Saturday, August 08, 2009

हाथ मिलाने का असली अर्थ

बिना बोले बातचीत - 5

शारीरिक चेष्टाएं कुछ विशिष्ट संदर्भों में विशिष्ट अर्थ भी ग्रहण कर लेती हैं। उदाहरण के लिए नृत्य की मुद्राओं को लिया जा सकता है। प्रत्येक मुद्रा का अर्थ हमारी संस्कृति द्वारा निर्धारित होता है। एक अन्य उदाहरण परिवहन पुलिस द्वारा उपयोग में लाते शारीरिक संकेत हैं, जिनके भी अत्यंत विशिष्ट अर्थ होते हैं। इसी प्रकार गूंगे-बहरों के लिए विकसित संकेतों की भाषा लगभग उतनी ही व्यंजक होती है जितनी हमारी सामान्य भाषा, बशर्ते कि हम उन संकेतों का सही अर्थ जान जाएं। क्रिकेट के मैदान में भी अंपायर द्वारा सांकेतिक भाषा का प्रयोग होता है।

इतना ही नहीं, प्रत्येक समुदाय की सांकेतिक भाषा अपने-आप में विशिष्ट होती है। उदाहरण के लिए भारत में किसी व्यक्ति से मिलने पर हाथ जोड़कर नमस्ते किया जाता है। यूरोप आदि प्रदेशों में उससे हाथ मिलाया जाता है। जापान आदि देशों में उसके सामने झुककर उसका स्वागत किया जाता है।

प्रसंगवश हाथ मिलाने की प्रथा कैसे आरंभ हुई यह जानना रोचक रहेगा। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इसकी शुरुआत यूरोप में मध्य युग में हुई थी। तब संपूर्ण यूरोप में बख्तरबंद घुड़सवार योद्धा हथियारों से लैस होकर घूमा करते थे। जब एक योद्धा दूसरे से मिलता था जिससे वह युद्ध नहीं करना चाहता, तो वह अपने दाएं हाथ की हथेली को उसकी ओर बढ़ाता था जिसका अर्थ था, "देखो, मेरे हाथ में हथियार नहीं है। मैं मित्रता चाहता हूं". यही प्रथा विकसित होकर हाथ मिलाने की प्रथा में बदल गई।

6 Comments:

संगीता पुरी said...

देखो, मेरे हाथ में हथियार नहीं है। मैं मित्रता चाहता हूं
बहुत रोचक जानकारी !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हाथ मिलाने का असली अर्थ बताने के लिए,
धन्यवाद।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

ऐसा तो सोचा भी नहीं था।

Unknown said...

dhnyavaad
achha laga yah jaan kar..........

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छा है जी। हम तो बिना हथियार जन्मे और अब तक भी न हासिल कर सके हथियार।

दिनेशराय द्विवेदी said...

मेरे हाथ में भी हथियार है और आप के भी। हम तो आप से इन हथियारों सहित मानवता के शत्रुओं के विरुद्ध हाथ मिलाना चाहते हैं।

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