Friday, April 24, 2009

मौत का मंत्री

श्यामसुंदर हवाई अड्डे की लौंज में बड़ी बेसब्री से चहल-कदमी कर रहा था। लौंज असंख्य यात्रियों से भरा हुआ था। वे सब दिल्ली की ओर जानेवाली उड़ान के इंतजार में थे। इस उड़ान का नियत समय तीन बजे था, पर अभी साढ़े चार हो रहे थे। यात्रियों द्वारा बार-बार पूछे जाने पर भी हवाई अड्डे के अधिकारी नहीं बता रहे थे कि इस उड़ान को क्या हो गया है, वह विलंब से क्यों आ रही है। असल में यह हवाई जहाज बैंगलूर से आ रहा था। अधिकारियों ने घोषणा भी कर दी थी कि वह बैंगलूर हवाई अड्डा छोड़ चुका है, घंटे भर में यहां के रनवे पर उतरेगा। लेकिन इस घोषणा के दो घंटे हो गए थे, पर हवाई जहाज का कोई अता-पता नहीं था। उसको लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।

श्यामसुंदर ने एक बार फिर काउंटर पर बैठी महिला से नम्रता से पूछा, "मैडम दिल्ली की उड़ान के बारे में कोई ताजा समाचार?"

उसने शिष्टतापूर्वक उत्तर दिया, "आइ एम सॉरी। वह किन्हीं तकनीकी कारणों से एक दूसरे हवाई अड्डे पर उतार दी गई है। आपकी असुविधा के लिए हमें खेद है।"

श्यामसुंदर पर मायूसी सी छा गई। उसने कहा, "मैडम यह तो बताइए वह दिल्ली के लिए कब उड़ान भरेगी?"
स्त्री ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, "मुझे क्षमा करें। इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।

कोई सूचना आते ही हम पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर ऐनाउन्स कर देंगे।"

श्यामसुंदर ने एक गहरी उसांस ली। वह स्त्री उसकी तरफ आत्मीयता से देखती रही। श्यामसुंदर ने उससे कहा, "सामान्य परिस्थितियों में मुझे इस देरी से कुछ अधिक परेशानी नहीं होती। लेकिन इस समय मैं बहुत लाचार हूं। मेरे साथ मेरे पिताजी भी हैं। उन्हें कल रात दिल का दौरा पड़ा था।

डाक्टरों ने बाइपास सर्जरी की ताकीद दी है। दिल्ली के एक नामी अस्पताल में उनके आपरेशन की तारीख भी तय हो चुकी है। यदि अधिक देरी हुई तो उनकी जिंदगी को खतरा है।"

काउंटर की महिला ने सहानुभूति जतालाते हुए कहा, "मुझे आपके साथ पूरी हमदर्दी है। पर परिस्थिति हमारे नियंत्रण के बाहर है। वीआइपियों के आवागमन से हमारे सारे शेड्यूल गड़बड़ा जाते हैं। यात्रियों को भी बहुत कष्ट होता है।"

श्यामसुंदर का माथा ठनका। उसने गुस्से से कहा, "तो क्या कोई मिनिस्टर-विनिस्टर उतर रहा है क्या?"
महिला ने हां में सिर हिलाया।

श्यामसुंदर बुदबुदाया, "सामने पड़ जाए तो साले को मैं अपने इन हाथों से चार जूते लगाऊंगा।"

वह फिर लौंज में वापिस आ गया। एक व्हीलचेयर पर उसके पिता बेसुध पड़े थे। मां ने उससे पूछा, "बेटा फ्लाइट कब जाएगी? मेरा तो दिल घबरा रहा है। घर से निकले चार घंटे के ऊपर हो गए हैं। टैक्सी में चढ़ना, उतरना, यहां इस प्रकार व्हीलचेयर पर बैठे रहना, यह सब इनके लिए कुछ अच्छा नहीं है। डाक्टर ने तो इन्हें बिस्तर से उठने तक की मनाही की है।"

"घबराओ नहीं मां, फ्लाइट अभी आती ही है," श्यामसुंदर ने अपनी मां को समझाया। पर उसके शब्दों में छिपे अविश्वास को भांपकर उसकी बेहन वंदना धीरे से उसके पास आई और उसे थोड़ा अलग ले जाकर उससे पूछा, "भैया इतना चिंतित क्यों हो? क्या कोई ऐसी-वैसी बात हो गई है?"

श्यामसुंदर ने दबे स्वर में लगभग रुआंसा सा होकर कहा, "वंदु सच कहूं तो मुझे बड़ा डर लग रहा है। पिताजी को यहां लाकर हमने कोई गलती तो नहीं की?"

"भैया ऐसा न कहो", वंदना ने अपने भाई का हाथ पकड़ कर कहा।

"नहीं वंदु। अभी मैं हवाई अड्डे के एक अधिकारी से बात करके आया हूं। फ्लाइट कब आएगी, यह उसे भी पता नहीं है।"

"पर इस देरी का कारण क्या है? कहीं कोई दुर्घटना-वुर्घटना तो नहीं।।।" यह भयानक बात कहते-कहते वंदना रुक सी गई।

"अरे नहीं, कोई मिनिस्टर-विनिस्टर आ रहा है बस। उस बदमाश के चले जाने के बाद ही अब हमारी फ्लाइट उड़ान भरेगी।" श्यामसुंदर ने घृणा से कहा।

"हे भगवान!" यह अनिष्टकारी सूचना सुनकर वंदना ने अपने होंठ दांतों तले दबा लिए।

अचानक हवाई अड्डे में चहल-पहल बढ़ गई। किसी हवाई जहाज के रनवे पर उतरने की आवाज आने लगी। हवाई अड्डे के बाहर दो फौजी ट्रक आकर रुके और उनमें से 60-70 हथियारबंद सैनिक उतर पड़े। हवाई अड्डे के अंदर और बाहर चारों ओर फैलकर वे सभी यात्रियों को दीवारों के किनारे खदेड़ने लगे। इस धक्का-मुक्की में श्यामसुंदर के पिता का व्हीलचेयर उलटते-उलटते बचा। जब श्यामसुंदर ने इसका विरोध किया तो धक्का लगानेवाला जवान गंदी गालियां निकालते हुए श्यामसुंदर की छाती पर अपने स्टेनगन का कुंदा मारने लगा। यह देखकर वंदना चीख मारकर अपने भाई के पास दौड़ी और जवान के अनेक वारों को अपने ऊपर लेती हुई गुस्से एवं अपमान से छटपटाते श्यामसुंदर को अलग खींच ले गई।

जवानों के अपने-अपने स्थान पर खड़े होते ही, लगभग एक डर्जन मोटरों का काफिला हवाई अड्डे के पोर्च पर आ रुका। उन गाड़ियों से अनेक खद्दरदारी नेता और उनके सफारी सूटवाले सचिव उतर पड़े। सचिवों के हाथों में बड़ी-बड़ी फूलमालाएं थीं।

तभी रनवे से लौंज की ओर खुलनेवाले निकास द्वार से बहुत से वर्दीदारी सुरक्षा-कर्मचारियों के घेरे में एक रौबदार पुरुष निकला आया। उसकी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था। उसकी तंदुरुस्त सी देह पर खादी के वस्त्र थे। सिर पर गांधी टोपी थी।

इसके प्रकट होते ही मोटर काफिले से उतरे लोग नारे लगाने लगे, "पूज्य रक्षामंत्री ब्रजमोहन सहाय की जय हो!"

"जनता के दुलारे ब्रजमोहन सहाय जिंदाबाद!"

फिर खद्दरदारी नेता अपने सचिवों से फूलमालाएं लेकर एक-एक करके आगे बढ़े और विदेश यात्रा से लौटे जनता के दुलारे पूज्य रक्षामंत्री ब्रजमोहन सहाय को माला पहनाकर घुटनों तक झुककर प्रणाम कर-करके लौटने लगे। कुछ ने तो उसके सामने साष्टांग प्रणाम भी किया।

ब्रजमोहन बनावटी मुस्कुराहट से अपनी आवभगत को स्वीकारता और महात्मा बुद्ध के समान अपनी हथेली फैलाकर उन्हें आशीर्वाद देता रहा।

थोड़ी ही देर में ये सब लोग काफिले की मोटरों में सवार हो गए। आगे-आगे फौज के दो मोटरसाइकिल सवार साइरन बजाते हुए चल पड़े। उनके पीछे एक-एक करके मोटरें चलने लगीं।

मोटरों के दोनों ओर भी सैनिकों की मोटरसाइकिलें थीं।

उधर इस काफिले का साइरन बज रहा था, इधर हवाई अड्डे के लौंज के एक कोने पर से विलाप के स्वर उठ रहे थे। श्यामसुंदर की मां व्हीलचेयर में लेटे अपने मृत पति से चिपटकर दहाड़ मार-मारकर रो रही थी। वंदना अपनी मां से लिपटी उसके क्रंदन से अपने विलाप के स्वर मिला रही थी। श्यामसुंदर पास खड़े धीरे-धीरे सुबक रहा था।

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