tag:blogger.com,1999:blog-33823237.post7280796688892333483..comments2024-02-20T15:42:24.227+05:30Comments on जयहिंदी: क्या ब्लोग साहित्य है?बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-23172690795248192232009-07-13T16:44:56.896+05:302009-07-13T16:44:56.896+05:30दरसल यह पूरा मामला कुछ इस तरह सोच रखने वालों की वज...दरसल यह पूरा मामला कुछ इस तरह सोच रखने वालों की वजह से पैदा हुआ की "कागज में छ्पना साहित्य होने का मापदन्ड है जो की निहायत ही गलत है । यदि कोई पूरी ब्लॉगिंग को सिरे से खारिज करता है तो इस तरह की प्रतिक्रियायें स्वाभाविक है ।<br /><br />झगडा यदि माध्यम के लिये है तो गलत है । यह सब विवाद मुद्दे का सामान्यीकरण करने की वजह से पैदा हुआ है । अच्छी सामग्री हर जगह अच्छी है । ना कोई ब्लॉगर होने की वजह से हल्का हो जाता और ना ही कोई कागज में छपने की वजह से वजनी । <br /><br />यदि पीले कागज पर छपने वाले ब्लॉगरों के प्रति दुराग्रह्पून होंगें तो ऐसा होना स्वाभाविक है ।अर्कजेशhttp://www.arkjesh.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-52654811781771998542009-07-11T12:46:26.956+05:302009-07-11T12:46:26.956+05:30अजित वडनेरकर said...
बालाजी,
बढ़िया पोस्...अजित वडनेरकर said...<br /><br /> बालाजी,<br /> बढ़िया पोस्ट है। सच तो यह है कि जो काग़ज़ पर अच्छा है वो ब्लाग पर भी अच्छा। आज भी कई ब्लागर साथी काग़ज़ पर लिखी जा चुकी स्थायी महत्व की इबारतों को ब्लाग पर डाल ही रहे हैं। मसलन मुक्तिबोध, तुलसी, परसाईं, शरद जोशी, अमृता प्रीतम और भी कई लेखकों-साहित्यकारों के प्रशंसक इनमें शामिल हैं। इसी तरह ब्लाग पर लिखी सामग्री भी यकीनन पुस्तकाकार आ रही हैं। स्थायी महत्व की सामग्री हमेशा पुस्तकाकार पढ़ने में ही तसल्ली देती है। ब्लाग तो सिर्फ एक जरिया है।<br /><br /> एमएसवर्ड के जरिये लिखने और ब्लागर के जरिये पब्लिश कर देने से लेखन में कोई अतिरिक्त गुणवत्ता नहीं जुड़ जाती। ब्लागजगत भी उसी बुराई का शिकार है जिसका ब्लागेतर बहुसंख्यक हिन्दी समाज रहा है। जल्दबाज लेखन। प्रिंट में जल्दबाज लोगों पर फिल्टर लगता रहा है। उनकी रचनाओं को अस्वीकृत कर उन्हें खुद में परिष्कार पैदा करने की ललक पैदा की जाती रही है। कई बार लौटाने के बाद जब उनकी रचनाएं प्रकाशित हुईं तब उन्हें संपादकीय कौशल से निखारी गई खूबियों का आभास हुआ। आज ब्लाग के तौर पर जो भी लेखन सामने आ रहा है वह त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप है। उसमें कला और शिल्प का अभाव है। अगर यह साहित्य है तो इसकी एक अलग श्रेणी इस रूप में तो हमेशा ही होगी। अन्यथा यहां भी लिखनेवालों को मेहनत तो करनी ही पड़ेगी।<br /><br /> सिर्फ रामविलासजी द्वारा राहुलजी के बारे में बेबाक राय देने मात्र से क्या राहुलजी के समग्र योगदान पर प्रश्नचिह्न लगाना मैं उचित नहीं मानता। डॉ शर्मा भी एक विशिष्ट विचारधारा के रहे हैं। हर लेखक, साहित्यकार के अपने रुझान होते हैं। यशपाल के लेखन पर अज्ञेय अंगुलि उठाते रहे और अज्ञेय की तथाकथित क्रांतिकारिता और देशप्रेम पर यशपाल ने सशक्त सवाल खड़े किए। पर क्या इससे उनका साहित्य बेकार हो जाता है? राहुलजी ने बौद्धग्रंथों को तिब्बत से भारत लाकर भारतीय संस्कृति के इतिहास में जितना बड़ा काम किया है, वही उन्हें साबित करने के लिए काफी है। मैने राहुल जी का लगभग पूरा साहित्य पढ़ा है। देश के अहित जैसी कोई बात तो मुझे खटकी नहीं। रामविलासजी की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकें मेरे पास हैं। उल्लेखित पुस्तक जरूर मंगा कर पढ़ूंगा। राहुलजी ने जो भी लिखा है, बिना किसी निहित स्वार्थ के लिखा है। दृष्टिकोण तो सबका अलग अलग रहता है।<br /><br /> साभार,<br /> अजितअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-73133817461807092922009-07-10T23:44:32.716+05:302009-07-10T23:44:32.716+05:30डा अनुराग जी : इतने विस्तार से समझाने के लिए मैं आ...डा अनुराग जी : इतने विस्तार से समझाने के लिए मैं आपका आभारी हूं, और आपकी बातों से पूरी तरह सहमत भी हूं।<br /><br />साहित्य हमें तैयार करता है, और उसका हर उम्र में अलग-अलग अर्थ होता है, या यों कहिए, जैसे-जैसे हमारे अनुभव, समझ और विवेक बढ़ते जाते हैं, साहित्य की नई-नई परतें हमारे लिए खुलती जाती हैं।<br /><br />आपने यह बिलकुल सही कहा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-62031994536200227522009-07-10T19:47:42.052+05:302009-07-10T19:47:42.052+05:30एक ही कविता अलग अलग उम्र के दौर पे अलग अलग अर्थ क...एक ही कविता अलग अलग उम्र के दौर पे अलग अलग अर्थ की व्याख्या करती है ....धर्मवीर भारती का सत्रह की उम्र में पढ़ा हुआ" गुनाहों का देवता "अब शायद बचकाना लगे तब उसने किंतनी थ्रिल दी थी.....<br />मनीषा कुलश्रेष्ट जी ने कभी कही लिखा था ...<br />इन्टरनेट पे हिन्दी साहित्य के लिए कोई खास छलनी नहीं है ,कोई क्वालिटी कंट्रोल नहीं ,अभिव्यक्त करना कितना आसान की चार पंक्तिया लिखी ओर ठेल दी सच कहा था उन्होंने ...<br />किसी चीज को ड्राफ्ट करके लिखने .बार बार उससे गुजरने ओर अचानक मन में आई किसी अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त करने में कुछ फर्क तो होता ही है....एक ओर पेशेवर लेखक ओर दूसरी ओर कामकाजी दुनिया के गैर पेशेवर लेखक....फर्क तो होना लाजिमी है ....साहित्य दरअसल किसी समय का दस्तावेज है ओर एक सोच की खिड़की है जो एक नए आसमान में खुलती है...धूमिल के शब्दों में कहे तो <br /><br />अकेला कवि कटघरा होता है <br />ओर कविता <br />शब्दों की अदालत में <br />मुजरिम के कटघरे में खड़े <br />बेक़सूर आदमी का हलफनामा <br /><br />लेखक कुछ बदल नहीं सकता ,पर छटपटा सकता है ..आपकी आत्मा को जगाये रखने में मदद कर सकता है ...कुछ उपन्यास कुछ किताबे जप हम बचपन में पढ़ते है ..हमारी सोच को एक नया आयाम देते है .हम उससे सहमत हो या न हो...पर जीवन के एक पहलु से हम रूबरू होते जरूर है....प्रेमचंद्र की "मन्त्र "हो या रेनू की "मैला आँचल "...मंटो की "बाबा टेक सिंह "हो या भीष्म सहनी की "तमस" .....श्री लाल शुक्ल का "राग दरबारी "हो या मंजूर अह्तेषम का "सूखा बरगद "<br />सब आपको बड़ा करने में आपकी मदद करते है .....भले ही आप उसे माने या न माने ...<br />नेट एक चाभी है जिससे आप पल भर में दुनिया के दुसरे दरवाजे पे पहुँच जाते है ....ओर दो मिनटों बाद आपको प्रतिक्रिया भी मिल जाती है ...शायद संवाद का एक बेहतर जरिया ....पर यहाँ एक विचार की उम्र कम होती है चौबीस घंटे ...या शायद कुछ ज्यादा .......जाहिर है इसके नुकसान भी है फायदे भी....जिस तरह साहित्य में सब कुछ अच्छा नहीं होता वैसे ही ब्लॉग में सब कुछ लिखा अच्छा नहीं होता .आप अपने स्तर का अपनी पसंद का ढूंढ ही लेते है .....<br />वाही कीजिये .इन्तजार कीजिये .शायद भविष्य ओर बेहतर हो......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-43735903510807618312009-07-10T19:29:31.269+05:302009-07-10T19:29:31.269+05:30रंजन जी : इसका अधिक विस्तार से जवाब अपेक्षित है, अ...रंजन जी : इसका अधिक विस्तार से जवाब अपेक्षित है, अलग पोस्ट में।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-29388655210051541162009-07-10T19:28:51.324+05:302009-07-10T19:28:51.324+05:30डा गुप्ता जी, आपकी बात से सहमत हूं।डा गुप्ता जी, आपकी बात से सहमत हूं।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-1772765828000140802009-07-10T19:27:52.697+05:302009-07-10T19:27:52.697+05:30अंशुमाली रस्तोगी जी : क्या तुलसी, निराला, प्रेमचंद...अंशुमाली रस्तोगी जी : क्या तुलसी, निराला, प्रेमचंद, अमृतलाल नागर, नागार्जुन, प्रसाद आदि बहुतेरे साहित्यकार लंपट और गंदे थे?<br /><br />यदि साहित्य कूड़ा बन गया है, तो कूड़ेदान में वेद, महाभारत, रामायण, और न जाने कितने और अमूल्य रत्न नजर आएंगे, और कूड़ा इतना बेशकीमती हो जाएगा, कि कूड़े की परिभाषा ही बदल जाएगी!बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-11529984655571021542009-07-10T17:54:04.113+05:302009-07-10T17:54:04.113+05:30डा. अमर कुमार : ब्लोग से मेरा मतलब माध्यम से नहीं,...डा. अमर कुमार : ब्लोग से मेरा मतलब माध्यम से नहीं, बल्कि उस माध्यम में जो प्रकाशित हो रहा है, उससे है। क्या वह साहित्य है, यह प्रश्न है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-75517631117789756472009-07-10T17:49:42.267+05:302009-07-10T17:49:42.267+05:30भारतीय नागरिक : राहुल सांस्कृत्यायन के साहित्य को ...भारतीय नागरिक : राहुल सांस्कृत्यायन के साहित्य को इसलिए नहीं खारिज करना है कि वे सोवियत संघ के प्रति झुकाव रखते थे या बौद्ध धर्म के पक्षपाती थे, पर इसलिए करना उचित है कि उसमें अवैज्ञानिक बातें हैं, अहितकारी बातें हैं और राष्ट्र के लिए घातक बातें हैं।<br /><br />मैंने अपने लेख में केवल एक दूसरे विद्वान, डा. रामविलास शर्मा, की पुस्तक, इतिहास दर्शन (प्रकाशक राजकमल प्रकाशन, दिल्ली) द्वारा राहुल जी की रचनाओं की जो समालोचना लिखी है, उसका सारांश भर दिया है। इस पुस्तक में डा. शर्मा ने बड़े ब्योरे से दिखाया है कि राहुल जी की पुस्तकों में (दर्शन-दिग्दर्शन उनके यात्रावृत्तांत, उपन्यास, कहानी आदि) में किस तरह देश के लिए अहितकारी धारणाएं भरी पड़ी हैं। आपसे अनुरोध है कि इतिहास दर्शन पढ़कर इस विषय पर अपना मत बनाएं। <br /><br />कभी जयहिंदी में इस विषय पर और विस्तार से लिखने की कोशिश करूंगा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-46227710115546888442009-07-10T15:38:49.227+05:302009-07-10T15:38:49.227+05:30राहुल जी का लिखा हुआ बहुत रोचक है, बहुत सुन्दर है,...राहुल जी का लिखा हुआ बहुत रोचक है, बहुत सुन्दर है, कोई भी व्यक्ति पूर्णत: निरपेक्ष नहीं हो सकता, लेकिन इसके लिये उनके लिखे को खारिज भी नहीं किया जा सकत. सोवियत संघ के प्रति झुकाव या बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव होने के कारण यदि उनके साहित्य में कुछ पक्षपात भी है तो इस आधार पर खारिज तो नहीं किया जा सकता. रही बात व्लोग की, तो यह एक बहुत बड़ा और अच्छा साधन है, जिसे अच्छा लगे वह उसे पढ़े न अच्छा लगे तो छोड़ दे.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-90834790158035944572009-07-10T15:02:47.133+05:302009-07-10T15:02:47.133+05:30आपके विचार पढ़े।
इस पर हमने अपने विचार लिखे थे। -
...आपके विचार पढ़े।<br />इस पर हमने अपने विचार लिखे थे। - <br />http://pasand.wordpress.com/2008/04/14/way-of-publishing/प्रेमलता पांडेhttp://pasand.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-3657901966854787002009-07-10T13:30:31.764+05:302009-07-10T13:30:31.764+05:30है, बस्स्स्स्स.है, बस्स्स्स्स.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-14799042246745384312009-07-10T12:30:29.284+05:302009-07-10T12:30:29.284+05:30क्यों इस पचडे़ में पड़े कि साहित्य क्या है? और ब्ल...क्यों इस पचडे़ में पड़े कि साहित्य क्या है? और ब्लोग क्या है.. क्या साहित्य कि कोई परिभाषा हो सकती है या क्या इसे परिभाषा में बांधा जा सकता है... कतई नहीं जो आपके लिये साहित्य है वो मेरे लिये कुड़ा हो सकता है और जो आपके लिये कुड़ा हो वो मेरे लिये साहित्य.. किसी को साहित्य कहने न कहने का कोई सर्वमान्य आधार नहीं.. क्यों हम छड़ी लेकर नापते है और किसी को तय खानों में फिट करने कि कोशिश करतें है.. जो है वो है.. जो जैसा है उसे वैसा रहने दें..रंजनhttp://aadityaranjan.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-15363647840942606232009-07-10T11:37:40.015+05:302009-07-10T11:37:40.015+05:30ब्लाग और पुस्तकों के साहित्य में एक मूल अन्तर ...ब्लाग और पुस्तकों के साहित्य में एक मूल अन्तर दिखायी देता है। वह है प्रतिक्रिया का। ब्लाग पर लिखने पर त्वरित प्रतिक्रियाएं प्राप्त होती हैं और पुस्तक में लिखने पर विलम्ब से। ब्लाग पर लिखा साहित्य भी यदि लोककल्याणकारी है तो वह भी भविष्य में श्रेष्ठ साहित्य की गिनती में आएगा। क्योंकि ब्लाग सर्वसुलभ होते हैं। श्रेष्ठ आलेख, स्पष्ट व्यक्तव्य के लिए बधाई।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-21656542818035843412009-07-10T11:34:53.858+05:302009-07-10T11:34:53.858+05:30सः हिताय से साहित्य शब्द की उत्पत्ति हुई है ।
ब्ला...<i><br />सः हिताय से साहित्य शब्द की उत्पत्ति हुई है ।<br />ब्लागिंग एक विधा है, अभिव्यक्ति का एक टूल मात्र..<br />इससे रचे गयी हर रचना को साहित्य नहीं कहा जा सकता..<br />पर इसे साहित्य की श्रेणी से ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता ।<br />ज़रूरत यह देखने भर की है, बाहुल्य किसका है.. विषयनिष्ठ लेखन का या पल्प लेखन का !<br /><br />एक टूल को किससे परिभाषित किया जाय, इस पर कोई बहस अप्रासँगिक सा लगता है । जो मेरा दृष्टिकोण है !<br /></i>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-46630344724177843882009-07-10T10:52:21.801+05:302009-07-10T10:52:21.801+05:30मेरा तो मानना है कि ब्लॉग साहित्य की गंदगी और लंपट...मेरा तो मानना है कि ब्लॉग साहित्य की गंदगी और लंपट साहित्यकारों से कहीं बेहतर माध्यम है अभिव्यक्ति का।<br />साहित्य कागजों तक सिमटकर रह गया है। उसे बस रद्दी की टोकरी की जरूरत है।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-66928638929322784302009-07-10T10:24:15.100+05:302009-07-10T10:24:15.100+05:30सटीक लिखा है !!सटीक लिखा है !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-33823237.post-38046283578268601732009-07-10T10:19:34.537+05:302009-07-10T10:19:34.537+05:30jis me jan ka hit nahin..
vah kuchh bhi ho,sahitya...jis me jan ka hit nahin..<br />vah kuchh bhi ho,sahitya nahinAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.com