Friday, December 19, 2008

क्यों हुआ मुंबई

अब यह लगभग स्पष्ट हो चुका है कि मुंबई हमलों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। सवाल यह है कि यह हमला क्यों कराया गया और इसके जवाब में भारत क्या करे।

भारत ने पाकिस्तान से 20 आतंकियों को सौंपने की मांग की है, जिसे पाकिस्तान ने ठुकरा दिया है। पहले के अवसरों की तरह इस बार भी पाकिस्तान की दलीलें बहुत कुछ वे ही हैं - इस हमले का पाकिस्तान से कोई ताल्लुक नहीं है; ये आतंकवादी पाकिस्तानी नागरीक हैं ही नहीं, बल्कि ये मुंबई के ही निवासी हैं, क्योंकि इन्हें मुंबई की अच्छी जानकारी थी; और, यदि फिर भी भारत को यकीन न हो, तो वह अपने पास मौजूद सारे सबूत पाकिस्तान को दे दे, पाकिस्तान उनके आधार पर अपनी अदालतों में मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई करेगा। यह आखिरी दलील अमरीकी दबाव के फलस्वरूप किया गया है। अमरीका ने चेतावनी दी है कि यदि पाकिस्तान आतंकियों पर कार्रवाई नहीं करेगा, तो अमरीका को यह कार्रवाई करनी पड़ेगी।

पाकिस्तान ने इस बार उपर्युक्त दलीलों के अलावा एक नई दलील भी पेश की है, जो काफी रोचक है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी ने कहा है कि मुंबई हमले अराज्यीय कर्ताओं (नोन-स्टेट एक्टरों) की करतूत है, और पाकिस्तानी सरकार का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। यदि इस दलील को माना भी जाए, तो यह बात निर्विवाद है कि इन अराज्यीय कर्ताओं को पाकिस्तान में खूब शह मिलता है, उन्हें वहां पाला-पोसा जाता है, हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, उनका मानसिक प्रक्षालन (ब्रेनवाश) करके उन्हें जेहादी बनाया जाता है, और पैसे और बमों से लैस करके भारत में उतारा जाता है। यह सब काम पाकिस्तान के अंदर से और पाकिस्तान की संस्थाओं द्वारा -- आईएसआई और पाकिस्तानी सेना द्वारा -- किया जाता है। भारत को पाकिस्तान में मौजूद ऐसे दर्जनों प्रशिक्षण शिविरों की जानकारी है। ऐसे में जरदारी का यह दलील कि पाकिस्तान का इस हमले से कोई लेना-देना नहीं है, खोखला है।

फिर भी जरदारी का वक्तव्य पाकिस्तान की असली स्थिति पर प्रकाश जरूर डालता है। आज के पाकिस्तान में पांच मुख्य शक्ति केंद्र हैं – जरदारी की सरकार, पाकिस्तानी सेना, आईएसआई, तालिबान का पाकिस्तानी रूप, और देश के पश्चिमी भागों के कबीलाई गुट, जो लगभग स्वतंत्र से हो गए हैं और जिन पर पाकिस्तानी सरकार या सेना का कोई नियंत्रण नहीं है। संभव है आनेवाले दिनों में यहां एक नए राष्ट्र बलूचिस्तान का जन्म हो जाए, या यह भी हो सकता है कि अफगानिस्तान से खदेड़ा गया तालिबान यहां अपने लिए नया राष्ट्र बना ले जिसमें अफगानिस्तान और पाकिस्तान के वे हिस्से शामिल होंगे जिन पर उसका नियंत्रण है। इस तरह दिक्षण और उत्तर कोरिया, दक्षिण और उत्तर वियतनाम आदि की तरह अफगानिस्तान के भी दो भाग हो जाएंगे, एक भाग दक्षिण कोरिया की तरह अमरीकी सैनिक शक्ति के कारण टिका रहेगा, और दूसरा भाग तालिबान और अलकायदा के नियंत्रण में रहेगा।

इन पांच शक्ति केंद्रों के अलावा पाकिस्तान में एक छठा शक्ति केंद्र अमरीकी सेना भी है जो पाकिस्तान में ओसामाबिन लादन को पकड़ने और अल कायदा को नेस्तनाबूद करने के लिए डटी हुई है। लेकिन मजे की बात यह है कि इन छह शक्ति केंद्रों में से किसी की भी सत्ता पाकिस्तान भर में नहीं चलती है।

जब हम मुंबई हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप मांग करते हैं कि पाकिस्तान यह करे, वह करे, तो हमारे लिए यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह मांग हम किससे कर रहे हैं? और हमें यह भी विचारना चाहिए कि जिससे हम यह मांग कर रहे हैं, क्या वह इस स्थिति में है भी कि वह उसे पूरा कर सके। स्पष्ट ही जब हमने पाकिस्तान से 20 आतंकवादियों को सौंपने को कहा, तब हमारे मन में यही विचार था कि यह काम पाकिस्तान की सरकार को करना है। पर असलियत यह है कि जरदारी की सरकार पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के हाथों की मात्र कठपुतली है। उसे वही करना होता है, जो उसके ये आका उससे करवाते हैं। इसके अनेक सबूत अब उपलब्ध हैं। जब मुंबई में हमला हुआ था, शुरू-शुरू में जरदारी का रवैया काफी सहानुभूतिपूर्ण रहा। जब भारत ने मांग की कि इस हमले की तहकीकात में सहयोग देने के लिए वे आईएसआई के सरगना को भारत भेजें, तो जरदारी तुरंत राजी हो गए। लेकिन दो दिन बाद ही वे मुकर गए क्योंकि उनके आका आईएसआई ने उन्हें इसके लिए फटकार बताई।

इससे पहले भी जरदारी अनेक ऐसे बयान दे चुके हैं जिनसे उन्हें कुछ ही पल बाद मुकर जाना पड़ा था क्योंकि पाकिस्तानी सेना या आईएसआई ने इन बयानों के लिए उन्हें आड़े हाथों लिया। इन बयानों में ये भी शामिल हैं -- कश्मीर के आतंकवादी फ्रीडम-फाइटर नहीं हैं; और, पाकिस्तान अपने परमाणु अस्त्रों का प्रथम प्रयोग नहीं करेगा। इससे जाहिर होता है कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पर पाकिस्तानी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, बल्कि इसकी ही अधिक संभावना है कि पाकिस्तानी सरकार की लगाम पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के हाथों में है।

तो भारत के पास क्या विकल्प हैं? क्या वह होट-पर्स्यूट की नीति अपनाकर सीमा पार के आतंकी शिविरों पर फौजी हमले करे, या हवाई हमले करके इन्हें नष्ट करे? मुंबई नरसंहार के गुस्से में हमें यह एक वाजिब कार्रवाई प्रतीत हो सकती है, पर गहराई से सोचने पर यह देश के दुश्मनों के हाथों में खेल जाना होगा।

भारत के दुश्मनों ने मुंबई नरसंहार करवाया ही इसलिए था कि भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ जाए। अमरीका पाकिस्तान पर निरंतर जोर डाल रहा है कि वह तालिबानों और अल कायदा पर ईमानदारी से सैनिक कार्रवाई करे। यह तालिबान पाकिस्तानी सेना का ही मानस पुत्र है और इसलिए उस पर वार करना उसे अपने ही पुत्रों को मारने जैसा प्रतीत होता है। दूसरे तालिबानी मुसलमान हैं और दो-राष्ट्र की नीति पर गठित किए गए पाकिस्तान के लिए अपने ही धर्म भाइयों पर गोली चलाना एक घिनौना कार्य है। अब तक झूठ-फरेब का सहारा लेकर पाकिस्तानी सेना अमरीकी आंखों में धूल झोंकती रही है, पर अब अमरीका का भी मूड बदल रहा है। वहां नया राषट्रपति बराक ओबामा आ गया है जिसने पाकिस्तान पर कड़ा रुख अपनाने की बात कही है। दूसरी ओर अमरीका ईराक से हाथ खींचने का मन बना चुका है और अफगानिस्तान पर अपनी पूरी ताकत लगाने वाला है।

ऐसे में तालिबान और अल कायदा पर ठोस कार्रवाई न करने के लिए पाकिस्तानी सेना के पास अब कोई बहाना नहीं बचा है। इसी परिप्रेक्ष्य में उसने मुंबई पर हमला करवाया है। वह चाहता है कि इस हमले से भारत इतना तिलमिला उठे कि दोनों देशों में युद्ध की स्थिति बन जाए, जिसका बहाना बनाकर पाकिस्तानी सेना अपने फौजियों को पश्चिमी सरहदों से हटाकर पूर्वी सरहदों में ले आ सके, और इस तरह तालिबानों से भिड़ने से बच सके। पाकिस्तान को शायद विश्वास है कि उसके परमाणु अस्त्रों के कारण भारत के साथ कोई असली युद्ध नहीं होगा, या अमरीका आदि देश युद्ध होने नहीं देंगे।

पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने यह भी हिसाब लगाया होगा कि यदि पाकिस्तान की सरकार इस नीति का विरोध करे, तो उसे हटाकर दुबारा किसी जनरल को राष्ट्रपति बना दिया जा सकेगा। चूंकि पाकिस्तानी लोगों को बरसों से भारत-विरोधी प्रचार से बहकाया गया है, वे भी इस सरकार के टूटने का ज्यादा विरोध नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें समझाया जा सकेगा कि यह सरकार भारत के प्रति नरम रुख अपना रही है जो पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए घातक है और इसलिए उसे हटाना जरूरी है। लेकिन यहां पाकिस्तानी सेना का हिसाब गलत भी हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की जनता बरसों की सैनिक तानाशाही से त्रस्त हो चुकी है और लोकतांत्रिक सरकार के फायदे समझने लगी है।

इन्हीं दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पाकिस्तानी सेना ने मुंबई नरसंहार रचाया। पर पाकिस्तानी सेना यहां बहुत ही खतरनाक और आत्मघाती खेल खेल रही है। वह तालिबान और अल कायदा की शक्ति को कम आंक रही है। यह सही है कि तालिबान उसका मानस-पुत्र है पर यह राक्षसी पुत्र अब बड़ा हो गया है और अपने पिता के नियंत्रण के बाहर हो चुका है। वह अपने ही पिता को मारकर अपने हितों की रक्षा करने से भी बाज नहीं आएगा। आज तालिबान पर अमरीकी दबाव दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। अमरीकी दबाव में आकर पाकिस्तानी सेना भी तालिबान पर कार्रवाई करने को मजबूर है। ऐसे में तालिबानों की शत्रुओं की सूची में पाकिस्तानी सेना भी आ गई है। यही वजह है कि अभी हाल के दिनों में पाकिस्तान में आतंकी हमलों की बाढ़ सी आ गई है।

अफगानिस्तान से खदेड़े जाने के बाद अब तालिबान के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि उसके पास कोई सुरक्षित जमीन हो जहां वह अपने आपको संगठित कर सके, और जिसे वह अमरीकी और पाकिस्तानी हमलों से सुरक्षित रख सके और जहां से वह अपने क्षेत्र का शासन कर सके, लोगों से कर वसूल सके, अफीम आदि की खेती करके नशीले द्रव्य बनाकर उनकी तस्करी कर सके, और इससे आनेवाले पैसे से हथियार खरीद सके, तथा अपने नेताओं को सुरक्षित रख सके।

इसलिए तालिबान धीरे-धीरे अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सरहदों के आसपास के इलाकों पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है। अभी तालिबान और पाकिस्तानी सेना के पलड़े बराबर हैं, लेकिन यदि पाकिस्तानी सेना अपनी सैनिकों को हटाकर भारत की सरहद पर ले आए, तो तालिबान का पलड़ा भारी हो जाएगा और वह पूरे पाकिस्तान नहीं तो उसके उत्तर-पश्चिमी इलाकों में हावी हो जाएगा और ये इलाके पाकिस्तान के हाथ से सदा के लिए निकल जाएंगे। यानी पाकिस्तान का दूसरी बार बंटवारा हो जाएगा।

बात इतने तक भी सीमित नहीं रहेगी। तालिबान के लिए अमरीकी दबाव से मुक्ति पाने का एक ही मार्ग बचा है, वह है पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कब्जा करना। जैसे ही पाकिस्तानी सेना मोर्चे से हट जाएगी, तालिबान आगे बढ़कर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कब्जा कर लेगी। तब अमरीका को भी अफगानिस्तान छोड़कर भागना पड़ेगा।
एक बार परमाणु हथियार तालिबानों के हाथ आ जाए, तो यह समझा जा सकता है कि ये हथियार अल कायदा को मिल चुके हैं, क्योंकि दोनों में गहरी सांठ-गांठ है। तब फिर इस दुनिया का क्या होगा इसकी कल्पना करके भी दिल दहल उठता है, क्योंकि तब आतंकी आरडीएक्स के स्थान पर परमाणु हथियार इस्तेमाल करते हुए नजर आएंगे। यदि तालिबान या अलकायदा अमरीका, भारत, ब्रिटेन या इजराइल पर परमाणु अस्त्रों से हमला कर दे, अथवा ये ही देश तालिबान पर परमाणु अस्त्रों से एहतियाती हमला कर दे, तो दुनिया तीसरे महायुद्ध की कगार पर पहुंच जाएगी, और पाकिस्तान की जमीन पर यह युद्ध लड़ा जाएगा। कहना न होगा कि इस युद्ध में परमाणु हथियारों का खुलकर उपयोग होगा।

इसलिए पाकिस्तानी सेना को और वहां के लोगों को समझना चाहिए कि तालिबान, अल कायदा और आतंकवादियों पर विजय पाना उनके भी हित में है। पर पाकिस्तानी सेना कभी भी अपनी समझदारी के लिए नहीं जानी गई है। किसी ने सही ही कहा है कि यह एक ऐसी सेना है जिसने कोई भी युद्ध नहीं जीता है, हालांकि उस पर अरबों डालर हर साल खर्च किए जाते हैं।
ऐसे में भारत को अच्छी तरह समझना होगा कि उसके असली दुश्मन कौन हैं और उनसे कैसे निपटा जाए। गलत कदम से मामला नियंत्रण के बाहर हो जाएगा और भारत को भी लेने के देने पड़ जाएंगे।

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