योगासन मंडली के सदस्य झील के किनारे वाले उद्यान में एकत्र हुए थे। सभी सेवानिवृत्त पेंशनयाफ्ता वृद्ध थे। शाम का वक्त था।
आचार्य के दिखाए अनुसार आधा घंटा हरी घास में आसन लगाने के बाद सब पेड़ों के नीचे अपनी-अपनी पसंद के बेंचों पर और उसके चारों ओर की घास पर बैठे-लेटे बतियाने लगे।
उद्यान के बाहर के चायवाले से इशारे से चाय मंगा ली गई।
मोहन बाबू – भाई विमलदा, क्या तुमने रतन प्रकाश के ब्लोग का वह किश्त पढ़ा जिसमें उन्होंने सांसद दांडेरकर की पोल खोलकर रख दी है?
दातादीन – वही चिट्ठा न जिसमें दांडेरकर बनाम सविता वाले कांड की चर्चा है?
मोहन बाबू – वही, वही... बड़ी मेहनत से तथ्य जुटाए हैं, रतन ने। मजा आ गया पढ़कर। यह सब अखबारों में कही नहीं आया...
रमाशंकर – किस अखबार में हिम्मत है दांडेरकर के विरुद्ध कुछ लिखने की... चुटकी में सरकारी विज्ञापन बंद हो जाते उसका...
भवानी प्रसाद – इन बहादुर लिक्खड़ों के लिए कुछ करना चाहिए, ताकि उनका हौसला बुलंद रहे।
मोहन बाबू – लाख रुपए की बात कही तुमने। मैं भी यही सोच रहा था...
तब तक चाय आ गई, और बातचीत चाय की चुस्कियों में मंद पड़ गई।
अंधेरा छाने लगा। कुर्ता-पायजामा झाड़ते हुए वे उठ खड़े हुए और उद्यान के बाहर आ गए।
पर कोई घर नहीं गया, पास ही के इंटरनेट कफे में उनकी नई महफिल जमी। सब एक-एक कंप्यूटर पर रतन प्रकाश के ब्लोग के पन्ने खोलकर बैठ गए, और लगे चटकाने उसके पृष्ठों के विज्ञापनों पर चूहे का बटन।
दस पंद्रह मिनट बाद वे बाहर आ गए।
दातादीन – लो भवानी, रतन के लिए चाय पानी के खर्चे का तो इंतजाम कर ही दिया, अब तो खुश।
मोहन बाबू - ऐसा ही लिखता रहे बर्खुरदार!
उधर कुछ दिनों के बाद रतन प्रकाश को गूगल से एक ईमेल प्राप्त हुआ। उसमें लिखा था:-
हमें खेद है कि हमें आपका एडसेन्स खाता बंद करना पड़ रहा है। तारीख .... और .... के बीच आपके जाल पृष्ठ के पन्नों के एडसेन्स विज्ञापनों पर असाधारण रूप से अधिक क्लिकें आई हैं। हमें लगता है कि यह एडसेन्स के नियमों का उल्लंघन करते हुए हुआ है।
यदि आपको इस संबंध में कुछ कहना हो, तो निम्नलिखित ईमेल पत पर हमसे संपर्क करें।
एडसेन्स का उपयोग करने के लिए धन्यवाद।
एडसेन्स टीम
Sunday, April 05, 2009
योगदान
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: लघु कथा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 Comment:
गलतियों की ओर ध्यान दिलाने का धन्यवाद.
यह लेख अधुरा है इसके पहले मैंने रेट स्नेक के बारे में लिखा है. आप वह देख लें. यह उसकी ही कड़ी थी. उसमे मैंने लिखा है की यह विषहीन सांप है. कुछ वक्त बाद मैंने साँपों पर लिखने के लिए अलग ब्लॉग ही बना दिया है पता यह है -bhujang.blogspot.com वहां पधार के अपने विचारों से मुझे अवगत कराएँ.
Post a Comment