही अपने दूध से पोसती है। इसलिए गाय एक तरह से इस देश की माता है। उसे ही हमारी पार्टी राष्ट्रीय पशु के रूप में स्वीकार करती है और आप सबसे मेरी विनम्र विनती है कि इसी निरीह एवं उपयोगी प्राणी को देश के प्रतीक के रूप में गौरवान्वित करके उसके द्वारा हम पर किए गए असंख्य एहसानों को चुकाया जाए।"
आडवाणी जी की बात सुनकर भारतीय जनता पार्टी के सभी सदस्य नारा लगाने लगते हैं, "गो माता की जय हो।"
गृह मंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अंसारी अपनी ओजस्वी वाणी में श्री आडवाणी के विरुद्ध बहस में उतर पड़ते हैं, "विपक्षी नेता आडवाणी जी ने जो बातें कही हैं उनसे हम बिलकुल सहमत नहीं हो सकते। राष्ट्रीय पशु का मामला कोई धार्मिक विषय नहीं है, फिर भी हमें खेद है कि श्री आडवाणी जी ने अपनी पार्टी की आदत के मुताबिक इस सीधे और सरल विषय को भी एक धार्मिक मोड़ देना चाहा है।
"गाय हमारे देश के सभी नागरिकों को कदापि स्वीकार्य नहीं हो सकती। आपको भूलना नहीं चाहिए कि संविधान के अनुसार यह देश धर्मनिरपेक्ष है और यहां हिंदुओं के अलावा मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनों व अनेक अन्य धर्मों के लोग भी रहते हैं। उन सबकी संख्या इस देश की कुल आबादी की एक-तिहाई से कम नहीं है। गाय हिंदुओं को भले ही रुचे लेकिन हमारे मुसलमान भाइयों को उसके प्रति कोई विशेष लगाव नहीं है। उनके लिए वह ऊंट, बकरी, भैंस, घोड़ा आदि के समान एक साधारण जानवर ही है। इतने साधारण जानवर को राष्ट्र का प्रतीक बनाना उनको रास नहीं आएगा।
"इसके अलावा भी गाय जैसी साधारण पशु को राष्ट्र का प्रतीक बनाना बिलकुल बेतुकी बात है। राष्ट्र के प्रतीक में लोगों में राष्ट्र के प्रति आस्था जगाने की क्षमता होनी चाहिए और वह देखने-सुनने में गौरवशाली होना चाहिए। मेरा प्रस्ताव है कि इन दोनों गुणों का धनी हाथी को राष्ट्र-पशु बनाया जाए। हमारे माननीय विपक्षी नेता श्री आडवाणी जी को इसमें कोई विशेष आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि हाथी भी गाय जितना ही पवित्र जानवर है। हिंदुओं के प्रिय देवता गणेश तो हाथी के ही प्रतीक हैं।"
अपनी जोशीले पार्टी सदस्य का यह चालाकी भरा प्रस्ताव सुनकर प्रधान मंत्री मायावती धीमे से मुस्कुराईं। बहुजन समाज पार्टी के सांसद मेजें ठोंक-ठोंकर अपनी पार्टी के प्रतीक हाथी को राष्ट्रीय पशु बनाने के मुख्तार अंसारी के प्रस्ताव का समर्थन करने लगे।
तभी संसदाध्यक्ष की अनुमति लेकर कांग्रेस के नेता गुजरात वासी श्री शंकर सिंह वाघेला बड़े आक्रोश के साथ बोल उठे, "गृह मंत्री मुख्तार अंसारी की बात सुनकर मुझे बड़ा आघात पहुंचा है। खेद है कि सत्ता में आने और गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद को संभालने के बाद भी ये अपनी पार्टी से आगे सोच नहीं पा रहे हैं। हाथी तो सत्तारूढ़ पार्टी का चुनाव चिह्न है और उसे किसी भी हालत में राष्ट्रीय पशु नहीं बनाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय पशु किसी पार्टी विशेष की बपौती नहीं हो सकता, वह सारे राष्ट्र का प्रतीक है। ऐसा ही कोई पशु राष्ट्रीय पशु हो सकता है जो सारे राष्ट्र को मंजूर हो। मैं सुझाता हूं कि सिंह को राष्ट्रीय पशु बनाया जाए। सिंह बाघ जितना ही शौर्यवान और आकर्षक पशु है और पुराने जमाने से ही राजा-महाराजाओं का प्रतीक रहा है।"
अपनी बात का अनादर होते देखकर गृह मंत्री मुख्तार अंसारी गुस्से से आग बबूला हो उठे और चीखते हुए बोले:- "वाघेला जी, आपका तर्क बिलकुल निराधार है। क्या आपको पता नहीं कि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न कमल इस देश का राष्ट्रीय पुष्प है? यदि देश का राष्ट्रीय पुष्प किसी पार्टी का चुनाव चिह्न हो सकता है, तब हमारी पार्टी का चुनाव चिह्न राष्ट्रीय पशु क्यों नहीं हो सकता? यदि हाथी राष्ट्रीय पशु नहीं हो सकता, तो कमल को भी राष्ट्रीय पुष्प नहीं रहने देना चाहिए और उसे भी संविधान में संशोधन करके बदल देना चाहिए।"
कम्यूनिस्ट पार्टी के सीताराम यचूरी बोल पड़े, "मैं वाघेला साहब की इस बात से बिलकुल सहमत हूं कि किसी पार्टी विशेष का चुनाव चिह्न राष्ट्रीय पशु नहीं बनाया जाना चाहिए। लेकिन उनकी दूसरी बात कि सिंह को राष्ट्रीय पशु बनाया जाए, बिलकुल व्यावहारिक नहीं है। शायद उन्होंने सिंह का समर्थन इसलिए किया क्योंकि सिंह उनके अपने राज्य गुजरात का निवासी है। इस तरह की क्षेत्रीय मानसिकता से हमें उबरना चाहिए।
"सिंह के विरुद्ध दूसरी जो बात जाती है, वह यह है कि आज सिंह की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। पिछले माह वन विभाग द्वारा की गई गणना के अनुसार गीर के जंगलों में केवल 350 सिंह बचे हुए हैं। इसलिए इसकी संभावना बहुत अधिक है कि आने वाले चार-पांच सालों में सिंह भी इस देश से विलुप्त हो जाएगा। ऐसे में हमें फिर अपना राष्ट्रीय पशु बदलना पड़ेगा। इससे बेहतर है कि हम इस मुद्दे का कोई स्थायी समाधान निकालें।
"मैं समझता हूं कि कोई ऐसे प्राणी को राष्ट्रीय प्रतीक बनाया जाना चाहिए जो आज की बदली हुई परिस्थितियों और मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करता हो। सिंह, बाघ, हाथी आदि सामंती व्यवस्था की याद दिलाते हैं। प्रथम दो तो हिंसा और शौर्य के प्रतीक हैं। आज के व्यावसायिक युग में इन दोनों भावनाओं को कोई स्थान नहीं है। रही बात हाथी की। हाथी कोई उपयोगी पशु नहीं है। उसकी छवि एक ऐसे पशु की है जो उसके मालिक के धन-दौलत को धीरे-धीरे समाप्त कर देता है। हमारे ही देश के सार्वजनिक उद्यमों को उचित ही सफेद हाथी कहा गया है क्योंकि वे धीरे-धीरे देश की संपत्ति को खाए जा रहे हैं। जिस पशु में ऐसी भावना निहित हो, उसे कदापि राष्ट्रीय पशु नहीं बनाना चाहिए।
"मेरा सुझाव है कि हम कोई ऐसे छोटे एवं सफल प्राणी को चुनें जिसमें वर्तमान परिस्थितियों में तरक्की करने के गुण मौजूद हों। मेरा इशारा एक ऐसे पशु की ओर है जो तेज बदलती परिस्थितियों के मुताबिक अपने आपको ढाल लेता है, और जो चालाक भी है, यानी कि गीदड़। आप को ज्ञात होगा कि पंचतंत्र, हितोपदेश आदि प्राचीन ग्रंथों में गीदड़ का खूब गुण गाया गया है। गीदड़ जैसे स्वभाव वाले नेता ही आजकल ज्यादा दिखाई देते हैं। इसलिए राष्ट्र का पशु उनके जैसे स्वभाव वाला हो, तो अच्छा।"
सीताराम यचूरी की इस सुझाव से सारे सांसदों में खुसुरफुसुर मच गई। अध्यक्ष महोदय ने इस खलबली को शांत करने का प्रयास आरंभ कर दिया। तब तक संसद के सभी मुख्य पक्ष बोल चुके थे। इसलिए संसदाध्यक्ष ने राष्ट्रीय पशु के मामले पर वोट डलवा दिए। देखा गया कि 90 फीसदी वोट गीदड़ के पक्ष में पड़े।
प्रधान मंत्री मायावती ने प्रसन्न मुद्रा से सांसदों को संबोधित करते हुए कहा, "मैं आप सबकी आभारी हूं कि आपने विचाराधीन मुद्दे पर आपसी राग-द्वेष से ऊपर उठकर वोट किया। मैं गीदड़ को इस देश का नया राष्ट्रीय पशु घोषित करती हूं। इस संबंध का राजपत्र शीघ्र निकाला जाएगा।"
Saturday, March 28, 2009
राष्ट्रीय पशु गीदड़
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4 Comments:
तेज और करारा व्यंग, बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास। बहुत बहुत बधाई
नये राजनैतिक पंचतंत्र की रोचक कथा! मज़ा आ गया!!
लाल सेना के सरदार ने गिदड़ खूब सुझाया.
जोरदार व्यंग्य.
जंगल नहीं बचेगा तो क्या गीदड़ बचेगा।..लेकिन जब नेतृत्व ही जंगली हो जाए और कमान रंगे सियारों के हाथ में हो तो जो हो जाए वह कम है। अच्छे व्यंग्य के लिए बधाई।
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