Sunday, December 22, 2013

देवयानी प्रकरण पर मेरे विचार

भारतीय दूतावास की कर्मचारी देवयानी को अमरीका में अपनी नौकरानी को कम वेतन दिए जाने के लिए गिरफ़्तार करना और उनके साथ अपमानजनक बर्ताव करना सभी भारतीयों के खून को खौलानेवाला प्रकरण है। देवयानी को अपने ही बच्चों के सामने हथकड़ियों में जकड़कर सरे आम ले जाया गया और जेल में उनके साथ बहुत ही कुत्सित बर्ताव किया गया, उसी तरह का बर्ताव जैसे हत्यारों, नशाखोरों, बलात्कारियों आदि के साथ किया जाता है – पुलिसकर्मियों ने देवयानी को नंगा करके, उनके शारीरिक द्वारों में (योनी, मुँह, गुदा, आदि) में उँगली या अन्य चीजें डालकर जाँच की (कैविटी सर्च), यह मालूम करने के लिए कि उन्होंने वहाँ कोई हथियार या नशीली दवा तो नहीं छिपा रखी है। अमरीका में संगीन जुर्मों के कैदियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जाता है। पर देवयानी तो कोई संगीन जुर्म के लिए पकड़ी गई कैदी नहीं थीं, और तो और वे एक स्वाधीन राष्ट्र के दूतावास की कर्मचारी थीं, जिसके साथ अमरीका के दोस्ताना संबंध थे, तथा एक स्वतंत्र देश के दूतावास के कर्मी होने के कारण उन्हें अमरीका के क़ानूनों से एक प्रकार का अभयदान मिला हुआ था। पर इन सब बातों को दरकिनार करके देवयानी के साथ बदसलूकी की गई।

अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ। मुझे लगता है कि इसके पीछे अनेक कारण हैं। पहला कारण देवयानी को गिरफ़्तार करनेवाले भारतीय मूल के व्यक्ति प्रीत भरारा के व्यक्तित्व से जुड़ा है। यह व्यक्ति शायद अमरीकियों को यह दिखाना चाहता है कि वह उनसे भी बढ़कर अमरीकी है, और इसे ज़ाहिर करने का इससे बढ़िया क्या तिकड़म हो सकता है कि वह अपने ही मूल देश के देशवासियों को अमरीकी क़ानूनों के फंदे में फँसाए। ऐसा करके वह शायद यह दिखाना चाहता है कि उसने अपनी भारतीयता की केंचुली पूरी तरह से उतार फेंक दी है, और वह संपूर्ण रूप से अमरीकी हो गया है। शायद उसके मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी हो, और देवयानी के प्रति बदसलूकी करके उसे उम्मीद हो कि अमरीका के लोग उस पर उसकी भूरी चमड़ी के बावजूद अधिक भरोसा करने लगेंगे। या ऐसा भी हो सकता है कि वह अमरीकी में फल-फूल रहे भारत-विरोधी खेमों में से किसी के हाथों का कठपुतली बन गया हो, जो अमरीका में भारत को नीचा दिखाकर न जाने क्या उल्लू सीधा करना चाहते हैं – ये लोग नरेंद्र मोदी को विदेशों में बदनाम करने और उसे अमरीकी वीज़ा से वंचित करने के लिए ऐड़ी-चोटी का पसीना एक किए हुए हैं और पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। अब जब ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी अगले चुनाव के बाद भारत के प्रधान मंत्री के रूप में उभरकर आ सकता है, स्वयं इनके पसीने छूटने लगे हैं। शायद यह बरार ऐसी ही मनोवृत्तिवाला भारत-द्वेषी व्यक्ति हो।

  यह इस प्रकरण का एक संभव स्पष्टीकरण है। एक अन्य संभाव्यता यह है कि देवयानी की नौकरानी संगीता और उसके परिवार भारत में अमरीकियों के लिए जासूसी करने में लगे हुए थे और उन्हें बचाने के लिए ही देवयानी को बलि का बकरा बनाया गया है। देवयानी को अपनी नौकरानी को कम वेतन देने के ज़ुर्म में फँसाकर, अमरीका ने संगीता, उसके पति तथा परिवार के अन्य सदस्यों को रातों-रात अपने देश में शरण दे दी है। अब हर कोई जानता है कि अमरीका में एक आम भारतीय को शरण तो दूर प्रवेश करने तक का वीज़ा मिलना कितना कठिन काम है। पर संगीता और उसके परिवार को, जो मात्र एक नौकरानी है, अमरीका ने सपरिवार वीज़ा देकर अपने देश में सुखपूर्वक बसाया है। ज्ञातव्य रहे कि संगीता के पिता भारत में अमरीकी दूतावास में बरसों से काम करते आ रहे हैं। निश्चय ही इस दौरान उन्होंने अनेक अमरीकियों से घनिष्ट संबंध बना लिए होंगे, जो संगीता के इस समय काम आए। शायद वे अमरीकियों के लिए कोई अन्य महत्वपूर्ण सेवा भी प्रदान करते रहे होंगे, जिसके प्रति कृतज्ञता जताते हुए उन्होंने संगीता को सपरिवार अपने देश में उठा ले जाने जैसा विलक्षण कार्य किया। स्पष्ट ही यह काम अमरीकियों के लिए अति महत्वपूर्ण रहा होगा, वरना वे ऐसा क्यों करते। जासूसी ही ऐसा काम मुझे प्रतीत हो रहा है जिसकी अमरीकी इतनी अधिक कीमत आँकते। अब सवाल यह उठता है कि संगीता के परिवार ने अमरीकियों को क्या-क्या गुप्त बातें बताई हैं और यह जानकारी भारत के लिए कितना अधिक नुकसानदेह साबित हो सकती है। इसका तो आनेवाले दिनों में ही खुलासा हो सकता है, और इसकी संभावना भी कम ही है, क्योंकि जासूसी से संबंधित अनेक बातें कभी उजागर होती ही नहीं हैं।

एक अन्य संभाव्यता यह है कि अमरीका इस प्रकरण के जरिए भारत को किसी अन्य चीज़ के लिए सज़ा दे रहा है। अभी हाल में हमारे रक्षा मंत्री ए के ऐंटनी ने एक बहुत ही महँगे रक्षा निवादा से अमरीकियों का पत्ता काट दिया था। इसी तरह से कुछ अन्य मामलों में भी अमरीकी उद्योगों के प्रस्तावों के स्थान पर अन्य देशों के प्रस्तावों को चुना गया था। इससे अमरीकी उद्योग ताव में आ गया है, और वह भारत को सबक सिखाने के मौके की तलाश कर रहा है। शायद उसने प्रीत बरार के माध्यम से जाल बिछाकर देवयानी को उसमें फँसाकर भारत के विरुद्ध प्रतिघात किया हो।

इसके पीछे आर्थिक कारण भी हैं। पहले भारत की अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था जितनी ही चुस्त-दुरुस्त थी और तेज़ी से विकसित हो रही थी। पर पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की हवा निकल गई है, वह चीन की बराबरी तो दूर विश्व के दोयम दर्जे के देशों से भी पीछे हो गया है। अमरीका मुख्य रूप से पूँजीवादी देश है और उसकी बागडोर वहाँ के बड़े-बड़े धन्नासेठों के हाथों में ही रहती है। इन्हें अब भारत उतना आकर्षक नहीं लग रहा है, और इसलिए भारत के प्रति सम्मान दर्शाना भी वे अब आवश्यक नहीं मान रहे हैं। इसीलिए भारत के दूतावास के कर्मी के प्रति अमरीका ने ऐसा अवहेलनापूर्ण व्यवहार किया है जैसा वह अफ्रीका के ग़रीबों और कम महत्वपूर्ण देशों के दूतों के साथ भी नहीं करता है।

  इस सारे काँड में सबसे अखरनेवाली बात यह है कि देवयानी को प्रताड़ित करनेवाला व्यक्ति एक पूर्व-भारतीय है। हम विदेशों में रह रहे अपने देश के लोगों पर उचित ही गर्व करते हैं और उनकी उपलब्धियों को अपनी ही उपलब्धियाँ मानते हैं, भले ही इन लोगों ने दूसरे देशों की नागरिकता स्वीकार कर ली हो। हम यही विश्वास करते हैं कि ऐसा उन्होंने मजबूरी में किया है, और वे दिल से अब भी भारतीय हैं और सदा भारतीय ही रहेंगे। अब इस प्रीत बरार ने सिद्ध कर दिया है कि हमारी यह धारणा कितनी मासूम और अवास्तविक है। इस आदमी के बर्ताव से भारत के प्रति अंशमात्र भी सम्मान या प्रेम नहीं झलक रहा है। वह तो भारत को अनादर करने पर तुला हुआ सा प्रतीत हो रहा है। और यही बात हम भारतीयों को समझ में नहीं आ रही है, कि कैसे भारतीय मूल का कोई व्यक्ति इस कदर राह भटक सकता है, कि वह अपने ही वतन की छाती पर वार कर बैठे।

इससे हमें सबक भी लेनी चाहिए, और वह यह है कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को भारत के साथ जोड़े रखने के लिए हमें और मेहनत करनी होगी। आज स्थिति यह है कि एक-दो पीढ़ी में वे भारत से इतने कट जाते हैं कि उनमें से कई प्रीत बरार के ही अन्य संस्करण बन जाते हैं। उनका भारत के साथ नाता उनकी भूरी चमड़ी और नाक-नक्शे तक ही सीमित रह जाता है। दिल और दिमाग से वे भारतीयता से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं। यह भारत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। क्योंकि भारतीयता की अवधारणा भारत की राजनीतिकि सीमाओं तक सीमति नहीं है, बल्कि वह एक विश्वव्यापी चीज़ है। भारत से निकला व्यक्ति चाहे कहीं भी जाए और चाहे जिस देश का भी नागरिक हो जाए, वह भारत के लिए मूल्यवान है, और भारत को और भारतवासियों को उसे भारत के साथ जोड़े रखने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह प्रयास राज्य के स्तर पर और सामाजिक संगठनों के स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर हमें करना होगा। राज्य के स्तर पर उन्हें दुहरी नागरिकता देना और भारत में उन्हें अन्य विदेशियों की तुलना में अधिक सहूलियतें देना जैसे कार्य शामिल हैं। सामाजिक स्तर पर यहाँ के धार्मिक संगठनों तथा कला-आदि से संबंधित संगठनों को उन्हें अपनी भारतीयता बरकार रखने में मदद करनी चाहिए। यह काम सबसे अच्छा हिंदी फिल्में कर रही हैं, पर समाज के अन्य स्तरों पर भी यह होना चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर भी हम इसमें मदद कर सकते हैं।

भारतीयता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी, से इन प्रवासी भारतीयों का संबंध है। यह भाषाई सेतु उन्हें धर्म, साहित्य, फ़िल्म, संगीत आदि भारतीयता के अन्य पहलुओं से जोड़े रखता है। और यही भाषाई सेतु प्रवासी भारतीयों के लिए सबसे पहले टूटती है, विशेषकर उन प्रवासी भारतीयों के लिए जो अँग्रेज़ी बोलनेवाले देशों में बसते हैं। वे एक-दो पीढ़ी में ही अपनी मूल भाषा और हिंदी को भूल जाते हैं, और अँग्रेज़ी ही उनकी एकमात्र भाषा रह जाती है। और भाषा का यह संबंध खत्म होते ही, धर्म, साहित्य, कला, संगीत आदि के साथ उनका नाता भी टूट जाता है।

इसलिए मेरी दृष्टि में, विदेशों में बसे भारतीयों में भारत के प्रति सहानुभित बनाए रखने के लिए हमें उनकी भाषाई सेतु, और विशेषकर हिंदी के साथ उनके संबंध, को बनाए रखने की ओर खास ध्यान देना चाहिए।

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