Wednesday, August 05, 2009

साक्षात्करों में सफलता

बिना बोले बातचीत - 2

मान लीजिए, दो उद्योगों के प्रतिनिधि व्यावसायिक समझौता करने हेतु एकत्र हुए हैं। दोनों अपनी-अपनी कंपनी के उच्च पदाधिकारी हैं और उनका ही निर्णय अंतिम होगा। इसलिए समझौते की शर्तों पर सहमति होती है या नहीं, यह इन दोनों प्रतिनिधियों पर पूरा-पूरा निर्भर करता है। पर दोनों ही प्रतिनिधि एक-दूसरे को नहीं जानते। वे पहली ही बार एक-दूसरे से मिलनेवाले हैं। समझौते का रुख एवं परिणाम बहुत कुछ दोनों प्रतिनिधियों के स्वभावों, चारित्रिक विशेषताओं, उनके आत्मविश्वास, अनुभव आदि पर निर्भर होगा। यदि इनमें से कोई भी प्रतिनिधि दूसरे के बारे में उपर्युक्त विषयों में कुछ जान सके, तो वह इस जानकारी का लाभ उठाते हुए समझौते के दौरान अपनी शर्तों को अपने प्रतिद्वंद्वी से मनवा सकता है, या उसके कठिन शर्तों से सहमत होने से बच सकता है।

इसी संदर्भ में उसकी शारीरिक चेष्टाओं का बारीकी से अवलोकन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि केवल उनकी सहायता से यह जाना जा सकता है कि वह व्यक्ति अनुभवी है या नौसिखिया, मानसिक दृष्टि से उत्तेजित अवस्था में है या सधा हुआ, आसानी से दबाव में आनेवाला है अथवा दूसरों पर दबाव डालनेवाला।

यदि उनमें से एक प्रतिनिधि बार-बार माथे का पसीना पोंछता रहता हो, अपनी शर्ट का कालर ठीक करता रहता हो या हाथ मलता रहता हो, तो स्पष्ट ही इन सबसे यही जाहिर होता है कि वह सहमा हुआ है, कम अनुभवी है और समझौते के परिणामों से आशंकित है। यदि उसकी इन सब चेष्टाओं को देखकर दूसरा प्रतिनिधि समझ जाए कि वह किस मनस्थिति में है, तो वह आसानी से इसका फायदा उठा सकता है। इसलिए उद्योगों, राष्ट्रों आदि के उच्च प्रतिनिधियों को खास प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे अपनी ऐसी शारीरिक चेष्टाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखें जिनसे दूसरा व्यक्ति उनके मनोभावों को समझ सकता हो। कुछ अनुभवी लोग इससे आगे बढ़कर जानबूझकर ऐसी शारीरिक चेष्टाएं करते हैं जिससे कि दूसरों पर एक खास प्रकार का असर पड़े। उदाहरण के लिए वास्तव में डरा हुआ एवं आशंकित होने के बावजूद यदि कोई ऊंची आवाज में, सीना तानकर, मुट्ठियों को बार-बार हवा में उछालते हुए बोले, तो सामनेवाला इस गलतफहमी में आ सकता है कि यह तो काफी रौबीला व्यक्ति है, जबकि असलियत इसके ठीक विपरीत होगी। उसकी इस गलतफहमी का वह लाभ उठा सकता है और दूसरों को स्वयं अपनी कमजोरियों का लाभ उठाने से रोक सकता है।

अब आते हैं अधिक रोजमर्रा की एक वस्तुस्थिति में, यानी नौकरियों के साक्षात्कार। साक्षात्कारों के दौरान अधिकांश आवेदक घबराए हुए और आशंकित अवस्था में होते हैं। उन्हें यह चिंता रहती है कि क्या उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं, साक्षात्कार लेने वाले उनसे किस प्रकार के प्रश्न पूछेंगे, क्या वे उनका ठीक प्रकार से जवाब दे पाएंगे या नहीं। उनकी घबरहाट उनकी शारीरिक चेष्टाओं से प्रकट होती है। इसे देखकर साक्षात्कार लेने वाले समझ जाते हैं कि वे तनाव की स्थिति में हैं और उन्हें अधिक तंग करते हैं। परंतु यदि वे अपनी इन चेष्टाओं को नियंत्रण में रख सकें, तो घबराया हुआ होने पर भी अपनी घबराहट के बारे में साक्षात्कार लेने वाले जान नहीं पाएंगे, और वे इस गलतफहमी में हो जाएंगे कि यह आवेदक अधिक संतुलित एवं आत्मविश्वासी लगता है। उनकी यह धारणा उस आवेदक को नौकरी दिलाने में काफी मदद कर सकती है।

इस प्रकार शारीरिक चेष्टाओं तथा उनके द्वारा व्यक्त मनोभावों की जानकारी लाभदायक हो सकती है।

(... जारी)

2 Comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

उपयोगी। इन सब बातों के अलावा अभ्यास भी महत्त्वपूर्ण है। मॉक साक्षात्कार पर भी प्रकाश डाल दीजिएगा।

Gyan Dutt Pandey said...

सही लिखा जी। एक साक्षात्कार बैटल ऑफ नर्व्स है कैण्डीडेट के लिये।

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