Thursday, August 06, 2009

मुहावरे और शारीरिक चेष्टाएं

बिना बोले बातचीत - 3
बिक्री कर्मचारी अपने ग्राहक को कोई चीज बेच पाता है या नहीं, यह ग्राहक पर उसके अच्छा प्रभाव डालने पर निर्भर करता है। चूंकि उसे ग्राहक से काम निकालना होता है, इसलिए उसमें उसके प्रति दैन्य भाव जागाना फायदेमंद हो सकता है। इसके लिए वह ग्राहक से झुक-झुककर बोल सकता है, बार-बार हाथ-जोड़ सकता है और ऐसा अभिनय कर सकता है कि वह हर बात में ग्राहक से निम्न दर्जे का है। इससे ग्राहक में दया भाव जग जाएगा और वह बेची जा रही वस्तु आवश्यक न होने पर भी खरीद लेगा।

यदि बिक्री कर्मचारी ग्राहक की शारीरिक चेष्टाओं के अध्ययन से यह समझ सके कि उसके मनोभाव, स्वभाव आदि कैसे हैं, तो उसी के अनुरूप बातचीत करके उसे बहका कर उसे सामान बेच सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे शरीर की अनेक चेष्टाओं से हमारे मन की बात स्पष्ट होती है। उदाहरण के लिए व्याकुल अवस्था में हम पैरों को निरंतर हिलाते हैं, माथे से पसीना बारबार पोंछते हैं, बारबार कमीज का कालर ठीक करते हैं अथवा हाथ मलते रहते हैं। खुशी में हम अपनी मुट्ठियां हवा में उछालते हैं। निराशा जाहिर करते हुए हम एक हाथ की मुट्ठी को दूसरे हाथ की हथेली में मारते हैं। गुस्से में हम बहुधा दांतों को उभाड़कर पीसने लगते हैं। हमारी आंखें लाल हो जाती हैं तथा मुट्ठियां भींच जाती हैं। पैरों को जोर से पटकर हम गरज पड़ते हैं। ये सब चेष्टाएं हम अनायास ही करते हैं। हमारी भाषाओं के अनेक मुहावरों में इन चेष्टाओं को चित्रित किया गया है, जैसे, आंखें लाल होना, आंखे तरेरना, हाथ पर हाथ धरकर बैठना, नाक-भौं सिकोड़ना, आदि।

4 Comments:

Science Bloggers Association said...

Muhavron ka sundar prayog.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम तो 30 बरस की वकालत में इन दोनों का इस्तेमाल कर के भी अपनी प्रतिभा को बेचना नहीं सीख पाए। कमीशन और इस में जोड़ दिया जाता तो ठीक था।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हां जी, बाडी लैंग्वेज तो एक अहम अंग है लोगों को समझने का:)

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

'हाथ झाड़ कर चल देना' तो भूल ही गए ?

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