क्या आपको मालूम है, दुनिया की सबसे प्रथम एयर मेल भारत से पहुंचाई गई थी?
इसकी कहानी काफी रोचक है। शुरुआत होती है दिसंबर 1910 से। इस महीने ब्रिटन का एसएस पर्शिया नामक जहाज मुंबई पहुंचा। उसमें बड़े-बड़े बक्से रखे हुए थे जिनमें हवाई जहाज के पुर्जे थे। इस जहाज के यात्रियों में वाल्टर जोर्ज विंधैम, हेनरी पेक्वेट और कीथ डेविस भी थे। विंधैम एक मशहूर खोजी, यात्री और मोटरकार रेसर थे। बाकी दो पायलट थे। हेनरी फ्रांस का नागरिक था और डेविस अंग्रेज था। इनके अलावा दो मैकेनिक भी उनके साथ थे। वे सब इंग्लैंड की हंबर मोटर कंपनी द्वारा भेजी गई टीम के सदस्य थे। उस समय इलाहाबाद में एक औद्योगिक और कृषि उपकरण प्रदर्शनी लगी हुई थी। हंबर मोटर कंपनी को उम्मीद थी कि उसके द्वारा बनाए गए हवाई जहाज को इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित करके वह भारत में इन विमानों को बेचने में सफल हो सकेगी।
हंबर मोटर कंपनी ने 1910 में हंबर ब्लेरियोट नामक मोनोप्लेन बनाना शुरू किया था। उस साल के अंत में उसने रोजर सोमर नामक बाइप्लेन भी बनाया। कंपनी ने इसे ही विंधैम के साथ भारत भेजा था। यह प्लेन प्रथम महायुद्ध के अंत तक काफी लोकप्रिय बना रहा।
यह टीम ट्रेन द्वारा मुंबई से चल पड़ी और 5 दिसंबर को इलाहाबाद पहुंची। पांच दिनों में ही प्रदर्शनी के मैदान के पास स्थित पोलो ग्राउंड में इस टीम ने दो प्लेन जोड़कर तैयार कर लिए।
10 दिसंबर को परीक्षण करने के लिए कीथ डेविस ने एक प्लेन को पोलो ग्राउंड के चारों ओर उड़ाया। इसकी रिपोर्ट एक स्थानीय अख़बार में भी छपी।
उन्हीं दिनों इलाहाबाद के होली ट्रिनिटी चर्च एक छात्रावास बनवाने के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा था। चर्च के कुछ पादरि विंधैम से मिले और उनसे इस बारे में चर्चा की। विंधैम भी इसी उधेड़बुन में थे कि अपने विमान को कैसे प्रसिद्धि दिलाएं। पादरियों से मिलने पर उन्हें एक विचार आया जिससे वे एक पंथ दो काज सिद्ध कर सकते थे। उन्हें विदित हुआ कि यदि वे अपने हवाई जहाज में कुछ पत्र ले जा सके और इन पत्रों में लगे डाक टिकटों को रद्द करने की मुहर पर विशेष अतिभार (सरचार्ज) लगाया जाए, तो इस अतिभार से छात्रावास के लिए काफी पैसे इकट्ठे हो सकते हैं, और साथ में उनके हवाई जहाज को भी काफी प्रसिद्धि मिल सकती है।
विंधैम संयुक्त प्रांत के पोस्ट मास्टर जनरल से मिले और उनसे इसके बारे में चर्चा की। उन्हें भी यह विचार पसंद आया। उन्होंने एक विशेष कैन्सलेशन मुहर जारी करने का आदेश दे दिया। इस मुहर में लिखा था “फर्स्ट ऐरियल पोस्ट” (अर्थात, पहली हवाई डाक)। इस मुहर के प्रत्येक उपयोग पर 6 आने का सर्चार्ज लगाया गया और इससे प्राप्त पैसे को छात्रावास के लिए दान कर दिया गया।
हवाई जहाज से पत्रों को ले जाने के लिए 18 फरवरी 1911 का दिन चुना गया। यह तय किया गया कि हेनरी हवाई जहाज से पत्रों को इलाहाबाद से गंगा पार स्थित नैनी तक ले जाएंगे। इसके एक दिन पहले इलाहाबाद के ओक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज होस्टल को एक अस्थायी डाक घर में बदल दिया गया। वहां पत्रों की छटाई का काम सुबह 9 बजे शुरू किया गया और अर्धरात्रि तक चलता रहा। कुछ 6,500 पत्रों पर फर्स्ट ऐरियल पोस्ट वाली कैन्सलेशन मुहर लगाई गई।
उधर गंगा पार नैनी में हवाई जहाज से लाए गए पत्रों को स्वीकार करने के लिए एक पादरी को पोस्ट मास्टर के रूप में नियुक्त किया गया। इन प्रथम ऐरियल पोस्टों को ले जानेवाले पाइलट हेनरी पिक्वेट ने स्वयं 400 पोस्टकार्डों में हस्ताक्षर किए। इन विशिष्ट पोस्टकार्डों को उस दिन एक रुपए की कीमत पर बेचा गया। आज इन दुर्लभ पोस्टकार्डों की कीमत लाखों रुपए में आंकी जाती है।
18 दिसंबर 1911 एक सुहावना दिन था। हेनरी पिक्वेट इलाहाबाद से नैनी के लिए पत्रों को लेकर अपने हवाई जहाज में निकल पड़ा। उसने 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हुए गंगा नदी पार की और इलाहाबाद से नैनी के बीच की 6 मील की दूरी तय की। नैनी पहुंचकर उसने पत्रों को पादरी के हवाले कर दिया और इलाहाबाद लौट आया। उसे इसमें कुल 27 मिनट लगे।
इत्तफाक से उन्हीं दिनों इलाहाबद में कुंभ मेला भी लगा हुआ था, और लाखों तीर्थयात्री गंगा स्नान करने इलाहाबाद आए हुए थे। उन सबने इस ऐतिहासिक उड़ान को अपनी आंखों से देखा।
नैनी से इन पत्रों को सामान्य डाक के समान स्थल और समुद्र मार्गों से दुनिया भर के गंतव्य स्थानों को पहुंचा दिया गया। चूंकि इन पत्रों को कुछ दूरी तक हवाई जहाज द्वारा ले जाया गया था, ऐतिहासिक दृष्टि से उन्हें ही दुनिया की प्रथम ऐयर मेल के रूप में माना जाता है।
इन पत्रों को पानेवालों में इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम भी था। उसके सचिव ने विंधैम को पत्र लिखा जिसमें कहा गया था, “राजा की इच्छा है कि "फर्स्ट ऐरियल पोस्ट" की मुहर लगे भारत से उन्हें आए पत्र के लिए मैं आपको धन्यवाद दूं और यह बताऊं कि उसे उन्होंने अपने डाक टिकट संग्रह में जोड़ लिया है और वह इस संग्रह का एक महत्वपूर्ण अंग बना रहेगा।"
वर्ष 1961 में इस ऐतिहासिक उड़ान की स्वर्ण जयंती के अवसर पर भारतीय डाक विभाग ने एक विशेष डाक कवर जारी किया। उत्तर प्रदेश फ्लाइंग क्लब ने एक डीएचसी ओटर विमान उपलब्ध कराया जिसने इलाहाबाद-नैनी-इलाहाबाद की वही उड़ान भरते हुए इन कवरों को पहुंचाया। इस समारोह में शरीक होने के लिए गण्यमान्य व्यक्तियों की एक पूरी टोली विशेष हवाई जहाज से इलाहाबाद पहुंची थी।
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चित्र शीर्षक, जिस क्रम में वे आए हैं -
- वाल्टर जोर्ज विंधैम
- सोमर बाइप्लेन
- प्रथम एयर मेल की स्वर्ण जयंति पर जारी किया गया डाक टिकट
- प्रथम एयर मेल की स्वर्ण जयंति पर जारी किया गया डाक कवर
Tuesday, June 09, 2009
दुनिया की सबसे पहली एयर मेल
लेखक: बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
लेबल: विविध
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1 Comment:
बेहद रोचक तथा ज्ञानवर्धक
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