Wednesday, April 29, 2009

घोटाला काल

(बोफोर्स का मामला एक बार फिर सुर्खियों पर आ गया है। इससे इसी विषय पर मेरे एक पुराने व्यंग्य लेख को झाड़-पोंछकर बाहर निकालने और जयहिंदी में देने का मुझे मौका मिल गया है। इसे मैंने लगभग दस साल पहले नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व के समय लिखा था। आशा है आपको पसंद आएगा।)

मैंने देखा है कि जबसे दसवीं कक्षा के भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम में घोटाला काल नामक एक नया उपविभाग जोड़ा गया है, तब से मेरे छात्रों में इस नीरस एवं उबाऊ विषय में एक नई रुचि जागी है और वे पहली बार पूरा ध्यान लगाकर मेरे व्याख्यानों को सुनते हैं। इतना ही नहीं बहुत ही सूझ-बूझपूर्ण प्रश्न पूछकर इसका भी परिचय देते हैं कि विषय की बारीकियां उन्हें पूरी तरह समझ आ रही हैं।

जब मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो छात्रों ने खड़े होकर "गुडमार्निंग सर" कहकर मेरा अभिवादन किया।

उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए मैंने कहा, "गुड मार्निंग बच्चो, सब लोग अपनी-अपनी जगह बैठ जाओ। आज हम भारतीय इतिहास के स्वातंत्र्योत्तर काल के उस महत्वपूर्ण उपकाल का अध्ययन करने जा रहे हैं जिसे इतिहास में घोटाला काल कहा जाता है।" फिर उनके ध्यान को अध्ययन के विषय पर केंद्रित करने के लिए मैंने खड़िए से श्यामपट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा, "घोटाला काल"।

सभी बच्चे बड़े मनोयोग से मेरी बातें सुन रहे थे। थड़िए को मेज पर रखकर मैं उनकी ओर मुड़ा और मेज की टेक लेकर खड़ा होकर कहने लगा, "इतिहास को भिन्न-भिन्न कालों में बांटकर अध्ययन करने की परिपाटी पुरानी है। यदि हजारों सालों की मानव कहानी समझनी हो तो उसे छोटे-छोटे कालखंडों में बांटकर ही समझा जा सकता है। इन कालखंडों में कुछ खास प्रवृत्तियां रहती हैं जो उस काल की घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इस तरह मौर्य काल, गुप्त काल, मुगल काल, ब्रिटिश काल आदि कालखंड हैं। स्वतंत्रता के बाद के काल का अब तक स्वातंत्र्योत्तर काल नाम देकर अध्ययन होता रहा है। पर अब यह माना जाने लगा है कि इस काल में अनेक उप-काल हुए हैं जिनमें कुछ खास-खास प्रवृत्तियां हावी रही हैं। इसे ध्यान में रखकर भारतीय इतिहास के इस कालखंड को कुछ उपकालों में बांटा गया है। इन उपकालों में घोटाला काल एक प्रमुख उपकाल है। सुभीते के लिए घोटाला काल का आरंभ भारत के सातवें प्रधान मंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के आरंभ के वर्ष यानी 1985 से माना जाता है, परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि इस युग की मुख्य प्रवृत्ति, यानी देश के सभी सर्वोच्च नेताओं के घोटालों से आबद्ध होना, इसी वर्ष से शुरू हुई थी और इससे पहले यह प्रवृत्ति नहीं थी या आम नहीं थी। इतिहास की कोई भी प्रवृत्ति अचानक किसी वर्ष प्रकट नहीं होती। तारीखें तो इतिहासकार इन प्रवृत्तियों के अध्ययन को सरल बनाने के लिए किसी न किसी आधार पर दे देते हैं। क्या आपमें से कोई बता सकता है कि इस उपकाल का आरंभ इस वर्ष से क्यों माना जाता है?" मैंने छात्रों से पूछा।

"इसी वर्ष कोई बड़ा घोटाला हुआ होगा।" सुनीता ने अटकल लगाई।

"नहीं, कारण यह नहीं है," मैंने कहा, "परंतु तुम्हारी अटकल गलत भी नहीं है। दरअसल इस उपकाल का पहला घोटाला, जिसे बोफोर्स घोटाला कहते हैं, राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम वर्षों में सामने आया। यद्यपि इससे पहले भी घोटाले हुए हैं, परंतु बोफर्स ऐसा पहला घोटाला था जिसमें देश के सर्वोच्च राजनीतिक अधिकारी, यानी प्रधान मंत्री, स्वयं उलझे हुए थे। चूंकि यह घोटाला राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और चूंकि वे, उनके परिवार के कुछ अन्य जन और उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री इससे संलग्न थे, इसलिए इस उपकाल का आरंभ उनके कार्यकाल के प्रारंभिक वर्ष से मानते हैं।"

इस काल के नामकरण को लेकर सुधीर को शंका हुई। उसने पूछा, "सर इससे पहले के कालखंडों का किसी वंश के नाम पर नामकरण हुआ है, जैसे मुगल काल, मौर्य काल, ब्रिटिश काल आदि। इसी आधार पर इस कालखंड का नामकरण राजीव काल क्यों नहीं हुआ?"

मैंने कहा, "तुमने अच्छा सवाल किया है सुधीर। इसका कारण यह है कि इस काल की मुख्य प्रवृत्ति घोटाले रहे हैं, न कि कोई वंश या व्यक्ति द्वारा संचालित क्रियाकलाप। लगभग सभी मुख्य-मुख्य राजनीतिक किसी-न-किसी घोटाले में संलग्न रहे। इनमें से प्रत्येक अन्य सभी से बढ़कर घोटालाकार था। मसलन इस काल के सुख राम, नरसिंह राव, कल्पनाथ राय, हरशद मेहता, जैन बंधु आदि सब अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ घोटालेबाज थे। इनमें से किसी एक को इस काल के नियंता का गौरव प्रदान करना और उसके नाम पर पूरे काल का नामकरण करना अन्य घोटालेबाजों के साथ अन्याय होगा। इतिहास भेदभाव नहीं करता, तथ्यों का निष्पक्ष विश्लेषण मात्र करता है। इसलिए अगणित प्रतिभाशाली और दिलेर घोटालेबाजों में से किसी एक को वरीयता न देकर इस काल की मुख्य प्रवृत्ति, यानी घोटालों, के आधार पर इस काल का नामकरण उचित ही हुआ है।"

"सर इस युग का अंत कब हुआ?" प्रवीणा ने पूछा।

"यह एक टेढ़ा सवाल है," मैंने कहा। "इसको लेकर इतिहासकारों तक में काफी मतभेद है। पर आम राय यही है कि अभी हम घोटाला काल में ही जी रहे हैं और यह भारतीय इतिहास का नवीनतम काल है। इस काल का अंत भविष्य के गर्भ में छिपा है। वैसे यह भी सच है कि जिस प्रकार किसी काल की शुरुआत के वर्ष को पहचानना मुश्किल होता है, उसी प्रकार उस काल के अंत के वर्ष को पहचानना भी आसान नहीं होता। यदि कई सालों तक कोई मुख्य घोटाला सामने न आया और कोई अन्य प्रवृत्ति प्रबल हो उठी, तो हम कह सकते हैं कि घोटाला काल समाप्त हो गया और कोई दूसरे काल की नींव पड़ गई। परंतु पिछले कई वर्षों से घोटाले एक-के-बाद-एक सामने आते जा रहे हैं, इसलिए यह कहना उचित ही होगा कि घोटाला काल इस समय जवान एवं सक्रिय है।"

इस विषयांतर के बाद मैं अपनी मूल बात पर लौट आया, "जैसा कि मैंने शुरू में ही कह दिया था, यह तारीख सुभीते के लिए मान ली गई है। वैसे घोटाला प्रवृत्ति की जड़ें इससे कई वर्ष पहले ही पड़ चुकी थीं। राजीव की मां इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अंतुले ने कांग्रेस पार्टी के कोष के लिए सीमेंट उद्योग के मालिकों से भारी चंदा वसूल किया था। परंतु इस घोटाले और घोटाला काल के घोटालों में मुख्य फर्क यह है कि घोटाला काल के घोटालों में स्वयं देश के प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल थे। इस दृष्टि से सिमेंट घोटाला व अन्य इस तरह के घोटाले अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण थे। आज की कक्षा में हम इस उपकाल के कुछ मुख्य-मुख्य घोटालों के बारे में जानेंगे।"

मैंने कहा, "आगे बढ़ने से पहले मैं एक जरूरी बात तुम्हें बता दूं। घोटाला शब्द का समानार्थी एक अन्य शब्द भी है, "कांड"। कुछ पाठ्यपुस्तकों में घोटाला के स्थान पर कांड का प्रयोग तुम्हें मिलेगा। इससे किसी उलझन में नहीं पड़ना। कांड घोटाले को ही कहते हैं। परीक्षा में भी प्रश्न पत्र में इस शब्द को देखकर चौंकना नहीं।" और मैंने श्यामपट पर कांड शब्द भी लिख दिया।

"अब हम घोटाला काल के मुख्य-मुख्य घोटालों का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करते हैं। सबसे पहले बोफर्स घोटाले की बात हो जाए। भारतीय सेना के लिए विदेशी बनावट की तोप खरीदने के मामले में इटली की तोप बनानेवाली कंपनी बोफर्स ने भारतीय मंत्रि मंडल के अनेक व्यक्तियों और अनेक बड़े अफसरों को 32 करोड़ रुपए जितना घूंस दिया। घूंस प्राप्त करने वालों में प्रधान मंत्री राजीव गांधी का भी नाम लिया गया। इस सौदे को पटाने में राजीव गांधी की इटली देश में जन्मी पत्नी सोनिया का मित्र और मशहूर आयुध-व्यापारी हेनरी कोशिगर का बड़ा हाथ था। बोफर्स कंपनी ने विन चड्डा को भारत में अपना ऐजेंट नियुक्त किया था और पैसा इसी ने हवाला चैनेल से मंत्रियों तक पहुंचाया था।"

प्रदीप ने कहा, "सर यह हवाला क्या चीज है?"

मैंने कहा, "प्रदीप थोड़ा सब्र करो। इस सवाल का उत्तर मैं हवाला घोटाले को समझाते वक्त दूंगा। वैसे अर्थशास्त्र की कक्षा में तुम लोगों को इसके बारे में विस्तार से पढ़ाया जाइगा। इस वर्ष से अर्थशास्त्र के पाठ्यपुस्तक में हवाला अर्थतंत्र पर भी एक अध्याय शामिल किया गया है। अभी हम बोफर्स की बात पूरी कर लें। इस घोटाले से जुड़ा एक अन्य महापुरुष चंद्रस्वामी था। मंत्रियों, प्रधान मंत्री और बोफर्स कंपनी के बीच संपर्क साधने में इसका बड़ा हाथ था।

"तो बच्चो, यह था बोफर्स घोटाला। इसी से जुड़ा है सेंट किट्स घोटाला। उसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई कि जब बोफर्स का भंडा फूटा तो प्रधान मंत्री सहित अनेक अन्य बड़ी हस्तियों की चमड़ी बचाने के प्रयत्न आरंभ हुए। इस प्रयास में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नरसिंह राव की मुख्य भूमिका रही। मामले को दबाने के इस प्रयास को ही सेंट किट्स घोटाला कहा जाता है। बोफर्स की बातें तब सामने आईं जब राजीव गांधी के चुनाव हारने पर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री बने। विश्वनाथ प्रताप सिंह का मुंह बंद करने के लिए नरसिंह राव ने चंद्रस्वामी की सहायता से जाली दस्तावेज तैयार करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के बेटे ने स्विस बैंकों में कई करोड़ रुपए जमा करके रखे हैं।"

अमर ने पूछा, "सर ये लोग भारतीय बैंकों में ये पैसे क्यों नहीं रखते थे?"

मैंने उसे समझाया, "बेटे, घोटाला युग में अमीर लोगों के लिए यह आम बात थी कि वे अपनी दौलत को देशी बैंकों में न रखकर विदेशों के बैंकों में, खासकर के स्विटजरलैंड के बैंकों में, रखते थे, ताकि जब उनके क्रियाकलापों का भंडा फूटे तो वे चुपचाप विदेश भाग सकें। हां, तो बात सेंट किट्स घोटाले की हो रही थी। नरसिंह राव की इस जालसाजी की बातें जल्द ही खुल गईं, और वे स्वयं बोफर्स और हवाला कांड में बुरी तरह उलझ गए।"

मैंने देखा कि बच्चों के चेहरे पर कुछ घबाराहट और बेचैनी सी छा गई है। आखिर मनमोहन ने उन सबके मन की बात कह ही डाली, "सर इन घोटालों का विवरण तो मुगल शहजादों की आपसी रंजिश एवं घात-प्रतिघात से भी अधिक उलझा हुआ है। हम कैसे इसे सब याद रख पाएंगे? इस विषय की परीक्षा में तो हम अवश्य ही फेल हो जाएंगे।"

मैंने उसे सांत्वना दी, "निराश होने की कोई बात नहीं है। तुम लोगों के पाठ्यक्रम में घोटाला काल के मुख्य-मुख्य घोटालों के बारे में बहुत ही संक्षिप्त जानकारी ही मांगी गई है। अधिक गहराई से तुम लोग ऊपर की कक्षाओं में पढ़ोगे। घोटाला युग के क्रियाकलाप तो इतने जटिल एवं विस्तृत हैं कि आज सैंकड़ों छात्र हर साल इस विषय पर पीएचडी स्तर का शोध कर रहे हैं और प्रोफेसर लोग घोटाला काल पर पोथियां लिखकर हजारों रुपयों की रायल्टी कमा रहे हैं। मैं तुम लोगों को इन घोटालों के बारे में इसलिए विस्तृत जानकारी दे रहा हूं ताकि आगे की कक्षाओं में फायदा हो।"

बात दरअसल यही नहीं थी। मैं टीचरी से प्राप्त अपनी टुच्ची एवं नाकाफी आय में वृद्धि करने के लिए घोटाला काल पर एक पाठ्यपुस्तक तैयार कर रहा था और उसके लिए काफी मसाला इकट्ठा कर लिया था। इसे मैं अपनी कक्षा के विद्यार्थियों पर आजमाकर अपनी पुस्तक को अधिक सुपाठ्य बनाना चाहता था। परंतु यह देखकर कि घोटालों के अधिक पेचीदा अंशों से बच्चों का जी घबरा रहा है, मैंने अन्य घोटालों को जरा संक्षेप में पेश किया।

मैंने कहा, "कोर्स का अगला घोटाला प्रतिभूति घोटाला है। इसका मुख्य नायक शेयरों का दलाल हर्शद मेहता था। इसने राष्ट्रीय बैंकों में जमा अरबों रुपए की पूंजी को उन बैंकों के मैनेजरों व अन्य उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से बेनामी शेयरों में लगाकर खरबों रुपए कमाए। इससे शेयर बाजार में जो अस्वाभाविक उछाल आई उससे बहककर बहुत से टुटपुंजियों ने भी शेयरों में अपनी खून-पसीने की कमाई लगाई। परंतु जब यह अस्वाभाविक उभार ठंडा हुआ और शेयरों के भाव गिर गए तो बैंकों के अरबों रुपए और छोटे निवेशकों के करोड़ों रुपए पर चूना लग गया।"

अगला घोटाला मेरा मनपसंद हवाला घोटाला था। इस पर मैंने काफी सामग्री अपनी पुस्तक के लिए एकत्र कर ली थी। मेरी पुस्तक की खास विशेषता इसी घोटाले का विश्लेषण थी। मैंने देखा था कि मार्किट में जो अन्य पाठ्यपुस्तकें थीं, उन सबमें इस घोटाले का बहुत ही अपूर्ण एवं अस्पष्ट व्याख्या ही दी गई थी। इस कारण से मैंने हवाला घोटाले को कुछ विस्तार से समझाया, "बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने प्रस्तावों को संबंधित अधिकारियों से पास कराने और आवश्यक कागजात प्राप्त करने के लिए करोड़ों रुपए घूंस में खर्च करती हैं। यह सब रकम हवाला चैनेल से ही भेजी जाती है। इसी प्रकार नशीले पदार्थों की तस्करी आदि आपराधिक गतिविधियों से उत्पन्न अकूत दौलत भी हवाला चैनल से ही देश के बाहर जाती है। विदेशी ताकतें देश के विरुद्ध चल रहे आतंकवादी आंदोलनों को वित्तिय सहायता भी इसी हवाला चैनल से पहुंचाती हैं। देश के समृद्ध वर्ग अपनी दौलत देश के बाहर ले जाने के लिए और विदेशों में रह रहे भारतीय नागरिक अपनी बेशुमार दौलत चोरी-छिपे भारत में लाने के लिए भी इसी चैनल का उपयोग करते हैं। इससे उन्हें आय कर आदि से मुक्ति मिल जाती है। इसी चैनल से विदेशी ताकतें, औद्योगिक घराने, बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विदेशी जासूसी ऐजेंसियां आदि मुख्य-मुख्य राजनीतिक दलों को चुनावी खर्चे के लिए चंदा देते हैं और इस तरह उनकी नीतियों को अपने हितों के अनुकूल बना लेती हैं। इस तरह से हवाला चैनेल बेहिसाब दौलत के दो-तरफा बहाव का एक जरिया है। इसके संचालकों में से एक थे जैन बंधु जो एक छोटे स्तर के उद्योगपति भी थे। इनकी गिरफ्तारी से इनसे जो डायरी प्राप्त हुई उसमें बहुत से उच्च स्तर के राजनेताओं के नाम दर्ज मिले, जिनमें शामिल थे प्रधान मंत्री नरसिंह राव, उसके मंत्रिमंडल के कल्पनाथ राय और अरिफ मुहम्मद खान, विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, दिल्ली के भाजपा सरकार के मुख्य मंत्री मदनलाल खुराना, अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, कमलनाथ, आदि। हवाला घोटाले की एक अन्य मुख्य खासियत यह है कि प्रधान मंत्री नरसिंह राव ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को धराशायी करने के लिए उन्हें हवाला घोटाले में उलझा दिया। परंतु अंत में वे स्वयं ही अपने फैलाए गए जाल में फंस गए।

"अब हम आते हैं चीनी घोटाले पर। एक बार देश में चीनी की बड़ी किल्लत पैदा हुई और चीनी के दाम आसमान छूने लगे। बहुत से विशेषज्ञों ने भारत सरकार से विदेशों से चीनी आयात करने की सलाह दी। परंतु खाद्य मंत्री कल्पनाथ राय ने चीनी मिलों के मालिकों के हित को ध्यान में रखते हुए कई महीनों तक चीनी के आयात की अनुमति नहीं दी। अंत में जब चीनी आयात की गई तब तक भारत द्वारा चीनी आयात करने की संभवना को जानकर चीनी का अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव बहुत बढ़ गया और इससे देश को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। बच्चो, नोट करना कि इस घोटाले से संबंधित कल्पनाथ राय हवाला घोटाले में भी नाम कमा चुके हैं। इन दो घोटालों में उसकी भूमिका को आप कन्फ्यूस न करें।

"अब हम अगले घोटाले पर जाते हैं, जो है चारा घोटाला। यह बिहार राज्य का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है जो दस साल यह अबाध रूप से चलता रहा। जनता को ढोर व उनके लिए चारा खरीदने के लिए ऋण आदि देने के नाम से बिहार सरकार के कर्मचारियों ने हजार-डेढ़ हजार करोड़ रुपए हजम कर लिए। यह सब जनता के दुलारे, बिहार के दो बार मुख्य मंत्री रह चुके और उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पूर्ण जानकारी में हुआ।"

पाठ को समापन की ओर ले जाते हुए मैंने कहा, "कोर्स में शामिल अंतिम घोटाला टेलिफोन घोटाला है। इसके मुख्य अभियुक्त सुख राम थे जो केंद्र सरकार के दूरसंचार मंत्री थे। उन्होंने अपने राज्य हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी को देश में एक नया टेलिफोन नेटवर्क लगाने के लिए हजारों करोड़ों का टेंडर दिलवाया। इससे देश को सैंकड़ों करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ। इस कंपनी ने इसके बदले मंत्री को कई करोड़ रुपए घूस में दिए जिसे वे ठिकाने लगा पाते इससे पहले ही उनके घर पुलिस का छापा पड़ा। सारे रुपए अलमारियों, सूटकेसों आदि में ठूंसे हुए मिले।"

अंत में मैंने कहा, "बच्चो कोर्स में बस ये ही चंद घोटाले हैं। लेकिन एक अन्य घोटाले के बारे में जानना तुम लोगों को शायद रोचक लगेगा क्योंकि यह उपर्युक्त सभी घोटालों से थोड़ा भिन्न है। यह है राजन पिल्लै से संबंध रखनेवाला बिस्कुट घोटाला। यह घोटाला विलक्षण इस अर्थ में है कि यह इस देश में नहीं बल्कि दूर हांग कांग में हुआ। राजन पिल्लै एक बहुराष्ट्रीय बिस्कुट कंपनी का चेयरमैन था। उसने कंपनी के खाते में से सैंकड़ों करोड़ रुपए उड़ाए और जब इसका भंडा फूटने ही वाला था, हांग कांग के कड़े कानूनों से बचने के लिए वह भारत भाग आया और भारतीय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसे विश्वास था कि वह भारत के न्यायाधीशों को अपने पैसे के बल पर खरीद कर सस्ते में छूट जाएगा। परंतु दुर्भाग्य से वह जेल में रहते हुए पुलिस अत्याचार के फलस्वरूप मारा गया।

"अब मैं परीक्षाओं में पूछे जा सकने वाले कुछ प्रश्न श्यामपट पर लिखता हूं। गृह कार्य के रूप में तुम लोग उनका उत्तर तैयार करो। मैंने निम्नलिखित प्रश्न लिखेः-

1. नीचे दी गई ऐतिहासिक घटनाओं में से किन्हीं दो पर विस्तार से चर्चा करें।
क) 1857 की गदर; ख) बोफर्स घोटाला; ग) नमक सत्याग्रह; घ) जलियांवाला हत्याकांड

2. भारतीय इतिहास में निम्नलिखित इतिहास पुरुषों में से किन्हीं तीन के महत्व को समझाएं: विवेकानंद, नरसिंह राव, हरशद मेहता, भगत सिंह, लालू प्रसाद यादव, कल्पनाथ राय, महात्मा गांधी, सुख राम।

3. निम्नलिखित पुरुषों में से किसे आप घोटाला काल की प्रवृत्तियों का सच्चा प्रतिनिधि मानते हैं?
सुख राम, राजीव गांधी, कल्पनाथ राय, चंद्रस्वामी, हर्षद मेहता, लालू प्रसाद यादव।

4. चीनी घोटाले अथवा हवाला घोटाले में कल्पनाथ राय की भूमिका को स्पष्ट करें।

5. हवाला चैनेल कैसे काम करता है? राजनीतिक दलों के लिए यह चैनेल क्यों महत्व रखता है?

6. बिस्कुट घोटाला अन्य घोटालों से किस प्रकार भिन्न था?

7. घोटाला काल में घटित इन घोटालों का देश की अर्थव्यवस्था और निर्धन वर्गों पर क्या असर पड़ा?

तब तक कक्षा के समाप्त होने की घंटी बजी और मैं कक्षा से बाहर चला आया।

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