Thursday, January 06, 2011

ईसाइयों की प्रगतिशीलता

जब धर्म वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपने-आपको ढालने के संकेत देता है, तो निश्चय ही वह एक सराहनीय बात है।

ईसाई धर्म में इस तरह के सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। ईसाई धर्म में मृतकों को ताबूत में रखकर दफनाने का रिवाज है। यह ताबूत सागौन आदि महंगी लकड़ी से बनते हैं, और कलात्मक नक्काशी वाले ताबूतों की कीमत 50,000 रुपए तक पहुंच जाती है। इन ताबूतों के कारण अनेक गरीब ईसाइयों के लिए अपने प्रिय-जनों के अंतिम संस्कार के फलस्वरूप कर्ज और आर्थिक बर्बादी की नौबत आती है।

पर कैथोलिकों की सभा ने अब शवों को बिना ताबूतों में रखे, केवल कफन के कपड़े में लपेटकर दफनाने को मंजूरी दे दी है। इससे पहले ही मुंबई क्षेत्र में कई चर्चों में बिना ताबूत के शवों को दफनाया जाता रहा है। मुंबई के वसाई क्षेत्र के कुछ ईसाई इसके मध्यवर्ती रिवाज अपनाते हैं। वे शव को ताबूत में रखकर कब्रिस्तान तक लाते हैं, पर दफनाते समय शव को ताबूत से बाहर निकालकर कफन में लपेटकर दफनाते हैं। इस तरह एक ही ताबूत का बारबार उपयोग हो पाता है। कैथोलिक सभा ने राय दी है कि अब शवों को बिना ताबूत के दफनाने की प्रथा को व्यापक रूप से अपनाने में दोष नहीं है। इससे संबंधित वक्तव्य सभा ने अपनी पत्रिका सत्यदीप में प्रकाशित की है।

शव संस्कार की इस नई रीति का एक फायदा महंगे ताबूतों से मुक्ति है, पर इसके अन्य फायदे भी हैं। ताबूतों में रखे शवों के नष्ट होने में अधिक समय लगता है, और इस कारण कब्रिस्तानों में भूमि के पुनरुपयोग की संभावना घट जाती है। पर्यावरण की दृष्टि से भी शवों के दफनाने में ताबूत का उपयोग न करना फायदेमंद है। इससे न जाने कितने पेड़ों को जीवन-दान मिल सकता है।

शवों के दफनाने की यह नई रीति हिंदुओं, मुसलमानों, यहूदियों और पारसियों की अंत्येष्टि प्रथाओं के समीप है। इन सब धर्मों में भी ताबूत का उपयोग नहीं होता है। शवों को या तो जलाकर नष्ट किया जाता है, अथवा कफन में लपेटकर दफनाया जाता है।

इस संबंध में सेंट इग्नेशियस चर्च के पादरी फादर जोसेफ डिसूज़ा याद दिलाते हैं कि स्वयं ईसा मसीह के मृत-देह को बिना ताबूत के दफनाया गया था।

सभी धर्मों को अपने रीति-रिवाजों को इसी तरह समकालीन परिस्थितयों के अनुसार बदलने में संकोच नहीं करना चाहिए। इन रीति-रिवाजों का धर्मों के केंद्रीय तत्वों से कोई संबंध नहीं होता है, वे केवल सुविधा के लिए अपनाए गए होते हैं।

आजकल कई धर्मों ने अपने परंपरागत रिवाजों से चिपके रहने की अड़ियलता दिखाई है, भले ही ये रिवाज आजकल की परिस्थितियों में निरर्थक या हानिकारक साबित हो चुके हों। उन्हें ईसाइयों की इस प्रगतिशीलता से प्रेरणा लेनी चाहिए।

2 Comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर और सराहनीय पहल।

स्वाति said...

सराहनीय पहल...

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