Wednesday, December 17, 2008

कसाब का पकड़ा जाना पहले से तय हो सकता है

मुंबई आतंकी हमले को लेकर अनेक प्रश्न अब उठने लगे हैं। यह बारीकी से सोची गई साजिश लगती है जिसके बहुत ही स्पष्ट उद्देश्य थे। सब कुछ अमरीका में बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने से शुरू होता प्रतीत होता है। ओबामा ने चुनाव प्रचार के दौरान ही स्पष्ट कर दिया था कि वे अफगानिस्तान के मसले को सुलटाने को प्राथमिकता देंगे और यदि जरूरी हुआ तो पाकिस्तान की जमीन पर अमरीकी सैनिकों को उतारेंगे। उनका यह भी संकेत था कि ईराक के युद्ध को समेटकर वहां से अमरीकी सेना वापस बुला ली जाएगी ताकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान की ओर अमरीका पूरा ध्यान दे सके।

उधर पाकिस्तान में जरदारी की सरकार सत्ता में आई और उसने भारत के साथ संबंधों को सुधारने को प्राथमिकता देना शुरू किया। इसके अलावा यह सरकार पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश भी करने लगी।
उपर्युक्त दोनों ही घटनाओं से पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और पाकिस्तान में जमा तालिबान पर संकट गहराने लगा और उनके लिए यह आवश्यक हो गया कि वे कुछ ऐसा करें, जिससे उनके ऊपर से दबाव हटे।

मुंबई पर हमला इसी परिप्रेक्ष्य में किया गया। निशाने पर थीं, पाकिस्तान, अमरीका और उसके समर्थक देशों (जैसे इजराइल, ब्रिटन, आदि) की सरकारें। भारत निशाने पर उतना नहीं था जितनी ये सरकारें। हमले का मुख्य उद्देश्य था भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध कराना, जिससे पाकिस्तानी सेना को तालिबान पर कार्रवाई से बचने का बहाना मिले, क्योंकि वह तब यह कह सकेगी कि भारत की फौज का मुकाबला करना पाकिस्तान के लिए ज्यादा जरूरी है। भारत के साथ युद्ध का बहाना करके पाकिस्तानी सेना और आईएसआई जरदारी सरकार को भी हटा सकेगी और उसके स्थान पर किसी जनरल को राष्ट्रपति बना सकेगी, यह कहते हुए कि युद्ध के समय देश का संचालन सेना के हाथ में रहना चाहिए। इस तरह एक ओर तालिबान को राहत मिल जाती, अपनी शक्ति को संगठित करने के लिए, ताकि निकट भविष्य में होनेवाले अमरीकी हमले का वह बेहतर तरीके से सामना कर सके। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना जरदारी सरकार से मुक्ति पा जाती और पाकिस्तान में पुनः सैनिक शासन स्थापित कर पाती।

इस रणनीति का एक तीसरा पहलू भी है जो पाकिस्तान के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। जैसे ही पाकिस्तानी सेना भारत के साथ युद्ध में उलझ जाती, तालिबान आगे बढ़कर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को हड़प लेता, और इस तरह अमरीका के लिए भी उस पर युद्ध करना असंभव बना देता। परमाणु बम हाथ में आते ही तालिबान एक तरह से अजेय हो जाएगा और पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उसके कब्जे वाले इलाके में वह अपने लिए एक नया राज्य कायम करने में सफल हो जाएगा। इसका सीधा अर्थ होगा, पाकिस्तान का एक बार फिर बंटना।

लेकिन इस रणनीति की सफलता इस पर निर्भर थी कि मुंबई हमले को असंदिग्ध रूप से पाकिस्तान के साथ जोड़ा जा सके। इसे सुनिश्चित करने के लिए हमलावरों ने जानबूझकर ऐसे कई संकेत छोड़े जो पाकिस्तान की ओर इशारा करें, और उनके एक साथी, अजमल अमीर कसाब, को भी जिंदा पकड़वा दिया। मेरे विचार से, यह भी उनकी योजना का एक महत्वपूर्ण भाग था।
कई तथ्य इस ओर इशारा करते हैं। आतंकवादियों ने विदेशियों को, खास करके अमरीकी, इजराइली और ब्रिटन के नागरिकों को, मारने की ओर विशेष ध्यान दिया। नरीमन हाउस में तो केवल इजराइली नागरिक ही बंधक थे, और आतंकियों ने एक बच्चे को छोड़कर, बाकी सभी बंधकों का कत्ल कर दिया। वे चाहते थे कि इस आतंकी हमले को भारत में ही नहीं, बल्कि सारे विश्व में और खास करके अमरीका में, पब्लिसिटी मिले। हमले के लिए उन्होंने जो समय चुना, वह भी इसी ओर संकेत करता है। मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन के बारे में जो भी थोड़ा बहुत जानता है, उसे पता होगा कि शाम 5 से 7 बजे के बीच वहां सर्वाधिक भीड़ होती है, जब दफ्तरें छूटती हैं और लोग घर लौटने के लिए स्टेशन पर उमड़ पड़ते हैं। तब छत्रपति शिवाजी स्टेशन में तिल रखने की जगह नहीं होती, और यदि आतंकी उस समय हमला करते तो हजारों की संख्या में लोगों को आसानी से मार सकते थे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और रात 10 बजे का समय चुना, जब तक काफी भीड़ छंट जाती है। यह उनकी मेहरबानी नहीं थी, बल्कि उनका उद्देश्य ही यह था कि हमला ऐसे वक्त हो जब अमरीका में अधिकाधिक लोग टीवी देख रहे हों, ताकि इसकी खबर उन तक तुरंत पहुंचे। भारत में जब शाम के 5 बजे होते हैं, अमरीका में सुबह के 3 बजे होते हैं और वहां सभी लोग गहरी नींद में सो रहे होते हैं, और कोई भी टीवी नहीं देख रहा होता है। इसके विपरीत जब भारत में रात के 10 बजे हों, अमरीका में सुबह के 8 बजे होते हैं, और अधिकांश लोग ब्रेकफास्ट के साथ टीवी के सामने बैठे होते हैं।

आतंकियों ने विदेशियों को इसलिए भारी संख्या में मारा, और वह भी अमरीका, इजराइल और ब्रिटन के, क्योंकि वे इन देशों को अपना प्रमुख शत्रु मानते थे, और साथ ही उन्हें यह भी पता था कि केवल भारतीयों को मारने से उनके हमले को उतनी अंतर्राष्ट्रीय पब्लिसिटी नहीं मिलेगी जितनी अमरीकी या ब्रिटन के नागरिकों को मारने से।

उनकी योजना को सफल बनाने के लिए यह भी अत्यंत जरूरी था कि इस हमले के सूत्र पाकिस्तान से जुड़ें, अन्यथा भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति पैदा न होती। इसलिए उन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत खूब सुराग छोड़े जिनसे तुरंत और असंदिग्ध रूप से पाकिस्तान के साथ इस हमले के तार जुड़ें। आइए देखते हैं ये सुराग क्या थे।

मुख्य सुराग ये थे - मछुआरों का जहाज कुबेर का, जिसमें ये आतंकी भारत आए थे, भारत के समुद्रों में आवारा स्थिति में मिलना; उसमें जीपीएस से लैस सैटालाइट फोन का मिलना जिससे कराची को तीन-चार फोन किए गए थे; आतंकियों के पास मोबाइल फोन होना; और सबसे महत्वपूर्ण, एक आतंकी का जिंदा पकड़ा जाना, ताकि वह असंदिग्ध रूप से यह बता सके कि आतंकी पाकिस्तान से ही आए हैं। ये सभी बातें अनेक सवाल खड़ी करती हैं।

यह योजना इतनी बारीकी से बनाई गई थी कि यदि इसके कर्ता-धर्ता चाहते, तो बड़ी आसानी से ऊपर बताए गए हर सुराग को सफाई से मिटा सकते थे। आतंकियों को मुंबई के तटों पर उतारने के बाद कुबेर जहाज को पाकिस्तानी समुद्री क्षेत्र में ले जाना क्या इनके लिए मुश्किल था? कुबेर के कप्तान की लाश को जहाज में पड़े रहने देने के बजाए उसे तथा उस जहाज में मिले सेटलाइट फोन को समुद्र में फेंक कर सभी सुरागों को मिटाने में उन्हें कितनी देर लग सकती थी? लेकिन ऐसा नहीं किया गया। वे चाहते थे कि कुबेर जहाज भारतीय अधिकारियों को मिले, और उसमें उसके भारतीय कप्तान की लाश भी, और वह सेटलाइट फोन भी, जिससे पाकिस्तान को कई फोन किए गए थे। अन्यथा हमलावरों का पाकिस्तानी स्वरूप कैसे स्पष्ट होता?
मुझे तो यह भी लगता है कि कसाब का जिंदा पकड़ा जाना भी साजिश का ही एक अंग है, क्योंकि पाकिस्तान में बैठे असली षडयंत्रकारियों की जानकारी देने के लिए कम से कम एक आतंकी का जिंदा पकड़ा जाना आवश्यक था। वरना, भारतीय अधिकारियों के लिए इस हमले का संबंध पाकिस्तान से जोड़ना मुश्किल होता, या उन्हें इसमें काफी समय लग जाता, जिससे हमले का मूल उद्देश्य पूरा न हो पाता। हमलावर चाहते थे कि तुरंत ही यह स्पष्ट हो जाए कि हमला पाकिस्तान की ओर से हुआ है, और भारत जल्दबाजी में और तुरंत ही पाकिस्तान पर युद्ध छेड़ दे। और यह युद्ध जनवरी से पहले हो, जब बराक ओबामा अमरीकी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेंगे और अनुमानतः अगले ही कुछ महीनों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सैनिक कार्रवाई तेज करेंगे। लेकिन यदि इससे पहले भारत और पाक में युद्ध छिड़ जाए, तो ओबामा की सारी योजनाएं ठप हो जाएंगी। पाकिस्तान में छिपे तालिबान की यह भी योजना रही हो सकती है कि भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना को उल्झाकर वह पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कब्जा कर ले, क्योंकि यदि वह ऐसा कर सके, अमरीका तक को वह अंगूठा दिख सकगा, क्योंकि तब अमरीका उस पर हमला करने का जोखिम नहीं उठा सकेगा। यदि ऐसा हुआ, तो पाकिस्तान का दुबारा बंटना भी निश्चित हो जाता और उसके पश्चिमी भागों में तालिबान का स्थायी राज्य कायम हो जाता।

कसाब जिन हालातों में पकड़ा गया, वे भी इस बात को पुष्ट ही करती हैं कि उसका जिंदा पकड़ा जाना पहले से तय था। कसाब एक स्कोड़ा कार में से पकड़ा गया था। उस कार में उसका एक साथी आतंकी भी था, जो गाड़ी चला रहा था। इन दोनों के पास भी उतने ही घातक हथियार थे, जितने ताज और ओबरोय में घुसे आतंकियों के पास थे और जिनकी मदद से वे 60 घंटे तक समस्त भारतीय सेना को रोके रख सके थे। तो क्या ये दोनों भी इन्हें पकड़ने आए सात-आठ लाठी-धारी पुलिस कर्मियों को मिनटों में भूनकर बच न निकल सकते थे? बिलकुल निकल सकते थे, पर लगता है यों निकलना उनकी रणनीति में था नहीं। कसाब कार की पिछली सीट में लेटे हुए लगभग निर्विरोध पकड़ा गया। इन आतंकियों को मिले उच्च स्तरीय सैनिक प्रशिक्षण को देखते हुए, यदि कसाब चाहता तो आसानी से बच निकल सकता था।

मुझे लगता है कि असली योजना में ही यह बात थी कि छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन में हमला करनेवाले दोनों आतंकी जिंदा पकड़े जाएं, ताकि वे भारतीय अधिकारियों को बता सकें कि हमला पाकिस्तान की ओर से हुआ है। अंततः केवल एक जिंदा पकड़ा गया, दूसरा मारा गया, पर इससे असली योजना को कोई खास फर्क नहीं पड़ा।

एक छोटी सी अन्य घटना भी इस सिद्धांत को पुष्ट करती है कि मुंबई हमले का असली मकसद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध कराना था। जब मुंबई हमलों के कई दिनों के बाद भी भारत ने पाकिस्तान पर युद्ध छेड़ने के कोई संकेत नहीं दिए, तो षडयंत्रकारियों ने अपनी अंतिम चाल चली। यह था पाकिस्तानी राष्ट्रपति जरदारी को भारतीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की ओर से जाली फोन करवाना और कथित रूप से जरदारी को धमकाना। षडयंत्रकारी हताश हो रहे थे कि उनकी सोची-समझी साजिश अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर रही है, यानी भारत और पाक में युद्ध नहीं हो रहा है, तब उन्होंने यह हथकंडा अपनाया। उनकी सोच यही रही होगी कि भारत पाक पर हमला न करे, तो न सही, हम पाक से भारत पर हमला तो करा ही पाएंगे।
लेकिन यहां भी उनका वार खाली गया और भारत ने जाली फोन के संबंध में किसी भी प्रकार की असंदिग्धता नहीं रहने देकर पाक के लिए युद्ध के सारे रास्ते बंद कर दिए। यह अच्छा ही हुआ, वरना दोनों देशों को एक सर्वनाशी युद्ध का सामना करना पड़ता जिससे दोनों ही देशों के दुश्मनों को ही फायदा पहुंचता।

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