एक तरह से यह अच्छा ही हुआ कि राज ठाकरे ने पिछले कुछ महीनों में मुंबई में हिंदी भाषियों पर हमले करके देश में अपनी साख लगभग मिटा ली, और सभी प्रबुद्ध वर्गों द्वारा - देश भर के, महाराष्ट्र के और मुंबई के भी - नकार दिए गए। वरना, वे इन आतंकी घटनाओं को लेकर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने बाहर निकल आते और शायद 1992 के मुंबई दंगों के जैसी कुछ परिस्थितियां खड़ी करके सारे मामले को सांप्रदायिक स्वरूप दे डालते।
बिहार रेजिमेंट के संदीप उण्णिकृष्णन और हिंदी भाषी कमांडो गजेंद्र सिंह की शहादत ने और लाठी और आदम के जमाने की एक बंदूक के सहारे छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन में बहादुरी से आतंकियों का सामने करनेवाले हिंदी भाषी पुलिस कर्मियों ने राज ठाकरे के नफरत और क्षेत्रवाद के एजेंडे को आगे नहीं बढ़ने दिया।
टीवी पर सारे घटनाक्रम को देखते समय मन ही मन राज ठाकरे इन शहीदों और वीरों को जरूर कोसते रहे होंगे कि ये हिंदी भाषी कहां से आ टपके इन कमांडो दस्तों में और पुलिस बल में। काश सारे कमांडो मराठी भाषी होते! यह भी संभव है कि इनके संकीर्ण मन में यह ख्याल भी उठा हो कि आगे यह राजनीतिक मांग भी की जाए कि भविष्य में मुंबई पर होनेवाले आतंकी हमलों से निपटने के लिए केवल मराठी कमांडो ही भेजे जाएं, ताकि उनकी शहादत से राज ठाकरे को मराठों की बहादुरी और वीरता की डींगें हांकने और अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने का अवसर मिल सके।
एक बात जरूर सामने आई इस सारे घटनाचक्र से। राज ठाकरे और उनके पार्टी कारिंदे दिल से बड़े कायर हैं। उनकी बहादुरी और जांबाजी निहत्थे और निर्दोष हिंदी भाषी टैक्सी चालकों, खोमचेवालों और नौकरी की उम्मीद में परीक्षा देने मुंबई आए मासूम हिंदी भाषी किशोर-किशोरियों को पीटने तक सीमित है। जब आतंकवादी खुलेआम मुंबई में कहर बरपा रहे थे, तब कहां थे राज ठाकरे और उनके दिलेर गुंडे? जब ये आतंकी महीनों से ताज और ओबरोय होटलों पर हमले की साजिश रच रहे थे और दर्जनों बार मुंबई आकर स्थिति का मुआयना कर रहे थे, तब कहां थे ये महाराष्ट्र के लाल? मुंबई के हिंदी भाषियों पर सीनाजोरी करने के स्थान पर यदि राज ठाकरे अपने गुंडों को मुंबई के अंडरवर्ल्ड और अपराधी तत्वों पर नजर रखने का काम देते, तो इसे सच्ची देशभक्ति कहा जाता।
मुझे डर है कि राज ठाकरे द्वारा उकसाए गए आंदोलन के कारण मुंबई और महाराष्ट्र के कई भागों में पिछले कुछ महीनों में जो अशांति और अराजकता फैली थी, और जिस पर नियंत्रण पाने में महाराष्ट्र के पुलिस विभाग का सारा समय लग गया था, उसका दहशतगर्दों ने मुंबई में गोली-बारूद लाने, नरीमन हाउस में मकान किराए पर लेने, ताज और ओबराय में अपने साथियों को कर्मचारी और इंटर्न के रूप में रखवाने के लिए जरूर फायदा उठाया होगा। चूंकि महाराष्ट्र पुलिस का ध्यान राज ठाकरे और उनके गुंडों की करतूतों के कारण बंटा हुआ था, संभव है कि पुलिस से इन आतंकी गतिविधियों की अनदेखी हो गई हो। इस नजरिए से देखें, तो राज ठाकरे और उनके गुंडे भी मुंबई दहशत कांड के लिए जिम्मेदार हैं और देश और मुंबई वासियों को उनसे जवाब तलब करना चाहिए।
Monday, December 15, 2008
राज ठाकरे भी जिम्मेदार हैं मुंबई कांड के लिए
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: आतंकवाद, पाकिस्तान, मुंबई हमला, राज ठाकरे
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