Wednesday, May 20, 2009

तड़ित झंझा


अप्रैल और मई के मानसून-पूर्व के महीनों में भारत के कुछ हिस्सों में, विशेषकर पश्चिम बंगाल और असम में, भीषण तड़ित झंझा उत्पन्न होती है। बंगाल में ये उत्तर-पश्चिम दिशा से आती हुई मालूम पड़ती हैं और काल बैसाखी कहलाती हैं। इस तरह की तड़ित झंझा बिजली की चमक और कर्ण-विदारी मेघ-गर्जन के साथ प्रकट होती है जो मेघों के भीतर हो रही भीषण वैद्युतीय प्रक्रियाओं की ओर संकेत करते हैं। इन तूफानों से संबंधित वर्षा क्षणभंगुर होते हुए भी भारी होती है। वर्षा के साथ-साथ ओले भी कभी-कभी गिरते हैं। औसतन भारत का कोई भी भाग साल में तीन-चार तड़ित झंझा अनुभव करता है। केरल और बंगाल प्रति वर्ष पचास से भी अधिक तड़ित झंझा अनुभव कर सकते हैं। ये सामान्यतः तीसरे पहर को या दिन के अधिकतम तापमान के पहुंचने के तुरंत बाद प्रकट होते हैं।

तड़ित झंझा वायुमंडल में हो रही प्रबल संवहनी हलचलों का उत्तम उदाहरण है। सामान्यतः यह एक विशाल कपासी-वर्षामेघ के रूप में प्रकट होती है। इस प्रकार का मेघ जब कई किलोमीटर व्यास तक बढ़ जाता है तो उसमें वैद्युतीय प्रक्रियाएं आरंभ हो जाती हैं। मेघ के भीतर वायु ऊपर और नीचे दोनों दिशा में संचरित होती है।

भारत में कपासी-वर्षामेघ समुद्र की सतह से सत्रह-अठारह किलोमीटर की ऊंचाई तक फैल सकता है। ऊपर को उठता हुआ यह मेघ एक ऐसी प्रणाली होता है जिसके निचले भाग से नम हवा प्रवेश करती है और ऊपर उठते समय उसकी अधिकांश नमी संघनित हो जाती है। जब यह हवा मेघ के ऊपर से प्रकट होती है तो अपेक्षाकृत नमीहीन होती है। इस प्रकार कई टन वजन की हवा इस प्राकृतिक चिमनी से होकर गुजरती है और नमी खो बैठती है।

मेघ के ऊपरी हिस्से का तापमान -40 अंश सेल्सियस से भी कम हो सकता है और बर्फ के कण स्वतः ही पैदा हो जाते हैं। इसका परिणाम होता है ओला वृष्टि। वर्षा की बूंदें भी मेघ के विशाल आकार के कारण काफी बड़ी बन जाती हैं। इस कारण संबंधित वर्षा भारी होती है। बारिश के पानी का कुछ भाग वाष्पीकृत होकर वातावरण को मेघ के आसपास की हवा की तुलना में ठंडा कर देता है। यह ठंडी हवा निरंतर बढ़ती गति से नीचे बैठने लगती है, और जब यह उतरती हवा जमीन के ऊपर की हवा से टकराती है तो एक प्रबल पवन बनकर आगे की ओर बह उठती है। यही इन तड़ित झंझाओं से संबंधित आंधी है, जो काफी विनाशकारी हो सकती है।

मेघ के भीतर मौजूद हवा की ऊर्ध्व धाराएं वर्षा की बड़ी बूंदों को छोटी बूंदों में छिटक देती हैं जिससे मेघ के अंदर विद्युत उत्पन्न हो जाता है। हवा की इन धाराओं के कारण वैद्युत आवेशों का पृथक्कीकरण हो जाता है और मेघ का ऊपरी और निचला भाग विपरीत आवेशवाले हो जाते हैं। इसके कारण उनके बीच विभवांतर पैदा हो जाता है जो कई करोड़ वोल्ट का हो सकता है। जब यह विभवांतर अत्यधिक हो जाता है तो आंखों को चौंधिया देनेवाली बिजली की कड़क मेघ के विभिन्न भागों के बीच पैदा होती है। इससे उत्पन्न गरमी हवा को चीर डालती है जिससे मेघ गर्जन होता है।

2 Comments:

Udan Tashtari said...

जानकारीपूर्ण ज्ञानवर्धक आलेख. आभार.

farhaan khan said...

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