पेशावर हत्याकांड के बाद पाकिस्तान में इस हत्याकांड के असली कर्ता-धर्ताओं को छिपाने और पाकिस्तानी फ़ौज और ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के साथ इन हत्यारों की साँठगाँठ पर पर्दा डालने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। इसमें सर्वोच्च स्तर के नेता, फ़ौजी अफ़सर, मीडिया के लोग और आतंकी सब शामिल हो गए हैं।
पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ़ और विपक्षी नेता इमरान ख़ान दोनों इस हत्याकांड की निंदा करते हुए बड़ी सफ़ाई से तालिबान का नाम लेने से कन्नी काट गए, हालाँकि तालिबान के प्रवक्ता ने हत्याकांड के तुरंत बाद इस हत्याकांड की ज़िम्मेदारी क़बूल करते हुए कह दिया था कि यह पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा उत्तरी वज़ीरिस्तान में सैकड़ों बच्चों सहित अनगिनत मासूम पख्तूनों की हत्या करने का बदलना लेने के लिए किया गया है।
पाकिस्तान में हुए आम चुनावों में तालिबान ने नवाज़ शरीफ़ और इमरान ख़ान दोनों को ही अधिक सीटें जीतने में मदद की थी क्योंकि उन्होंने उनके विरोध में खड़े हुए बेनज़ीर भुट्टो और आसिफ़ ज़रदारी की पाकिस्तान पीपुल्क पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार के दौरान चुन-चुनकर मार डाला था। नतीज़ा यह हुआ कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी खुलकर चुनाव प्रचार नहीं कर पाई और केवल सिंध तक सिमटकर रह गई जहाँ उसका अब भी थोड़ा-बहुत वर्चस्व है। इससे नवाज़ शरीफ़ को पाकिस्तानी संसद में अप्रत्याशित बहुमत मिल सकी और इमरान ख़ान भी खैबर-पख्तून ख्वाह प्रांत में बहुमत हासिल कर सके।
निश्चय ही इसके बदले इन दोनों ही पार्टियों ने तालिबान के साथ परोक्ष समझौता किया होगा। इमरान ख़ान तो पहले से ही तालिबान समर्थक रहे हैं और पाकिस्तान में शरीयत लागू करने की निरंतर वकालत करते हैं। इसलिए अब इनके लिए तालिबान की निंदा करना ज़रा कठिन है। यही कारण है कि नवाज़ शरीफ़ और इमरान ख़ान ने अपने वक्तव्यों में तालिबान पर सीधा आक्षेप नहीं किया।
यह भी ध्यान रहे कि नवाज़ शरीफ़ ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में तालिबान के विरुद्ध फ़ौजी कार्रवाई को टालने के लिए हर संभव प्रयास किया था और इसे तभी होने दिया जब इमरान ख़ान और कनाडाई मौलवी कादरी के मिले-जुले पैंतरे ने उसके हाथ कमज़ोर कर दिए और उसे अपनी गद्दी बचाने के लिए पाकिस्तानी फ़ौज से समझौता करना पड़ा। इस समझौते के तहत वज़ीरिस्तान में फ़ौजी कार्रवाई के लिए हरी झंडी देना भी शामिल था। यह हरी झंडी मिलते ही पाकिस्तानी फ़ौज और अमरीका के ड्रोन विमान वज़ीरिस्तान पर टूट पड़े और हज़ारों लोगों को मार डाला। इनमें से मुट्ठी भर लोग ही वास्तव में तालिबान के लड़ाकू थे, बाकी सब मासूम लोग थे। इस सबका मीडिया में उतना खुलासा नहीं हुआ क्योंकि पाकिस्तानी फ़ौज ने मीडिया को वज़ीरिस्तान में घुसने ही नहीं दिया है। इसके विपरीत पेशावर हत्याकांड को पूरा मीडिया कवरेज प्राप्त हुआ जिससे ऐसी धारणा विश्व भर में फैल गई कि तालिबान वहशी हैं, पर यह पूरा सत्य नहीं है। दरअसल पाकिस्तानी फ़ौज ने भी वज़ीरिस्तान में इतना ही या इससे कहीं अधिक वहशीपन दिखाया है, और इसी का बदला तालिबान ने पेशावर में पाकिस्तानी फ़ौजियों के बच्चों को मारकर लिया।
कहने का मतलब यह है कि पेशावर हत्याकांड की एक लंबी-चौड़ी पृष्ठभूमि है और उसे मात्र एक आतंकी हमला मानना ठीक नहीं होगा।
यह सब होते हुए भी, पेशावर हत्याकांड ने पाकिस्तानी जनता को झकझोर डाला है, और उनके मन में अनेक कठिन सवाल उठ रहे हैं, और तालिबान और पाकिस्तानी फ़ौज, आईएसआई, और पाकिस्तानी नेताओं के बीच जो साँठगाँठ है वह पाकिस्तानी जनता को समझ में आने लगा है। यदि जनता पूरी तरह इन संबंधों को समझ जाए, तो यह पाकिस्तान के लिए बड़ी समस्या बन सकती है क्योंकि पाकिस्तान का अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग जाएगा। पाकिस्तान को इस्लामी मुल्क के रूप में अभिकल्पित किया गया है और उसका सीधा सरोकार वहाँ की जनता की खुशहाली या उनके दुखों-कष्टों को दूर करने से नहीं है। यही कारण है कि वहाँ देश की अधिकांश संपदा को फ़ौज को पुष्ट करने और अफ़गानिस्तान और भारत में अनावश्यक हस्तक्षेप करने में खर्च किया जाता है।
इसलिए यह ज़रूरी है कि जल्द ही पेशावर हत्याकांड के असली स्वरूप पर पर्दा डाला जाए। इसका आजमाया हुआ नुस्खा भारत या अमरीका को पाकिस्तान में हो रहे सभी नापाक कामों के लिए ज़िम्मेदार ठहराना है। और यही हथकंडा इस बार भी अपनाया गया है।
पेशावर हत्याकांड अभी चल ही रहा था कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और फ़ौजी तानाशाह मुशर्रफ़ ने एक टीवी चैनल को इंटर्वयू देते हुए कह दिया कि पेशावर हमले के पीछे भारत का हाथ है और पाकिस्तानी फ़ौज को भारत को मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए। इससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान में जब भी कोई आतंकी घटना घटती है, तो इसकी ज़िम्मेदारी भारत के मत्थे मढ़ने के लिए वहाँ किसी भी प्रकार के प्रमाण या सबूत की आवश्यकता नहीं होती है। यह वहाँ की मीडिया, स्तंभ लेखक, अख़बार, नेता, आतंकी सब की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। ऐसा करके वहाँ की जनता में भारत के प्रति नफ़रत की भावना भड़काई जाती है, जिसके बिना पाकिस्तान के अलग अस्तित्व का कोई औचित्य ही नहीं बनता है।
उधर हाफ़िज साईद, जिसने मुंबई में पेशावर के जैसा ही हत्याकांड आयोजित कराया था, और जिसके लिए उसे पाकिस्तान में हीरो की तरह पूजा जाता है, एक बड़ी प्रेस सम्मेलन बुलाकर वक्तव्य दे दिया कि पेशावर हमले के पीछे भारत का हाथ है और यह भारत की सोची-समझी साजिश है क्योंकि यह हमला ठीक उस दिन (दिसंबर 15) को किया गया है जिस दिन भारत ने 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करके पूर्वी पाकिस्तान में बंग्लादेश का निर्माण करा दिया था। हाफ़िज़ ने यह भी कहा कि इसका बदला कश्मीर को भारत से छीनकर लिया जाएगा।
पाकिस्तान के अनेक पत्रकारों ने भी इस तरह की अफ़ावाएँ फैलाते हुए पेशावर हमले का ज़िम्मा भारत पर डालना शुरू कर दिया है। वे चाहते हैं कि पाकिस्तानी जनता का रोष तालिबान और उनके आका पाकिस्तानी फ़ौज और आईएसआई और तालिबान के समर्थक नेताओं और राजनीतिक पार्टियों पर न उमड़े और उसे सुरक्षित मार्गों की ओर मोड़ दिया जाए, अर्थात भारत की ओर मोड़ दिया जाए।
पर इस बार उनका काम अधिक मुश्किल है, क्योंकि एक तो स्वयं तालिबान ने इस हत्याकांड की ज़िम्मेदारी क़बूल कर ली है और उसे वज़ीरिस्तान में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा मारे गए सैकड़ों मासूम बच्चों और औरतों का बदला बताया है।
इसके अलावा अब इस हत्याकांड को अंजाम देनेवाले लड़ाकों द्वारा अफ़गानिस्तान में बैठे अपने आकाओं के साथ हुए वार्तालाप की रेकॉर्डिंग भी प्राप्त हो चुका है, जिसमें वे अपने आकाओं से पूछ रहे हैं कि हमने यहाँ सारे बच्चों को मार दिया है अब हमें क्या करना है। उधर से जवाब आता है कि अपने आपको बम से उड़ा लेने से पहले पाकिस्तानी फ़ौज को आने दो ताकि बम धमाके में पाकिस्तानी फ़ौज के सिपाही भी बड़ी संख्या में मरें।
इन सब तथ्यों को मद्दे नज़र रखते हुए ही अनेक भारतीय प्रेक्षकों का मानना है कि आंतिकियों का उपयोग अफ़गानिस्तान और भारत में राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करने की पाकिस्तानी फ़ौज और आईएसआई की नीति पेशावर हत्याकांड के बाद भी ज़रा भी नहीं बदलेगी।
पाकिस्तान अफ़गानी तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों का उपयोग अफ़गानिस्तान में तबाही मचाने और पाकिस्तानी तालिबान और हाफ़िज़ साईद के लश्कर-ए-तोइबा और जमात-उद-दवा का उपयोग कश्मीर और भारत में आतंक फैलाने के लिए करता है। इनके ज़रिए वह भारत के साथ सामरिक संतुलन स्थापित करने के सपने देखता है और अफ़गानिस्तान में अपने अनुकूल तालिबानी कठपुतली सरकार स्थापित करने के मंसूबे बाँधता है।
पर पेशावर हमले ने दिखा दिया है कि तालिबान कठपुतले कम और दुर्दांत और वहशी लड़ाकू हैं जो समस्त पाकिस्तान को ही लील जाने की क्षमता रखते हैं। अमरीका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान के संबंध में सही ही कहा है कि जो लोग अपने घर में इस इरादे से ज़हरीले साँप पालते हैं कि वे उनके पड़ोसियों को डसेंगे, देर-सबेर स्वयं ही इन विषधरों द्वारा डस लिए जाते हैं।
3 Comments:
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