हिंदी का पहला समांतर कोष (थिसोरस) अरविंद कुमार और उनकी धर्म पत्नी कुसुम कुमार ने तैयार किया है। अरविंद कुमार माधुरी नामक फिल्म पत्रिका के संपादक रह चुके हैं। इस कोष को पूरा करने में उन्हें 25 साल लगे। कोष को दिल्ली स्थित नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है। इसमें 160,855 शब्दों के समांतर शब्द दिए गए हैं।
शब्द कोष और समांतर कोष का अंतर समझाते हुए अरविंद कुमार कहते हैं कि जहां शब्द कोष शब्दों को परिभाषा देते हैं, समांतर कोष भाषा को शब्द देता है। श्री कुमार ने समांतर कोष पर 1952 में काम शुरू किया था, जिससे ठीक एक सदी पहले, यानी 1852 को, अंगरेजी भाषा का पहला समांतर कोष रोजर ने प्रकाशित करवाया। श्री कुमार बताते हैं कि संस्कृत भाषा में सबसे पहले समांतर कोष बने।
कोष पर काम करने के अनुभवों को सुनाते हुए श्री कुमार कहते हैं कि उनका पहला प्रशंसक एक बिल्ली थी जो उनके कमरे में एक कोने पर लेटी-लेटी उनके काम को देखती रहती थी। कभी-कभी वह उनकी गोदी पर भी आकर बैठ जाती थी। जिस काम को पूरा करने में पूरे ढाई दशक लगे उसके बारे में श्री अरविंद का सोचना था कि वह बस दो-ढाई सालों की बात है। सौभाग्य से 1980 के दशक में कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के एक छात्र श्री मोहन तांबे ने जिस्ट कार्ड का आविष्कार किया जिससे कंप्यूटर पर हिंदी के तथ्य कोष संकलित करना संभव हुआ। इससे कोष का काम काफी सरल हुआ।
भविष्य के लिए उनकी अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं, जैसे हिंदी-अंगरेजी का समांतर कोष और समस्त भारतीय भाषाओं का एक साझा समांतर कोष का निर्माण। श्री कुमार बच्चों के लिए कहानियां भी लिखना चाहते हैं।
Sunday, August 02, 2009
हिंदी का पहला समांतर कोष
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: समांतर कोष, हिंदी
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6 Comments:
हिन्दी को आज तकनीक की बहुत आवश्यकता है। क्या होता यदि श्री मोहन ताम्बे ने आविष्कार नहीं किया होता !
किसी भी भाषा की उन्नति में एक साथ बहुत से कार्यों को करने की जरूरत होती है। कभी अच्छा साहित्य सृजन किसी भाषा की उन्नति का मापदण्ड था। यह आज भी है लेकिन इसके साथ अनेक अन्य कार्य भी जरूरी हैं (केवल साहित्य सृजन से काम नहीं चलेगा)।
हिन्दी में तरह तरह के कार्य करने वाले साफ्टवेयर बने ताकि कम्प्यूटर पर काम करने की इच्छा रखने वाले किसी साधारण व्यक्ति को किसी भी प्रकार की तकनीकी परेशानी का सामना न करना पड़े।
सभी महत्वपूर्ण, अति-उपयोगी एवं अति-प्रचलित साफ्टवेयरों पर हिन्दी का पूर्ण समर्थन हो।
आनलाइन एवं आफलाइन उपयोग के लिये हिन्दी का साहित्य, तरह-तरह के हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी के उपयोगी लेख, हिन्दी के जीवनोपयोगी सामग्री आदि उपलब्ध कराने की दिशा में सब लोगों को लगना पड़ेगा। जो जिस काम में माहिर हो वह उस क्षेत्र में हिन्दी और भारतीय भाषाओं के लिये कुछ करे।
आप ने इस कोश के बारे में पाठकों को सूचित करके हिन्दी और हिन्दीजगत के लिये एक बहुत बडा काम किया है.
पिछले 2 साल से मैं दो खंडों के इस कोश का उपयोग करता आया हूँ, एवं यह हिन्दी शब्दभंडार को खंगालने के लिये मेरा सबसे सशक्त औजार बन चुका है.
हां आपकी हिन्दीसेवा भी पिछले कुछ महीनों से देखता आ रहा हूँ. हिन्दी पर आपकी पकड जबर्दस्त है एवं मलयालीपन बिल्कुल नहीं है.
यदि आप जैसे सौ हिन्दीसेवी यदि चिट्ठाजगत में उतर जायें तो सन 2020 तक हिन्दी का विकास आसमान को छूने लगेगा.
लगे रहिये, फल होगा. टिप्पणी करने का समय नहीं मिल पाता, लेकिन आपके अधिकतर लेख पढता रहता हूँ
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
थेसौरस को हम पर्यायवाची कोश क्यों नहीं कह सकते ?
अरविंद जी का ही सहज समांतर कोष राजकमल ने प्रकाशित किया है, जिसका निरन्तर उपयोग किया करता हूँ मैं । अरविंद जी के इस कार्य की प्रशंसा जितनी भी करें न्यून ही होगी । आभार ।
अरविंद जी को हमारी तरफ से धन्यवाद | सारा हिंदी जगत अरविंद का आभारी रहेगा |
बालसुब्रमण्यम जी आपका हिंदी के प्रति लगाव काबिले तारीफ़ है | हजारों हिंदी ब्लोग्गेर्स हैं पर आपके जैसा हिंदी प्रेम बहुत कम लोगों के पास है |
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