Thursday, March 26, 2009

प्रधान मंत्री राम

यह प्रहसन कुछ वर्ष पहले लिखा था। पर परिस्थितियां आज वैसी ही हैं, इसलिए पाठक उससे आसानी से रिलेट कर सकेंगे। कुछ पदों पर नए लोग आ गए हैं, पर अधिकांश वे ही पुराने चले आ रहे हैं। चुनावी माहौल के लिए उपयुक्त समझकर इसे जयहिंदी में दे रहा हूं।

पात्र
सूत्रधार, राम, हनुमान, वानर सेना, नरसिंह राव, मनमोहन सिंह, स्पीकर, सीता, अटल बिहारी वाजपेयी, मजदूर नेता, साध्वी रीतंबरा, टी एन शेषन, लक्ष्मण

सूत्रधारः गुजरात के वाघेला कांड के बाद भारतीय जनता पार्टी के साफ-सुथरे, अनुशासित पार्टी होने की छवि मिट्टी में मिल गई। हवाला कांड में उसके राम श्री लाल कृष्ण आडवाणी शहीद हुए। भाजपा को चुनाव जीतने के कम आसार नजर आने लगे। सोच-विचार कर उसने तय किया कि स्वयं भगवान राम ही उसे उभार सकते हैं। बहुत जोर दिए जाने पर राम भाजपा की बागडोर संभालने के लिए राजी हुए। कहना न होगा कि भगवान राम के नेतृत्व में पार्टी विजयी हुई और केंद्र में भाजपा की सरकार बनी और बने देश के नए प्रधान मंत्री राम। इस नए अवतार में भगवान राम ने दरबार बुलाई और अपने चुनावी वादों को लागू करने के उपायों पर विचार करने लगे।

रामः चुनावों के समय हमने अवधवासियों, न न माफ करना भाइयो, पुरानी बात कह गया। हां भारतवासियों से वादा किया था कि हम देश के सभी वृद्ध लोगों को पेंशन देंगे। मैं समझता हूं कि हमारा पहला काम इस स्कीम को लागू करना होना चाहिए। रावण के साथ युद्ध में मेरे साथ लड़े बहुत से प्रिय वानरों को, खासकर हनुमान को, इससे लाभ मिलेगा।

हनुमानः धन्यवाद राम। बोलो श्री राम चंद्र की जय!

(वानर सेना राम जय का नारा बुलंद करती है और गाती हैः
हम तो आपके दीवाने हैं
बड़े मस्ताने हैं, आह ओह....
आपके दीवाने का गाना)


रामः (राव से) भूतपूर्व प्रधानमंत्री और विपक्षी दल के नेता की हैसियत से इसके बारे में तुम्हारी क्या राय है राव?

रावः राम, आप अब समस्त भारत के नेता हैं। आपको सिर्फ अवध या अपने निजी समर्थकों की नहीं सोचनी चाहिए। मैंने और मेरे यह साथी मनमोहन सिंह ने पिछले पांच सालों में जो उदार नीतियों का सूत्रपात किया था, उन्हीं को आप आगे बढ़ाएं तो अच्छा।

(भूतपूर्व वित्तमंत्री मनमोहन सिंह राव का समर्थन करते हुए बहुत उद्विग्नता से कहते हैं।)

मनमोहन सिंहः प्राधान मंत्री राम, इस तरह के पोपुलिस्ट कदमों से पिछले पांच वर्षों में मेरी सरकार ने उदारीकरण के लिए जो भगीरथ प्रयत्न किया था उस पर पानी फिर जाएगा। हनुमान, जांबवान आदि चिरंजीवी हैं। जन्म-जन्मांतर तक पेंशन खाते रहेंगे और देश का दीवाला पिट जाएगा।

हनुमानः अबे मनमोहन सिंह के बच्चे, राम का विरोध करता है। अभी मैं तुझे ठीक करता हूं।

(हनुमान गदा लहराते हुए सिंह साहब के पीछे भागते हैं, जो जान बचाए राव के पीछे छिपते हैं। राव अपने वित्तमंत्री की रक्षा करते हुए यह गाना गाने लगते हैं:
लोगो न मारो उसे, ये तो मेरा दिलदार है...
स्पीकर महोदय बड़ी मुश्किल से हनुमान की गदा छिनवाते हैं और उन्हें शांत करते हैं।)


सीताः स्वामी, एक सुझाव मेरा भी है।

रामः हां, प्राण प्रिय सीते, हम सुन रहे हैं।

सीताः नाथ, सबसे पहले इन अत्याचारी, चुगलखोर धोबियों से निपटिए। पहले अवतार में इनके बहकावे में आकर आपने मुझ पर बहुत जुल्म ढाए थे। अब आप प्रधान मंत्री हैं और यह नारी मुक्ति का जमाना है। नारी विरोधी होने का जो कलंक आपके चरित्र के साथ जुड़ गया है, उसे धोने का यही सुअवसर है। इन धोबियों को देशनिकाला नहीं तो कोई अन्य कड़ी सजा अवश्य मिलनी चाहिए। इससे आप नारियों में बहुत लोकप्रिय हो जाएंगे।

(सीता की बात सुनकर अटल बिहारी वाजपेयी व्यंग्यपूर्ण ढंग से हंस पड़ते हैं जिसे देखकर राम कुछ-कुछ चिढ़ उठते हैं।)

रामः क्यों अटल, तुम्हें कुछ कहना है?

अटलः सीता जी के बहकावे में न आएं राम! आप गृहस्थों को यह बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ती है। आप तो बस पत्नी जी के गुलाम भर होते हैं। भगवद कृपा से मैं इस दुर्दशा से अब तक बचा हुआ हूं, कुंवारा जो हूं। इस देश की अवनति में पत्नियों का बड़ा हाथ रहा है। आप स्वयं भुक्त-भोगी हैं। दशरथ-पत्नी कैकेयी के कारण ही तो आपको वनवास हुआ था। अब आपकी अर्धांगिनी आपको गलत सलाह दे रही हैं।

रामः वह कैसे अटल?

अटलः बात बहुत सीधी है राम। परंतु आप सामंती लोगों को लोकतंत्र की इतनी मोटी बात भी बड़ी मुश्किल से समझ आती है। धोबी अनुसूचित जातियों में आते हैं जिनकी इस देश में 50 प्रतिशत आबादी है। उनके विरुद्ध कोई कदम उठाने का मतलब है सत्ता से हाथ धोना। अब देखिए न, आपको गाली देने वाले कांशी राम और मायावती से हमें उत्तर प्रदेश में दुमछल्ला होना पड़ा था। राजनीति में अपना उल्लू सीधा करने के लिए गधे को भी बाप बनाना पड़ता है। इसलिए सीता की बात दर किनार कीजिए। कहीं कांशी राम ने सुन लिया तो आफत आ जाएगी। अपना हाथी दौड़ाकर नए खिले कमल को दुबारा कीचड़ में रौंद देगा। उसको बस एक मुद्दा चाहिए। आपको धोबियों के लिए कोई वेलफेयर कार्यक्रम घोषित करना चाहिए। इससे भी अच्छा आप किसी धोबी को उप प्रधान मंत्री बना लें। मेरा निजी धोबी बड़ा होनहार है। कहो तो उससे बात चलाऊं।

रामः (घृणा से) क्या! एक धोबी मेरी बराबरी करेगा!

अटलः हां राम। यही लोकतंत्र है।

रामः (निराश स्वर में) यह लोकतंत्र तो रावण से भी विकराल राक्षस मालूम पड़ता है।

(एक मजदूर नेता बहुत गुस्से में सदन में प्रवेश करता है।)

रामः यह कौन है?

एक सचिवः स्वामी, यह साम्यवादी दल का सदस्य और एक खूंखार मजदूर नेता है।

मजदूर नेताः राम आपके प्रधान मंत्री बने पूरे दस दिन हो गए। अब तक फिफ्त पे कमिशन की रिपोर्ट लागू नहीं हुई है। यह तो हद है। अब हम देख लेंगे आपको भी। यदि दो दिन में आपको घुटने पर नहीं लाया तो मेरा नाम नहीं। कल से देश भर में चक्का जाम किया जाएगा। सभी दफ्तर बंद। अस्पताल बंद। हम आपकी सरकार गिराकर ही रहेंगे। ऐसी निकम्मी सरकार हमें नहीं चाहिए।

रामः (घबराकर) अरे भाई जरा शांत हो जाओ। मैं इस रोल में नया हूं। यह फिफ्त पे कमिशन क्या बला है। जरा समझाओ तो।

मजदूर नेताः पिछले पांच वर्षों से कर्मचारियों की पगार नहीं बढ़ी है। इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है।

रामः पगार? वह क्या होती है?

एक सचिवः भगवन, काम करने के बदले लोगों को पैसे दिए जाते हैं, जिसे पगार कहते हैं।

रामः यह सब लगता है नया शुरू हुआ है। मेरे समय तो किसी को कोई पगार नहीं मिलती थी। वरना मेरे जैसा निर्धन वनवासी दौलतशाली रावण का मटियामेट कैसे कर पाता। लाखों-करोड़ों वानरों को मैंने एक पैसा भी नहीं दिया। वे मेरे प्रति अपनी श्रद्धा से सभी कष्ट झेलते गए। प्राण भी गंवा दिए।

मजदूर नेताः क्या कहा, वानरों से बेगार करवाया? यह तो मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है। काश यह बात चुनावों से पहले हमें मालूम होती। फिर देखता आप कैसे चुनाव जीतते। जिसका दामन इतने बड़े धब्बे से काला हो, वह चुनाव जीत ही नहीं सकता, भगवान ही क्यों न हो वह।

(मजदूर नेता भौचक्का-सा कुछ बड़बड़ता हुआ सदन से निकल जाता है।)

मनमोहन सिंहः इन यूनियन लीडरों को देखते ही मुझे कुछ होने लगता है, मानो शरीर पर बिच्छू रेंग रहे हों। खैर वह कंबख्त गया सो अच्छा हुआ। चलो अब कुछ काम की बात करें। उदारीकरण के विषय में आपकी सरकार की क्या नीति रहेगी राम, क्या आप विदेशी कंपनियों को भारत में आने देंगे या उन पर पाबंदियां लगाएंगे?

(राम के लिए यह विषय नया था। वे बगले झांकने लगे। पर साधवी रीतंबरा ने राम के कष्ट को भांप कर स्थिति को संभाल लिया। वह यह गाना गाने लगी:
मेड़ इन इंडिया
दिल खोल कर कहो मेड इन इंडिया...)


साध्वीः थोड़े शब्दों में मनमोहन, इस विषय में हमारी पार्टी की नीति यही है। जो चीज भारत में बनी है, वह भारत में बिकेगी। बाकी चीजें नहीं। समझे? हम देश की संपत्ति को विदेशियों के हाथों लुटाने नहीं सत्ता पर आए हैं।

मनमोहनः मगर मैडम, भारत सब चीजें तो नहीं बनाता। उन चीजों का क्या जो यहां नहीं बनतीं।

रामः मनमोहन, तुमने शायद महाभारत नहीं पढ़ा है। उसमें लिखा है, जो चीज इसमें नहीं है, वह इस दुनिया में नहीं है। जो चीज दुनिया में है, वह इस महाग्रंथ में है। इसलिए मैं नहीं मानता कि ऐसी कोई चीज है जो भारत नहीं बनाता या बना सकता।

मनमोहनः मगर राम वह सब तो दो हजार साल पहले की बात है। अब तो दुनिया बदल चुकी है...

(वे अपनी बात पूरी नहीं कर पाए। तभी मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन सदन में प्रवेश करते हैं।)

रामः आओ शेषन, कैसे आना हुआ। निर्वाचन आयोग में तो शांति है न?

टी एन शेषनः हे जगदीश्वर राम, तीनों लोकों के स्वामी! मेरा प्रणाम ग्रहण करें। मुख्य चुनाव आयुक्त होने के नाते मुझे ऐसे अनेक काम करने पड़ते हैं जो मुझे बहुत अप्रिय होते हैं। ऐसा ही एक अप्रिय काम लेकर मैं आपके पास आया हूं। कृपानिधान, मुझे क्षमा करें।

रामः क्षमा किस लिए शेषन। कहो क्या काम है?

शेषनः मैं एक बार फिर क्षमा मांगता हूं राम। पर खेद के साथ कहता हूं कि आपका चुनाव रद्द कर दिया गया है और आप अब प्रधान मंत्री नहीं रहे।

रामः क्या! चुनाव रद्द कर दिया! प्रधान मंत्री नहीं रहा! क्या मतलब है तुम्हारा?

शेषनः चुनावी अभियानों में आपने धार्मिक प्रतीकों का उपयोग किया था। यह संविधान के अनुसार गैरकानूनी है। इसलिए मुझे आपके चुनाव को रद्द करना पड़ा है।

रामः हा शेषन, तुम तो घर के भेदी निकले। वैंकुंड में क्षीर सागर में शेषनाग की गोदी में लेटकर मैं परम आनंद और सुरक्षा का अनुभव करता था। यहां तुम शेष नामधारी ने मुझ पर यों घात किया! निर्दयी! जयचंद! कलियुग! घोर कलियुग!

शेषनः प्रभु यह लोकतंत्र है। लोकतंत्र में व्यक्ति नहीं संस्था और कानून प्रमुख होते हैं। लोकतंत्र का सबसे मजबूत खंभा निर्वाचन आयोग है। उस आयोग का सबसे मजबूत खंभा मैं हूं, हां मैं शेषन! मैं आपसे भी, मेरा मतलब है प्रधान मंत्री से भी, शक्तिशाली हूं। यही लोकतंत्र है, लोकतंत्र यानी शेषन तंत्र। हा हा हा हा...

रामः (उदास स्वर में) यह लोकतंत्र का गणित मेरे पल्ले बिलकुल नहीं पड़ता। चलो लक्षमण, चलो सीते, एक बार फिर वनवास के लिए तैयार हो जाओ। हमें राजगद्दी फिर छोड़नी पड़ेगी।

(राम यह गाना गाते हुए प्रस्थान करते हैं:
हम छोड़ चले हैं महफिल को
याद आए तो मत रोना...)


(समाप्त)

2 Comments:

अजित वडनेरकर said...

आप शब्दों के सफर पर आए, अच्छा लगा। आपकी सभी टिप्पणियां हिन्दी के प्रति आपकी गहन अभिरुचि दर्शाती हैं। बने रहिए सफर के साथ। आपके प्रहसन का प्रिंट निकाल लिया है। आराम से पढ़कर इत्मीनान से प्रतिक्रिया दूंगा।
साभार
अजित

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर। शानदार व्यंग्य।

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